वेदों
में ज्ञान-विज्ञान की बहुत सारी बातें भरी पड़ी हैं। आज का विज्ञान जो खोज
रहा है वह पहले ही खोजा जा चुका है। बस फर्क इतना है कि आज का विज्ञान जो
खोज रहा है उसे वह अपना आविष्कार बता रहा है और उस पर किसी पश्चिमी देशों
के वैज्ञानिकों का लेबल लगा रहा है।
हालांकि
यह इतिहास सिद्ध है कि भारत का विज्ञान और धर्म अरब के रास्ते यूनान
पहुंचा और यूनानियों ने इस ज्ञान के दम पर जो आविष्कार किए और सिद्धांत
बनाए उससे आधुनिक विज्ञान को मदद मिली। यहां प्रस्तुत है भारत के उन दस
महान ऋषियों और उनके आविष्कार के बारे में संक्षिप्त में जानकारी। दसवें
ऋषि के बारे में जानकार निश्चित ही आपको आश्चर्य होगा।
1. भारतीय इतिहास में ऋषि कणाद को परमाणुशास्त्र का जनक
परमाणु सिद्धांत के आविष्कारक : परमाणु
बम के बारे में आज सभी जानते हैं। यह कितना खतरनाक है यह भी सभी जानते
हैं। आधुनिक काल में इस बम के आविष्कार हैं- जे. रॉबर्ट ओपनहाइमर। रॉबर्ट
के नेतृत्व में 1939 से 1945 कई वैज्ञानिकों ने काम किया और 16 जुलाई 1945
को इसका पहला परीक्षण किया गया।हालांकि
परमाणु सिद्धांत और अस्त्र के जनक जॉन डाल्टन को माना जाता है, लेकिन उनसे
भी 2500 वर्ष पर ऋषि कणाद ने वेदों वे लिखे सूत्रों के आधार पर परमाणु
सिद्धांत का प्रतिपादन किया था।
भारतीय
इतिहास में ऋषि कणाद को परमाणुशास्त्र का जनक माना जाता है। आचार्य कणाद
ने बताया कि द्रव्य के परमाणु होते हैं। कणाद प्रभास तीर्थ में रहते थे।
विख्यात
इतिहासज्ञ टीएन कोलेबु्रक ने लिखा है कि अणुशास्त्र में आचार्य कणाद तथा
अन्य भारतीय शास्त्रज्ञ यूरोपीय वैज्ञानिकों की तुलना में विश्वविख्यात थे।
2. 2500 वर्ष पूर्व वायुयान की खोज भारद्वाज ऋषि ने कर ली थी।
ऋषि भारद्वाज : राइट बंधुओं से 2500
वर्ष पूर्व वायुयान की खोज भारद्वाज ऋषि ने कर ली थी। हालांकि वायुयान
बनाने के सिद्धांत पहले से ही मौजूद थे। पुष्पक विमान का उल्लेख इस बात का
प्रमाण हैं लेकिन ऋषि भारद्वाज ने 600 ईसा पूर्व इस पर एक विस्तृत शास्त्र
लिखा जिसे विमान शास्त्र के नाम से जाना जाता है।
प्राचीन उड़न खटोले : हकीकत या कल्पना?
