Tuesday, May 28, 2013

लो चल बसा.................रमेश दत्त शर्मा




मुद्दत से था इंतजार, लो चल बसा।
यारो तुम्हारा यार, लो चल बसा।।

ख़ाली पेट ही खाता रहा धोखे।
कितना था होशियार, लो चल बसा।।

ज़मानेभर को शिकायत थी।
आदमी था बेकार, लो चल बसा।।

न जाने कितनों का क़र्ज बाकी था।
छोड़कर उधार, लो चल बसा।।

कोई तभी उससे ख़ुश नहीं था।
सब लोग थे बेजार, लो चल बसा।।

अब खुश रहो अहले वतन।
एक ही था गद्दार, लो चल बसा।।

रोने-धोने से अब क्या फ़ायदा।
तुमने ही दिया मार, लो चल बसा।।

बाद मरने के याद आएगा 'रमेश'
था कितना खुद्दार, लो चल बसा।।

---रमेश दत्त शर्मा

9 comments:

  1. वाह!! बहुत खूब लाजवाब रचना | रमेश भाई को मेरा नमस्कार | आभार

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  2. .बहुत सुन्दर रचना..आभार..

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  3. बहुत अच्छी रचना सुंदर प्रस्तुति!!

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  4. बहुत ही सुन्दर लाजबाब रचना की प्रस्तुति.

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  5. बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति आदरणीय .....

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  6. रहले त मने ना भईले
    गईले त मन मन पछतईले
    बहुत ही अच्छा लगता है
    आपका चुनाव छोटी बहना
    हार्दिक शुभकामनायें

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  7. वाह!! बहुत खूब लाजवाब रचना

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  8. रोने-धोने से अब क्या फ़ायदा।
    तुमने ही दिया मार, लो चल बसा।।-------

    सहजता से कही गयी गहन अनुभूति
    बहुत सुंदर
    सादर

    आग्रह है मेरे गीत को भी "धरोहर"में सम्मलित करें
    तपती गरमी जेठ मास में---
    http://jyoti-khare.blogspot.i

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