नहीं जानती क्यों
अचानक सरसराती धूल के साथ
हमारे बीच
भर जाती है आंधियां
और हम शब्दहीन घास से
बस नम खड़े रह जाते हैं
नहीं जानती क्यों
अचानक बह आता है
हमारे बीच
दुखों का खारा पारदर्शी पानी
और हम अपने अपने संमदर की लहरों से उलझते
पास-पास होकर
भीग नहीं पाते...
नहीं जानती क्यों
हमारे बीच महकते सुकोमल गुलाबी फूल
अनकहे तीखे दर्द की मार से झरने लगते हैं और
उन्हें समेटने में मेरे प्रेम से सने ताजा शब्द
अचानक बेमौत मरने लगते हैं..
नहीं जानती क्यों....
--स्मृति आदित्य "फाल्गुनी"
बहुत नवीनता लिए रचना
ReplyDeleteगजब की अभिव्यक्ति..... प्रस्तुति के लिए आभार!!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
ReplyDeleteआपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि की चर्चा आज बृहस्पतिवार (26-05-2013) के "आम फलों का राजा होता : चर्चामंच 1256"
में मयंक का कोना पर भी है!
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति यशोदा जी ..... बधाई !
ReplyDeletenav shrijan ke sath nyee tazgi ka ahsash karati sundar prastuti
ReplyDeleteहमारे बीच ..??
ReplyDeleteबहुत अच्छी रचना
अनकहे तीखे दर्द की मार से झरने लगते हैं और
ReplyDeleteउन्हें समेटने में मेरे प्रेम से सने ताजा शब्द
अचानक बेमौत मरने लगते हैं..
नहीं जानती क्यों.... bahut badhiya kuchh baten hamesha unsuljhi hi rah jati hai ....
हमारे बीच महकते सुकोमल गुलाबी फूल
ReplyDeleteअनकहे तीखे दर्द की मार से झरने लगते हैं और
उन्हें समेटने में मेरे प्रेम से सने ताजा शब्द
अचानक बेमौत मरने लगते हैं......
कमेंट करने के लिए मेरे शब्द मन मुताबिक नहीं मिल रहे ........
बहुत सुन्दर दमदार प्रस्तुति के लिए धन्यवाद ...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति.
ReplyDeleteअनुशरण कर मेरे ब्लॉग को अनुभव करे मेरी अनुभूति को
latest post: बादल तू जल्दी आना रे!
latest postअनुभूति : विविधा
शुभम
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल सोमवार (27-05-2013) के :चर्चा मंच 1257: पर ,अपनी प्रतिक्रिया के लिए पधारें
सूचनार्थ |
नहीं जानती क्यों
ReplyDeleteअचानक बह आता है
हमारे बीच
दुखों का खारा पारदर्शी पानी
और हम अपने अपने संमदर की लहरों से उलझते
पास-पास होकर
भीग नहीं पाते...-----
मन को भेदती रचना
मार्मिक और भावपूर्ण
बहुत सुंदर
आभार
आग्रह हैं पढ़े
ओ मेरी सुबह--
http://jyoti-khare.blogspot.in
मार्मिक....
ReplyDeleteआपकी यह रचना कल सोमवार (27 -05-2013) को ब्लॉग प्रसारण पर लिंक की गई है कृपया पधारें.
ReplyDeleteगंभीर रचना .एक ताजगी के अहसास के साथ
ReplyDeleteeveryone feels this situation, but poet write this feeling with well decorated words... plz visit my blog.
ReplyDeleteGreat poen on vagaries of life.
ReplyDeletebehad ganbhirta se vishy ka chayan aur dsase bhi behatar vicharo ke liye chayanti shabdon ki nakkasi
ReplyDeleteभावनापूर्ण अभिव्यक्ति ,बहुत सुंदर .....
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना ।
ReplyDeleteनहीं जानती क्यों
ReplyDeleteहमारे बीच महकते सुकोमल गुलाबी फूल
अनकहे तीखे दर्द की मार से झरने लगते हैं और
उन्हें समेटने में मेरे प्रेम से सने ताजा शब्द
अचानक बेमौत मरने लगते हैं..
नहीं जानती क्यों....
.......बेहतरीन..........