Friday, May 31, 2019

प्रदूषण का हाल....अनुष्का सूरी

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जब से हुआ विज्ञान प्रबल
तब से हुआ वायु बदहाल
वाहन सब ईंधन से दौड़ते
धुआं छोड़ हवा को बिगाड़ते
शहर गांव का है बुरा हाल
मत पूछो भाई प्रदूषण का हाल
दमें से हैं कई बीमार
दूषित वायु की है मार
पेड़ बेचारे हैं मददगार
उनको काट कर हम बेकार
आओ मिलकर करें कुछ उपचार
लगाए पेड़ पौध हम घर-बाहर

Thursday, May 30, 2019

दोस्त है कि दुश्मन वो मेरा पुराना.....प्रीती श्रीवास्तव

अभी हाल दिल का सुनाया नही है।
किसी को जख्म ये दिखाया नही है।

मेरे इश्क का है ऐसा असर दिलबर।
उसने अब तलक मुझे भुलाया नही है।।

मुहब्बत में किये कई वादे उसने।
मगर उनको रहबर निभाया नही है

बयां क्या करें उन गुनाहों को हरपल।
जहां में ऐसा सनम पाया नही है।

दोस्त है कि दुश्मन वो मेरा पुराना।
ये मेरे आज भी समझ आया नही है।

लुत्फ़ हम उठायें ऐसे कैसे दिलबर।
सफर में मिला कोई भाया नही है।।

कयामत न आ जाये इक रोज देखना।
मेरा चांद घर मेरे आया नही है।।
-प्रीती श्रीवास्तव

Wednesday, May 29, 2019

बूंद मिलन का इक जरिया है.....डॉ. अनु सपन

वादे भरे विकासी बादल 
है घनघोर सियासी बादल।

कहीं मसर्रत दे जायेंगे,
देंगें कहीं उदासी बादल।

कहीं अयोध्या सी बेचैनी
और कहीं पर काशी बादल।

वायुयान से खेल रहे हैं
नभ में घिरे कपासी बादल ।

बूंद मिलन का इक जरिया है
धरती छुए अकासी बादल।

मन में जब से तुम आये हो
आँखों खिले पलाशी बादल।

तुझसे जग मीठा नग़मा है
तुझ बिन लगे मिरासी बादल।।
डॉ. अनु सपन
( सर्व अधिकार सुरक्षित)

Tuesday, May 28, 2019

एडिक्ट..लत, व्यसन

इस बच्चे ने शराब नही पी रखी है। लेकिन लगातार मोबाइल देखने के कारण इसका नर्व सिस्टम प्रभावित हो गया है और इसके ब्रेन में ट्यूमर भी हो गया है।

डॉक्टर्स ने खूब कोशिश कर ली लेकिन कोई सुधार नहीं हो रहा है। अब इसके माँ बाप बहुत पछता रहे है कि क्यों हमने पैदा होते ही इसको मोबाइल पकड़ा दिया और अपने हाथों से ही अपने बच्चे का जीवन बर्बाद कर दिया।

दोस्तो नई पीढ़ी के साथ ये समस्याएँ बढ़ती जा रही है ।
यदि आप भी अपने बच्चे का जीवन चाहते है और आप उसे प्यार करते है तो मोबाइल देकर अपने हाथ से उसका जीवन नष्ट न करे उसे स्वाभाविक जीवन जीने दे उसको अपना बचपन जीने दे। और यदि आप अपने बच्चे से प्यार नही करते तो मोबाइल देकर पल पल मारने से बढ़िया उसको जहर देकर ही मार दे तो ज्यादा अच्छा होगा ।

दोस्तो ध्यान दे कहीं आपका बच्चा भी तो मोबाइल का शिकार नही हो रहा है? सावधान!!!! बचपन बचाये और भारत का भविष्य सुरक्षित करें।
यह एक चेतावनी है यदि हमने इसे हल्के में लिया तो एक दिन हमे भी रोना और पछताना पड़ सकता है।

