किस्मत की वीरानियों का, मेरा वो मंजर, देखना
हैराँ हूँ घर की दीवार के, उतरे हैं सब रंग, देखना
हैराँ हूँ घर की दीवार के, उतरे हैं सब रंग, देखना
उड़ता रहा आँधियों में वो, जाने कितना दर-ब-दर
तिनका ही था कमज़ोर सा, उसका मुक़द्दर, देखना
पोशीदा है ज़मीन के, हर ज़र्रे पर दिलकश बहार
उतरो ज़रा आसमान से, आएगी नज़र वो, देखना
सोया किया क़रीब ही, फ़रिश्ता दश्त-ए-दिल का
ख़ुशबू सी उसकी बस गई, महका है शजर, देखना
इश्क़ के दावे उनके, अब तो हो गए आसमाँ-फरसा
हम भी देखें उनकी अदा, और तुम भी 'अदा', देखना
'अदा'
बहुत ही खूबसूरत रचना |सुप्रभातम |
ReplyDeleteआभार कृष्ण भैय्या
DeleteSUPRABHATAM ,SUNDAR ABHIVYAKTI ,इश्क़ के दावे उनके, अब तो हो गए आसमाँ-फरसा
ReplyDeleteहम भी देखें उनकी अदा, और तुम भी 'अदा', देखना
बहुत ही सुन्दर ग़ज़ल की प्रस्तुति,आभार.
ReplyDelete'मेरी धरोहर' में मेरी इस रचना को शामिल करने के लिए बहुत धन्यवाद यशोदा !
ReplyDeleteआभार जीजी....
Deleteसच में अभिभूत हुई मैं
सादर
बहुत बढ़िया....खूबसूरत रचना
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