आईना वही है
चेहरे बदल गए
पुराने चेहरे लगे दिखने
अब नए-नए।
भावनाएं डूब गईं अब अंतर्गुहा में
दिखावा हो गया प्रधान
आज के इस जहान में।
रिश्ते वही
व्यवहार बदल गए
धरती वही है
लोग बदल गए
आत्मा है वही
शरीर बदल गए
हेर-फेर के इस प्रांगण में
हृदय बदल गए।
भगवान है तुझमें
न दिया ध्यान तूने
आकर, रहकर शरीर घट में
बिना आदर पाए
चले गए।
बाद में पछताने से क्या होगा
शरीर तो अब मिट्टी में मिल गए।
- डॉ. परमजीत ओबराय
रचनाकार अप्रवासी भारतीय हैं
रचनाकार अप्रवासी भारतीय हैं
बेहतरीन |
ReplyDeleteभगवान है तुझमें
ReplyDeleteन दिया ध्यान तूने
आकर, रहकर शरीर घट में
बिना आदर पाए
चले गए।
बहुत ही प्रेरणास्पद!!
बहुत ही सुन्दर और भावपूर्ण प्रस्तुति,आभार.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
ReplyDeleteआपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि की चर्चा कल मंगलवार (28-05-2013) के "मिथकों में जीवन" चर्चा मंच अंक-1258 पर भी होगी!
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
वाह ... बेहतरीन
ReplyDeleteआपकी यह रचना कल मंगलवार (28 -05-2013) को ब्लॉग प्रसारण पर लिंक की गई है कृपया पधारें.
ReplyDeleteमन की उथलपुथल को उजागर करती भावनात्मक प्रस्तुती |
ReplyDeleteसुन्दर रचना |
are kya bat hai bhot khub
ReplyDeleteman ki halchal ko rang deti rachna
ReplyDeleteसच कहा है ...
ReplyDeleteशासीर मिट्टी हो जाने के पहले भी ये बात समझ आ जाए तो सार्थक है जीवन ...
बहुत ही सुन्दर और भावपूर्ण प्रस्तुति
ReplyDeletebahut sahi ..bat ....pachhtane se kya hoga ...
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