व्हाट्सएपप से प्राप्त

Monday, May 27, 2019

एक फ़साना लगता है ....डॉ.नवीन मणि त्रिपाठी

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बादल का अंदाज जुदा सा लगता है ।
सावन सारा सूखा सूखा लगता है ।।

जाने क्यूँ मरते हैं उस पर दीवाने ।
इश्क़ उसे जब खेल तमाशा लगता है ।।

काहकशाँ से टूटा जो इक तारा तो ।
चाँद का चेहरा उतरा उतरा लगता है ।।

तेरी अना से टूट रहा है वह रिश्ता ।
जिसकी ख़ातिर एक ज़माना लगता है ।।

आग से मत खेला करिए चुपके चुपके ।
घर जलने में एक शरारा लगता है ।।

दर्द विसाले यार ने ख़त में है लिक्खा ।
उस पर सुबहो शाम का पहरा लगता है ।।

छुप छुप कर सबने देखा रोते जिसको ।।
उसके दिल का ज़ख़्म पुराना लगता है ।

शम्अ जलेगा परवाना इक दिन तुुुझ से ।
हुस्न का तेरे ये दीवाना लगता है ।।

मांग रहा है वफ़ा के बदले जान कोई ।
कैसे कह दूं नेक इरादा लगता है।।

तुझको सारी रात निहारा करते हम ।
चाँद बता तू कौन हमारा लगता है ।।

लिख डाला है तुमने जो कुछ पन्नों में ।
यह तो मेरा एक फ़साना लगता है ।।

-डॉ.नवीन मणि त्रिपाठी 

शब्दार्थ - 
काहकशाँ - शुद्ध फ़ारसी शब्द 
उर्दू में कहकशाँ हिंदी में तारामंडल
शरारा -चिंगारी


मौलिक अप्रकाशित

Sunday, May 26, 2019

मर्म-व्यथा ...... अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’

कहाँ गया तू मेरा लाल।
आह! काढ़ ले गया कलेजा आकर के क्यों काल।

पुलकित उर में रहा बसेरा।
था ललकित लोचन में देरा।
खिले फूल सा मुखड़ा तेरा।
प्यारे था जीवन-धान मेरा।
रोम रोम में प्रेम प्रवाहित होता था सब काल।1।

तू था सब घर का उँजियाला।
मीठे बचन बोलने वाला।
हित-कुसुमित-तरु सुन्दर थाला।
भरा लबालब रस का प्याला।
अनुपम रूप देखकर तेरा होती विपुल निहाल।2।

अभी आँख तो तू था खोले।
बचन बड़े सुन्दर थे बोले।
तेरे भाव बड़े ही भोले।
गये मोतियों से थे तोले।
बतला दे तू हुआ काल कवलित कैसे तत्काल।3।

देखा दीपक को बुझ पाते।
कोमल किसलय को कुँभलाते।
मंजुल सुमनों को मुरझाते।
बुल्ले को बिलोप हो जाते।
किन्तु कहीं देखी न काल की गति इतनी बिकराल।4।

चपला चमक दमक सा चंचल।
तरल यथा सरसिज-दल गत जल।
बालू-रचित भीत सा असफल।
नश्वर घन-छाया सा प्रतिपल।
या इन से भी क्षणभंगुर है जन-जीवन का हाल।5।

आकुल देख रहा अकुलाता।
मुझ से रहा प्यार जतलाता।
देख बारि नयनों में आता।
तू था बहुत दुखी दिखलाता।
अब तो नहीं बोलता भी तू देख मुझे बेहाल।6।

तेरा मुख बिलोक कुँभलाया।
कब न कलेजा मुँह को आया।
देख मलिन कंचन सी काया।
विमल विधाु-वदन पर तम छाया।
कैसे निज अचेत होते चित को मैं सकूँ सँभाल।7।