भारद्वाज
के विमानशास्त्र में यात्री विमानों के अलावा, लड़ाकू विमान और स्पेस शटल
यान का भी उल्लेख मिलता है। उन्होंने एक ग्रह से दूसरे ग्रह पर उड़ान भरने
वाले विमानों के संबंध में भी लिखा है, साथ ही उन्होंने वायुयान को अदृश्य
कर देने की तकनीक का उल्लेख भी किया।
3. बौधायन भारत के प्राचीन गणितज्ञ और शुल्ब सूत्र तथा श्रौतसूत्र के रचयिता
बौधायन : बौधायन भारत के प्राचीन
गणितज्ञ और शुल्ब सूत्र तथा श्रौतसूत्र के रचयिता हैं। पाइथागोरस के
सिद्धांत से पूर्व ही बौधायन ने ज्यामिति के सूत्र रचे थे लेकिन आज विश्व
में यूनानी ज्यामितिशास्त्री पाइथागोरस और यूक्लिड के सिद्धांत ही पढ़ाए
जाते हैं।दरअसल,
2800 वर्ष (800 ईसापूर्व) बौधायन ने रेखागणित, ज्यामिति के महत्वपूर्ण
नियमों की खोज की थी। उस समय भारत में रेखागणित, ज्यामिति या त्रिकोणमिति
को शुल्व शास्त्र कहा जाता था।
शुल्व
शास्त्र के आधार पर विविध आकार-प्रकार की यज्ञवेदियां बनाई जाती थीं। दो
समकोण समभुज चौकोन के क्षेत्रफलों का योग करने पर जो संख्या आएगी उतने
क्षेत्रफल का ‘समकोण’ समभुज चौकोन बनाना और उस आकृति का उसके क्षेत्रफल के
समान के वृत्त में परिवर्तन करना, इस प्रकार के अनेक कठिन प्रश्नों को
बौधायन ने सुलझाया।
4. न्यूटन से 500 वर्ष पूर्व भास्कराचार्य ने गुरुत्वाकर्षण के नियम को जान लिया था
भास्कराचार्य (जन्म- 1114 ई., मृत्यु- 1179 ई.) : प्राचीन
भारत के सुप्रसिद्ध गणितज्ञ एवं खगोलशास्त्री थे। भास्कराचार्य द्वारा
लिखित ग्रंथों का अनुवाद अनेक विदेशी भाषाओं में किया जा चुका है।
भास्कराचार्य द्वारा लिखित ग्रंथों ने अनेक विदेशी विद्वानों को भी शोध का
रास्ता दिखाया है। न्यूटन से 500 वर्ष पूर्व भास्कराचार्य ने गुरुत्वाकर्षण
के नियम को जान लिया था और उन्होंने अपने दूसरे ग्रंथ 'सिद्धांतशिरोमणि'
में इसका उल्लेख भी किया है।गुरुत्वाकर्षण
के नियम के संबंध में उन्होंने लिखा है, 'पृथ्वी अपने आकाश का पदार्थ
स्वशक्ति से अपनी ओर खींच लेती है। इस कारण आकाश का पदार्थ पृथ्वी पर गिरता
है।' इससे सिद्ध होता है कि पृथ्वी में गुत्वाकर्षण की शक्ति है।
भास्कराचार्य
द्वारा ग्रंथ ‘लीलावती’ में गणित और खगोल विज्ञान संबंधी विषयों पर प्रकाश
डाला गया है। सन् 1163 ई. में उन्होंने ‘करण कुतूहल’ नामक ग्रंथ की रचना
की। इस ग्रंथ में बताया गया है कि जब चन्द्रमा सूर्य को ढंक लेता है तो
सूर्यग्रहण तथा जब पृथ्वी की छाया चन्द्रमा को ढंक लेती है तो चन्द्रग्रहण
होता है। यह पहला लिखित प्रमाण था जबकि लोगों को गुरुत्वाकर्षण,
चन्द्रग्रहण और सूर्यग्रहण की सटीक जानकारी थी।
5. पतंजलि को भारत का मनोवैज्ञानिक और चिकित्सक कहा जाता है।
पतंजलि : योगसूत्र के रचनाकार पतंजलि
काशी में ईसा पूर्व दूसरी शताब्दी में चर्चा में थे। पतंजलि के लिखे हुए 3
प्रमुख ग्रंथ मिलते हैं- योगसूत्र, पाणिनी के अष्टाध्यायी पर भाष्य और
