औरतों के जिस्म पर सब मर्द बने हैं
मर्दों की जहाँ बात हो, नामर्द खड़े हैं
शेरों से खेलने को पैदा हुए थे जो वो
किसी के नाज़ुक़ बदन से खेल रहे हैं
हर वक़्त भूखी आँखें कुछ खोज रही हैं
भूखे बेजान जिस्म को भी नोंच रहे हैं
गुल पे ही नहीं आफ़त गुलशन पे भी है
झड़ते हुए फूलों पे, वे कलियों पे पड़े हैं
मरने की नहीं हिम्मत ना जीने का सलीक़ा
हम सूरत – ए - इंसान ये बेशर्म बड़े हैं
--रवि कुमार
मरने की नहीं हिम्मत ना जीने का सलीक़ा
ReplyDeleteहम सूरत – ए - इंसान ये बेशर्म बड़े हैं
सच्चाई
धन्यवाद
हार्दिक शुभकामनायें
Excellent!
ReplyDeleteसच्चाई बयान करती हई सार्थक रचना..
ReplyDeleteआपकी यह रचना कल शुक्रवार (31 -05-2013) को ब्लॉग प्रसारण के "विशेष रचना कोना" पर लिंक की गई है कृपया पधारें.
ReplyDeleteबहुत ही बेहतरीन और प्रशंसनीय प्रस्तुति....
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
ReplyDeleteआपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि की चर्चा कल शुक्रवार (31-05-2013) के "जिन्दादिली का प्रमाण दो" (चर्चा मंचःअंक-1261) पर भी होगी!
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
एक सच्चाई
ReplyDeleteबहुत खूब ,बिलकुल सच्ची बात
ReplyDeleteसुन्दर व्यंग्यात्मक रचना !!
ReplyDeletereally true.
ReplyDeleteसत्य बचन ..मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है
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