ममता मयी बनी यदि माता।
क्यों है ममता-फल छिन जाता।
विधि है उर किस लिए बनाता।
यदि वह यों है बिधा विधा पाता।
भरी कुटिलता से हूँ पाती परम कुटिल की चाल।8।

किस मरु-महि में जीवन-धारा।
किस नीरवता में रव प्यारा।
किस अभाव में स्वभाव सारा।
किस तम में आलोक हमारा।
लोप हो गया, मुझ दुखिया को दुख-जल-निधि में डाल।9।

आज हुआ पवि-पात हृदय पर।
सूखा सकल सुखों का सरवर।
गिरा कल्प-पादप लोकोत्तर।
छिना रत्न-रमणीय मनोहर।
कौन लोक में गया हमारा लोक-अलौकिक बाल।10।
-अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’

Saturday, May 25, 2019

मोहक तस्वीर बदल दोगे...अदम गोंड़वी

गर चंद तवारीखी तहरीर बदल दोगे
 क्या इनसे किसी कौम की तक़दीर बदल दोगे

 जायस से वो हिन्दी की दरिया जो बह के आई
 मोड़ोगे उसकी धारा या नीर बदल दोगे

 जो अक्स उभरता है रसख़ान की नज्मों में
 क्या कृष्ण की वो मोहक तस्वीर बदल दोगे

 तारीख़ बताती है तुम भी तो लुटेरे हो
 क्या द्रविड़ों से छीनी जागीर बदल दोगे
-- अदम गोंडवी

Friday, May 24, 2019

कुछ अशआर...प्रीति श्रीवास्तव

वफा के बदले वफा क्यूँ नहीं देते।
जख्म दिया है दवा क्यूँ नहीं देते।।

आंख है नम जो तुम्हारी साथ से।
तुम उसे अभी भुला क्यूँ नहीं देते।।

मुहब्बत नहीं जब तुम्हारी रूह से।
गुनाह की उसे सजा क्यूँ नहीं देते।।
-प्रीति श्रीवास्तव

Thursday, May 23, 2019

फ्लाईओवर पर तेजी से दौड़ता हुआ शहर:) .....संजय भास्कर

फ्लाईओवर पर तेजी से दौड़ता 
हुआ शहर
यह वह शहर नहीं रहा अब
जिस शहर में 
'' मैं कई वर्षो पहले आया था ''
अब तो यह शहर हर समय भागता 
नजर आता है !
कच्ची सड़के ,कच्चे मकानों
और साधन के नाम पर
पर साईकल पर चलने 
वाले लोग 
रहते है अब आलिशान घरों में
और दौड़ते है तेजी से कारों में
नए आसमान की तलाश में
फ्लाईओवर के आर- पार
मोटरसाइकल कारों पर
तेजी से दौड़ता 
हुआ शहर
पहुच गया है नई सदी में
मोबाइल और इन्टरनेट के जमाने में
बहुत तेजी से बदल रहा है
..........छोटा सा शहर  !!!

-- संजय भास्कर 

Wednesday, May 22, 2019

शब्द ....श्वेता सिन्हा

मौन हृदय के आसमान पर
जब भावों के उड़ते पाखी,
चुगते एक-एक मोती मन का 
फिर कूजते बनकर शब्द।

कहने को तो कुछ भी कह लो
न कहना जो दिल को दुखाय,
शब्द ही मान है,शब्द अपमान
चाँदनी,धूप और छाँव सरीखे शब्द।

न कथ्य, न गीत और हँसी निशब्द
रूंधे कंठ प्रिय को न कह पाये मीत,
पीकर हृदय की वेदना मन ही मन 
झकझोर दे संकेत में बहते शब्द।

कहने वाले तो कह जाते है 
रहते उलझे मन के धागों से,
कभी टीसते कभी मोहते 
साथ न छोड़े बोले-अबोले शब्द।

