Thursday, May 30, 2013

औरतों के जिस्म पर सब मर्द बने हैं......रवि कुमार



औरतों के जिस्म पर सब मर्द बने हैं
मर्दों की जहाँ बात हो, नामर्द खड़े हैं

शेरों से खेलने को पैदा हुए थे जो वो
किसी के नाज़ुक़ बदन से खेल रहे हैं

हर वक़्त भूखी आँखें कुछ खोज रही हैं
भूखे बेजान जिस्म को भी नोंच रहे हैं

गुल पे ही नहीं आफ़त गुलशन पे भी है
झड़ते हुए फूलों पे, वे कलियों पे पड़े हैं

मरने की नहीं हिम्मत ना जीने का सलीक़ा
हम सूरत – ए - इंसान ये बेशर्म बड़े हैं

--रवि कुमार

11 comments:

  1. मरने की नहीं हिम्मत ना जीने का सलीक़ा
    हम सूरत – ए - इंसान ये बेशर्म बड़े हैं
    सच्चाई
    धन्यवाद
    हार्दिक शुभकामनायें

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  2. सच्चाई बयान करती हई सार्थक रचना..

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  3. आपकी यह रचना कल शुक्रवार (31 -05-2013) को ब्लॉग प्रसारण के "विशेष रचना कोना" पर लिंक की गई है कृपया पधारें.

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  4. बहुत ही बेहतरीन और प्रशंसनीय प्रस्तुति....

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  5. बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
    आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि की चर्चा कल शुक्रवार (31-05-2013) के "जिन्दादिली का प्रमाण दो" (चर्चा मंचःअंक-1261) पर भी होगी!
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  6. बहुत खूब ,बिलकुल सच्ची बात

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  7. सुन्दर व्यंग्यात्मक रचना !!

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  8. सत्य बचन ..मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है

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