आयुर्वेद पर ग्रंथ। पतंजलि को भारत का मनोवैज्ञानिक और चिकित्सक कहा जाता
है। पतंजलि ने योगशास्त्र को पहली दफे व्यवस्था दी और उसे चिकित्सा और
मनोविज्ञान से जोड़ा। आज दुनियाभर में योग से लोग लाभ पा रहे हैं।पतंजलि
एक महान चिकित्सक थे। पतंजलि रसायन विद्या के विशिष्ट आचार्य थे- अभ्रक,
विंदास, धातुयोग और लौहशास्त्र इनकी देन है। पतंजलि संभवत: पुष्यमित्र शुंग
(195-142 ईपू) के शासनकाल में थे। राजा भोज ने इन्हें तन के साथ मन का भी
चिकित्सक कहा है।
अखिल
भारतीय आयुर्विज्ञान संस्था (एम्स) ने 5 वर्षों के अपने शोध का निष्कर्ष
निकाला कि योगसाधना से कर्करोग से मुक्ति पाई जा सकती है। उन्होंने कहा कि
योगसाधना से कर्करोग प्रतिबंधित होता है।
6. दुनिया के सभी रोगों के निदान का उपाय और उससे बचाव का तरीका बताया
आचार्य चरक : अथर्ववेद में आयुर्वेद
के कई सूत्र मिल जाएंगे। धन्वंतरि, रचक, च्यवन और सुश्रुत ने विश्व को
पेड़-पौधों और वनस्पतियों पर आधारित एक चिकित्साशास्त्र दिया। आयुर्वेद के
आचार्य महर्षि चरक की गणना भारतीय औषधि विज्ञान के मूल प्रवर्तकों में होती
है। ऋषि
चरक ने 300-200 ईसापूर्व आयुर्वेद का महत्वपूर्ण ग्रंथ 'चरक संहिता' लिखा
था। उन्हें त्वचा चिकित्सक भी माना जाता है। आचार्य चरक ने शरीरशास्त्र,
गर्भशास्त्र, रक्ताभिसरणशास्त्र, औषधिशास्त्र इत्यादि विषय में गंभीर शोध
किया तथा मधुमेह, क्षयरोग, हृदयविकार आदि रोगों के निदान एवं औषधोपचार
विषयक अमूल्य ज्ञान को बताया।
चरक
एवं सुश्रुत ने अथर्ववेद से ज्ञान प्राप्त करके 3 खंडों में आयुर्वेद पर
प्रबंध लिखे। उन्होंने दुनिया के सभी रोगों के निदान का उपाय और उससे बचाव
का तरीका बताया, साथ ही उन्होंने अपने ग्रंथ में इस तरह की जीवनशैली का
वर्णन किया जिसमें कि कोई रोग और शोक न हो।
आठवीं
शताब्दी में चरक संहिता का अरबी भाषा में अनुवाद हुआ और यह शास्त्र
पश्चिमी देशों तक पहुंचा। चरक के ग्रंथ की ख्याति विश्वव्यापी थी।
7. जटिल शल्य चिकित्सा के सिद्धांत
महर्षि सुश्रुत : महर्षि सुश्रुत
सर्जरी के आविष्कारक माने जाते हैं। 2600 साल पहले उन्होंने अपने समय के
स्वास्थ्य वैज्ञानिकों के साथ प्रसव, मोतियाबिंद, कृत्रिम अंग लगाना, पथरी
का इलाज और प्लास्टिक सर्जरी जैसी कई तरह की जटिल शल्य चिकित्सा के
सिद्धांत प्रतिपादित किए।आधुनिक
विज्ञान केवल 400 वर्ष पूर्व ही शल्य क्रिया करने लगा है, लेकिन सुश्रुत
ने 2600 वर्ष पर यह कार्य करके दिखा दिया था। सुश्रुत के पास अपने बनाए
उपकरण थे जिन्हें वे उबालकर प्रयोग करते थे।
महर्षि
सुश्रुत द्वारा लिखित ‘सुश्रुत संहिता' ग्रंथ में शल्य चिकित्सा से
संबंधित महत्वपूर्ण जानकारी मिलती है। इस ग्रंथ में चाकू, सुइयां, चिमटे
इत्यादि सहित 125 से भी अधिक शल्य चिकित्सा हेतु आवश्यक उपकरणों के नाम