फूल और काँटे,हृदय भी बाँटे
हीरक,मोती,मानिक,माटी,धूल,
कौन है सस्ता,कौन है मँहगा
मानुष की कीमत बतलाते शब्द।

-श्वेता सिन्हा

Tuesday, May 21, 2019

हाइकु..... डॉ.यासमीन ख़ान

मौन वेदना
हँसते हुए मुख
 नम हैं नैना
---------

कर्म है सिंधु
दूर अभी साहिल
नियति बिंदु।
---------

मन हिलोर
सजे याद की बज़्म
प्रेम ही ठौर।
-------

दिल को भाये
सदा से ही सागर
नैना रिझाये।
------------

महके यास्मीं 
जूही,चंपा,कली सी
सजी सी ज़मीं।
डॉ.यासमीन ख़ान 
02-05-2019

Monday, May 20, 2019

शायरी जाती रही...नामालूम ..व्हाट्सएप से


शौक़ सारे छिन गये, दीवानगी जाती रही
आयीं ज़िम्मेदारियाँ, तो आशिकी जाती रही

मांगते थे ये दुआ, हासिल हो हमको दौलतें
और जब आयी अमीरी, शायरी जाती रही

मय किताब-ए-पाक़ मेरी, और साक़ी है ख़ुदा
बोतलों से भर गया दिल, मयकशी जाती रही

रौशनी थी जब मुकम्मल, बंद थीं ऑंखें मेरी
खुल गयी आँखें मगर फिर रौशनी जाती रही

ये मुनाफ़ा, ये ख़सारा, ये मिला, वो खो गया
इस फेर में निनयानबे के ज़िन्दगी जाती रही

सिर्फ़ दस से पांच तक, सिमटी हमारी ज़िन्दगी
दफ़्तरी आती रही, आवारगी जाती रही

मुस्कुरा कर सितमग़र, फिर से हमको छल गया
भर गया हर ज़ख्म तो नाराज़गी जाती रही

उम्र बढ़ती जा रही है तुम बड़े होते नहीं
ऐसे तानों से हमारी, मसख़री जाती रही

हर उम्मीदें बर आईं हर खाहिशें हुई पूरी..,
लबे-तर से पुरकशीश वो तिश्नगी जाती रही..... 
-नामालूम ..व्हाट्सएप से

Sunday, May 19, 2019

एक प्रेमगीत-सात रंग का छाता बनकर....जयकृष्ण राय तुषार

सात रंग का
छाता बनकर
कड़ी धूप में तुम आती हो ।
अलिखित
मौसम के गीतों को
मीरा जैसा तुम गाती हो ।

जब सारा 
संसार हमारा साथ
छोड़कर चल देता है,
तपते हुए
माथ पर तेरा
हाथ बहुत सम्बल देता है,
आँगन में
चाँदनी रात हो,
चौरे पर दीया-बाती हो ।

कभी रूठना
और मनाना
इसमें भी श्रृंगार भरा है,
बादल-बिजली के
गर्जन से
अमलतास वन हरा-भरा है,
बार -बार
पढ़ता सारा घर
तुम तो एक सगुन पाती हो ।
-जयकृष्ण राय तुषार

Saturday, May 18, 2019

कविता की तलाश ......सरिता यादव

क्या लिखूँ मैं,
मेरे ख़ुदा मुझे एक कविता चाहिए।
कभी न सही 
अभी और इसी वक़्त चाहिए।
मेरे ख़ुदा मुझे एक कविता चाहिए, 
ताज न शोहरत चाहिए।
मेरे ख़ुदा मुझे 
कुछ शब्द चाहिए।
लिख सकूँ दिल की बात  
टूटी बिखरी यादों के अल्फ़ाज़
ढूँढ रही स्वछंद छंद।
ऐसी पंक्ति की कविता चाहिए 
मेरे ख़ुदा मुझे एक शब्द चाहिए।
मेरे ख़ुदा मुझे एक कविता चाहिए।
-सरिता यादव 

