(1)
तुम्हारी ख़ामोशी से हम ख़ाक हुए जाते है......
जलता है खून अपना और हम राख़ हुए जाते है
निचोड़ लेना मेरे कफन को भी तुम मुनाफे की खातिर
ज़िंदगी तो ज़िंदगी मौत तुम्हारे नाम किए जाते है !
(2)
मेरे सपने साकार हो
भले ये दुआ तुम न करना
पर सो संकू चैन से मैं भी
मेरे नींद का न तुम व्यापार करना !
(3)
ये रंजो-गम की दास्ताँ नहीं
रोटी और मोहब्बत का रिश्ता
किसी गरीब से पूछ लो !
(4)
तुम्हारे मुनाफ़े से कोई दुश्मनी नहीं अपनी
मेरे रोटी का नमक तो रहने दो
करोड़ों की ईमारत बनाते रहो
मेरे घर को भी चार दीवारी में जीने दो !
(5 )
मेरे दिन सुहाने नहीं
रात की रंगिनियाँ भी नहीं
पर जी लेने दो,गुजार लेने दो
गुरबत के इन लम्हों को भी मुझे...
याद नहीं शायद कभी दुआओं में
इन्हें ही मांग लिया था.....!
(6 )
वह जाँच रहा था
पाँच सौ का नोट
मानो खंगाल रहा था मुझ को
उससे जीतना चाहता था मैं
जल्द से जल्द....
(7 )
आज़माया खुदा को एक दिन
कुछ ऐसे भी ....
मांग ली ख़ैर अपने दुश्मन की
आज उसका खंजर है मेरे दिल में
पर जुबां पे कोई लफ़्ज़ नहीं......
(8 )
तमाशों का शहर है
हाथों में खाली सही कोई पिटारा लिए रखिए
क्या पता कोई कब अठन्नी उछाल दे
हाथों में अपना बटुआ निकाल रखिए
(9)
खरीद ले गए एक रुपये का पुण्य ,
अपने गुनाह धोने
जैसे धोता है कपड़ा गरीब
एक रुपए में सर्फ़ के पाउच से ....
(10)
तुम जानो मुझे
बस इसलिए कि
पिछले जन्मों की कोई उधारी
हो बाकी मुझपर
इसबार
मैं लौटा सकूँ
तुम्हारे याद दिलाने पर
(11)
देने वालों को संकट में न डालिए
जितनी धरती हो पैरों तले आपके
बस उतना ही आसमान मांगिए .....
(12)
हिचकियाँ आती नहीं गांव में
शहर ने लगा दिया होगा
अहसासों पर जैमर
मुनाफ़ा कम न हो !
(13)
समंदर सूख रहा था
लोग खुश थे
नमक खरोच रहे थे
उसके सूखे जख्मों से
(14)
शब्दों के माफ़िया
लिख रहे जीवन के गीत
जैसे कौवे के घोसले में पल रहा
कोयल के बीज !
(15)
तुम्हारे लिए
मैं भी बना सकता हूँ
दुनिया की सबसे हसीं महल
पर नहीं बसा सकता घर
क्यूंकि जहां भी बनवाए जाते है महल
वही होता है अपना घर
मैं प्रेम का मजदूर हूँ...
---सुन्दर सृजक
https://www.facebook.com/sundar.srijak
(1)
तुम्हारी ख़ामोशी से हम ख़ाक हुए जाते है......
जलता है खून अपना और हम राख़ हुए जाते है
निचोड़ लेना मेरे कफन को भी तुम मुनाफे की खातिर
ज़िंदगी तो ज़िंदगी मौत तुम्हारे नाम किए जाते है !
(2)
मेरे सपने साकार हो
भले ये दुआ तुम न करना
पर सो संकू चैन से मैं भी
मेरे नींद का न तुम व्यापार करना !
(3)
ये रंजो-गम की दास्ताँ नहीं
रोटी और मोहब्बत का रिश्ता
किसी गरीब से पूछ लो !
(4)
तुम्हारे मुनाफ़े से कोई दुश्मनी नहीं अपनी
मेरे रोटी का नमक तो रहने दो
करोड़ों की ईमारत बनाते रहो
मेरे घर को भी चार दीवारी में जीने दो !
(5 )
मेरे दिन सुहाने नहीं
रात की रंगिनियाँ भी नहीं
पर जी लेने दो,गुजार लेने दो
गुरबत के इन लम्हों को भी मुझे...
याद नहीं शायद कभी दुआओं में
इन्हें ही मांग लिया था.....!
(6 )
वह जाँच रहा था
पाँच सौ का नोट
मानो खंगाल रहा था मुझ को
उससे जीतना चाहता था मैं
जल्द से जल्द....
(7 )
आज़माया खुदा को एक दिन
कुछ ऐसे भी ....
मांग ली ख़ैर अपने दुश्मन की
आज उसका खंजर है मेरे दिल में
पर जुबां पे कोई लफ़्ज़ नहीं......
(8 )
तमाशों का शहर है
हाथों में खाली सही कोई पिटारा लिए रखिए
क्या पता कोई कब अठन्नी उछाल दे
हाथों में अपना बटुआ निकाल रखिए
(9)
खरीद ले गए एक रुपये का पुण्य ,
अपने गुनाह धोने
जैसे धोता है कपड़ा गरीब
एक रुपए में सर्फ़ के पाउच से ....
(10)
तुम जानो मुझे
बस इसलिए कि
पिछले जन्मों की कोई उधारी
हो बाकी मुझपर
इसबार
मैं लौटा सकूँ
तुम्हारे याद दिलाने पर
(11)
देने वालों को संकट में न डालिए
जितनी धरती हो पैरों तले आपके
बस उतना ही आसमान मांगिए .....
(12)
हिचकियाँ आती नहीं गांव में
शहर ने लगा दिया होगा
अहसासों पर जैमर
मुनाफ़ा कम न हो !
(13)
समंदर सूख रहा था
लोग खुश थे
नमक खरोच रहे थे
उसके सूखे जख्मों से
(14)
शब्दों के माफ़िया
लिख रहे जीवन के गीत
जैसे कौवे के घोसले में पल रहा
कोयल के बीज !
(15)
तुम्हारे लिए
मैं भी बना सकता हूँ
दुनिया की सबसे हसीं महल
पर नहीं बसा सकता घर
क्यूंकि जहां भी बनवाए जाते है महल
वही होता है अपना घर
मैं प्रेम का मजदूर हूँ...
---सुन्दर सृजक
https://www.facebook.com/sundar.srijak
ReplyDeleteदेने वालों को संकट में न डालिए
जितनी धरती हो पैरों तले आपके
बस उतना ही आसमान मांगिए .
दिल दिमाग को संतुष्ट करती रचना
हार्दिक शुभकामनायें
waaaaa waaaaaaaaah khub
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