Friday, December 29, 2017

त्राहिमाम.....डॉ. इन्दिरा गुप्ता


हाय विधाता कलम क्या कहे 
त्राही- त्राही मच रही यहाँ 
जीवित को खा रहे हो भक्षक 
कलम मौन ना रहे  वहाँ ! 

हर ओर बढ़ रहा है अनजस 
मन भी कुंद रहे भारी 
कलम भरी मसि लिख ना पाये 
क्या क्या गिनाऊँ में व्यभिचारी !  

शेष नाग अब सागर छोडो 
जग नागों के साथ रहो 
विषधर से भी अधिक विषैले 
नाग घूमते यहाँ देखो ! 

 साँसो पर पहरे है  देखो 
गिद्दों जैसे इंसा है 
नर भक्क्षो की चाहत देखो 
लाशो पर ही जिंदा है ! 

जीवित रहा ना जीवित जैसा 
मरने से पहले मर जाता 
टूट रहा प्रभु धैर्य अब तो 
और  सहा नहीँ जाता ! 

प्रभु ज़ी अब तो आसन छोड़ो 
हर ओर मची त्राही - त्राही 
जीवित रहना अब दुष्कर है 
कलम द्रवित सी हो आई ! 

कैसे चुप रहूँ में हाये 
कवि मन तो चीत्कार करे 
अति भीषण पीडा होती है 
कब तक  लेखनी मूक रहे ! 

हे मधुसूदन हे बनवारी 
हे गुणाकार हे जग पालक 
दया धर्म का नाश हो रहा 
त्राहिमाम हे गोपालक ! 

ज़रा नेत्र खोल कर देखो 
क्या थे हम क्या हो गये यहाँ 
एक बार तो सुध लो स्वामी 
धरा लोक जो तूने गढ़ा ! 

क्या प्रलय हुऐ पर आओगे
तब आकर क्या कर पाओगे 
वचन टूट जायेगा तेरा 
बस मन माही पछताओगे ! 

अति सदैव वर्जित है प्रभु ज़ी 
प्रभु तेरी हो या मेरी हो 
अति से पहले आओ गिरधर 
अब आस बची बस तेरी हो ! 

डॉ. इन्दिरा गुप्ता ✍

2 comments:

  1. बहुत अच्छा लिखती है,
    हर पल जिवंत हो उठता है
    दिल को छूती प्रेरणा दायक रचना

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