Friday, May 17, 2019

चारकोल....पूजा प्रियंवदा

याद चारकोल स्केच है 
धीरे-धीरे मन की पृष्ठभूमि में 
घुलने लगती है

तुम्हारा छूना 
एक स्थायी गोदना 
रूह के माथे पर 
धुंधलाने लगा है

आसमान 
काले और सफ़ेद के बीच 
नीला होना भुला चुका है

तुम्हारी मोहब्बत
दीमक बन ख़ोखला
कर रही है मेरे दिल को


Thursday, May 16, 2019

रजतरश्मियों की छाया में धूमिल घन सा वह आता ....महादेवी वर्मा

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रजतरश्मियों की छाया में धूमिल घन सा वह आता;
इस निदाघ के मानस में करुणा के स्रोत बहा जाता !

उसमें मर्म छिपा जीवन का,
एक तार अगणित कंपन का,
एक सूत्र सबके बंधन का,
संसृति के सूने पृष्ठों में करुणकाव्य वह लिख जाता !

वह उर में आता बन पाहुन,
कहता मन से, अब न कृपण बन,
मानस की निधियाँ लेता गिन,
दृग-द्वारों को खोल विश्वभिक्षुक पर, हँस बरसा आता !

यह जग है विस्मय से निर्मित,
मूक पथिक आते जाते नित,
नहीं प्राण प्राणों से परिचित,
यह उनका संकेत नहीं जिसके बिन विनिमय हो पाता !

मृगमरीचिका के चिर पथ पर,
सुख आता प्यासों के पग धर,
रुद्ध हृदय के पट लेता कर,
गर्वित कहता ‘मैं मधु हूँ मुझसे क्या पतझर का नाता’ !

दुख के पद छू बहते झर झर,
कण कण से आँसू के निर्झर,
हो उठता जीवन मृदु उर्वर,
लघु मानस में वह असीम जग को आमंत्रित कर लाता !
-महादेवी वर्मा 


Wednesday, May 15, 2019

तुम जीवित हो माने कैसे?....श्वेता सिन्हा

चित्र-मनस्वी प्रांजल

लीपे चेहरों की भीड़ में
सच-झूठ पहचाने कैसे?
अनुबंध टूटते विश्वास की
मौन आहट जाने कैसे?

नब्ज संवेदना की टटोले
मोहरे बना कर मासूमियत को,
शह मात की बिसात में खेले
शकुनियों के रुप पहचाने कैसे?

खींचते है प्राण,अजगर बन
निष्प्राण अवचेतन करके
निगलते सशरीर धीरे-धीरे
फनहीन सर्पों को पहचाने कैसे?

सोच नहीं बदलता ज़माना 
कभी नारी के परिप्रेक्ष्य में
बदलते युग के गान में दबी
सिसकियों को पहचाने कैसे?

बैठे हो कान में उंगलियाँ डाले
नहीं सुनते हो चीखों को?
नहीं झकझोरती है संवेदनाएँ?
मृत नहीं तुम जीवित हो माने कैसे?

Tuesday, May 14, 2019

खड़े जहाँ पर ठूँठ.....रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'

खड़े जहाँ पर ठूँठ
कभी वहाँ
पेड़ हुआ करते थे।
सूखी तपती
इस घाटी में कभी
झरने झरते थे।

छाया के 
बैरी थे लाखों
लम्पट ठेकेदार,
मिली-भगत सब 
लील गई थी
नदियाँ पानीदार।
अब है सूखी झील 
कभी यहाँ 
पनडुब्बा तिरते थे।

बदल गए हैं 
मौसम सारे
खा-खा करके मार
धूल-बवण्डर
सिर पर ढोकर 
हवा हुई बदकार 
सूखे कुएँ,
बावड़ी सूखी
जहाँ पानी भरते थे।
-रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'

