मेरे जाने के बाद
वह जो तुम्हारी पलकों की कोर पर
रुका हुआ है
चमकीला मोती
टूटकर बिखर जाएगा
गालों पर
और तुम घंटों अपनी खिड़की से
दूर आकाश को निहारोगे
समेटना चाहोगे
पानी के पारदर्शी मोती को,
देर तक बसी रहेगी
तुम्हारी आँखों में
मेरी परेशान छवि
और फिर लिखोगे तुम कोई कविता
फाड़कर फेंक देने के लिए...
जब फेंकोगे उस
उस लिखी-अनलिखी
कविता की पुर्जियाँ,
तब नहीं गिरेगी वह
ऊपर से नीचे जमीन पर
बल्कि गिरेगी
तुम्हारी मन-धरा पर
बनकर काँच की किर्चियाँ...
चुभेगी देर तक तुम्हें
लॉन के गुलमोहर की नर्म पत्तियाँ।
----स्मृति आदित्य जोशी ''फाल्गुनी''
http://yashoda4.blogspot.in/2012/07/blog-post_10.html
कैसा हो गया है ये मेरा हिन्दुस्तान
ReplyDeleteपीते हैं शराब करते है झगडा
कैसा है ये लोगो का लफड़ा
रोते-बिलखते बच्चे भूख से
फटे-पुराने वस्त्र पहने बीवी
दिखता बदन झाँक-झाँक के
गन्दी नज़रें करें ताक-झाँक
मजबूर औरत तन छुपाती
फटे-पुराने छनकते पल्लू से
करती दिन भर धुप में मजदूरी
दो वक़्त की रोटी जुटाने को
शाम को जब लौटे काम से
पैसे छीन लेता शराबी अकड़ से
नहीं चिंता उसको भूखे बच्चो की
नहीं बीवी के झलकते बदन की
लौटेगा फिर लड़खड़ाते कदमो से
बोलेगा अपशब्द करेगा अपमान
क्या यही है एक मजबूर बीवी की
मैली कुचैली सी दीन-हीन पहचान
और हम फिर लिखते हैं लेखो में
नर और नारी दोनों हैं एक समान
नारी की दुर्दशा आज भी है इस
हिन्दुस्तान की घिनौनी पहचान
लेकिन हम ख़ुशी से गाते हैं
मेरा भारत दुनिया में महान
जहाँ नन्ही कली से होता दुर्व्यवहार
सजा मिलती नहीं उस कसूरवार को
खुला घूमता रहता है वो दानव
फिर से ढूँढने नए शिकार को
पैसा फेंको तमाशा देखो यहाँ
मानवता हो रही है नीलाम
ऐसा हो गया है ये हिन्दुस्तान
कैसे गर्व करे हम हो रहे शर्मसार
जाने कहाँ खो गया है वो भारत महान
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति .... बधाई !
क्या बात है.................अति सुन्दर
ReplyDeleteबहुत सुंदर
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