Monday, May 13, 2019

फेक इश्क.....ब्लॉगर आकांक्षा सक्सेना

भटके हुये दिलों के प्रेमी
आत्म मंजिल तक
नहीं पहुंचते हैं... 
फिर गलत इंसान से
धोखा खाकर
सही इंसान
से बदला लेते हैं......
घर की तकलीफ़ें.
चौराहे पर उड़ेलकर
घर को मकां
कर लेते हैं.... 
जीवन में हम इंसा
सिर्फ़ सुख के लिए
बिखरते हैं... 
मेरे युवा भाई-बहनों
माता-पिता पर ना
तुम भार बनो... 
फेक इश्क में
बदनाम ना होकर
जनसेवा से
यशवान बनो
बनो राष्ट्रभक्त
गद्दारों के तुम
काल बनो
आतंक मिटे
इस धरती से
मिलकर कुछ
ऐसे काम करो






Sunday, May 12, 2019

मातृदिवस पर दो कविताएँ

तुमसा कोई नहीं है मां
मेरे हर दुःख-दर्द की
दवा है मेरी मां,
मुसीबतों के समय
मख़मली ढाल है मेरी मां,
अपनी चमड़ी के जूते बनाकर
पहनाऊं वह भी कम है, मां,
इस जहां में तो क्या,
किसी भी जहां में
तुमसा कोई नहीं है मां
-विनीता शर्मा


इंद्रधनुष की रंगत मां

प्यार की परिभाषा है मां
जीने की अभिलाषा है मां
हृदय में जिसके सार छुपा
शब्दों में छिपी भाषा है मां
इंद्रधनुष की रंगत है मां
संतों की संगत है मां
देवी रूप बसा हो जिसमें
ज़मीं पर ऐसी जन्नत है मां
-मधु टांक



माँ .....डॉ. कविता भट्ट

माँ जब मैं तेरे पेट में पल रही थी
मेरे जन्म लेने की ख़ुशी का रास्ता देखती 
तेरी आँखों की प्रतीक्षा और गति
उस उमंग और उत्साह को
यदि लिख पाती 
तो शायद मैं लेखिका बन जाती

 पहाड़ के दुरूह
चढ़ाई-उतराई वाले रास्तों पर
घास-लकड़ी-पानी और तमाम बोझ के साथ
ढोती रही तू मुझे अपने गर्भ में
तेरे पैरों में उस समय जो छाले पड़े
उस दर्द को यदि शब्दों में पिरो लेती
तो शायद मैं लेखिका बन जाती

 तेज़ धूप-बारिश-आँधी में भी
तू पहाड़ी सीढ़ीदार खेतों में
दिन-दिन भर झुककर 
धान की रोपाई करती थी
पहाड़ी रास्तों पर चढ़ाई-उतराई को 
नापती तेरी आँखों का दर्द और
उनसे टपकते आँसुओं का हिसाब
यदि मैं काग़ज़ पर उकेर पाती
तो शायद मैं लेखिका बन जाती

 तेरी ज़िंदगी सूखती रही
मगर तू हँसती रही
तेरे चेहरे की एक-एक झुर्री पर
एक-एक किताब अगर मैं लिख पाती
तो शायद मैं लेखिका बन जाती

 आज मैं हवाई जहाज़ से उड़कर
करती रहती हूँ देश-विदेश की यात्रा
मेरी पास है सारी सुख-सुविधा
गहने-कपड़े सब कुछ है मेरे पास
मगर तेरे बदन पर नहीं था 
बदलने को फटा-पुराना कपड़ा
थी तो केवल मेहनत और आस
मैं जो भी हूँ तेरे उस संघर्ष से ही हूँ
उस मेहनत और आस का हिसाब
काश! मैं लिख पाती 
तो शायद मैं लेखिका बन जाती ...
-डॉ. कविता भट्ट