मिलते हैं और इस ग्रंथ में लगभग 300 प्रकार की सर्जरियों का उल्लेख मिलता
है।
8. नागार्जुन ने रसायन शास्त्र और धातु विज्ञान पर बहुत शोध कार्य किया
नागार्जुन : नागार्जुन ने रसायन
शास्त्र और धातु विज्ञान पर बहुत शोध कार्य किया। रसायन शास्त्र पर
इन्होंने कई पुस्तकों की रचना की जिनमें 'रस रत्नाकर' और 'रसेन्द्र मंगल'
बहुत प्रसिद्ध हैं।रसायनशास्त्री
व धातुकर्मी होने के साथ-साथ इन्होंने अपनी चिकित्सकीय सूझ-बूझ से अनेक
असाध्य रोगों की औषधियाँ तैयार कीं। चिकित्सा विज्ञान के क्षेत्र में इनकी
प्रसिद्ध पुस्तकें 'कक्षपुटतंत्र', 'आरोग्य मंजरी', 'योग सार' और
'योगाष्टक' हैं।
नागार्जुन
द्वारा विशेष रूप से सोना धातु एवं पारे पर किए गए उनके प्रयोग और शोध
चर्चा में रहे हैं। उन्होंने पारे पर संपूर्ण अध्ययन कर सतत 12 वर्ष तक
संशोधन किया। नागार्जुन पारे से सोना बनाने का फॉर्मूला जानते थे। अपनी एक
किताब में उन्होंने लिखा है कि पारे के कुल 18 संस्कार होते हैं। पश्चिमी
देशों में नागार्जुन के पश्चात जो भी प्रयोग हुए उनका मूलभूत आधार
नागार्जुन के सिद्धांत के अनुसार ही रखा गया।
नागार्जुन
की जन्म तिथि एवं जन्मस्थान के विषय में अलग-अलग मत हैं। एक मत के अनुसार
इनका जन्म 2री शताब्दी में हुआ था तथा अन्य मतानुसार नागार्जुन का जन्म सन्
931 में गुजरात में सोमनाथ के निकट दैहक नामक किले में हुआ था। बौद्धकाल
में भी एक नागार्जुन थे।
9. अष्टाध्यायी मात्र व्याकरण ग्रंथ नहीं है।
पाणिनी : दुनिया का पहला व्याकरण
पाणिनी ने लिखा। 500 ईसा पूर्व पाणिनी ने भाषा के शुद्ध प्रयोगों की सीमा
का निर्धारण किया। उन्होंने भाषा को सबसे सुव्यवस्थित रूप दिया और संस्कृत
भाषा का व्याकरणबद्ध किया। इनके व्याकरण का नाम है अष्टाध्यायी जिसमें 8
अध्याय और लगभग 4 सहस्र सूत्र हैं। व्याकरण के इस महनीय ग्रंथ में पाणिनी
ने विभक्ति-प्रधान संस्कृत भाषा के 4000 सूत्र बहुत ही वैज्ञानिक और
तर्कसिद्ध ढंग से संग्रहीत किए हैं।अष्टाध्यायी
मात्र व्याकरण ग्रंथ नहीं है। इसमें तत्कालीन भारतीय समाज का पूरा चित्र
मिलता है। उस समय के भूगोल, सामाजिक, आर्थिक, शिक्षा और राजनीतिक जीवन,
दार्शनिक चिंतन, खान-पान, रहन-सहन आदि के प्रसंग स्थान-स्थान पर अंकित हैं।
इनका
जन्म पंजाब के शालातुला में हुआ था, जो आधुनिक पेशावर (पाकिस्तान) के करीब
तत्कालीन उत्तर-पश्चिम भारत के गांधार में हुआ था। हालांकि पाणिनी के
पूर्व भी विद्वानों ने संस्कृत भाषा को नियमों में बांधने का प्रयास किया
लेकिन पाणिनी का शास्त्र सबसे प्रसिद्ध हुआ।
19वीं
सदी में यूरोप के एक भाषा विज्ञानी फ्रेंज बॉप (14 सितंबर 1791- 23
अक्टूबर 1867) ने पाणिनी के कार्यों पर शोध किया। उन्हें पाणिनी के लिखे
हुए ग्रंथों तथा संस्कृत व्याकरण में आधुनिक भाषा प्रणाली को और परिपक्व
करने के सूत्र मिले। आधुनिक भाषा विज्ञान को पाणिनी के लिखे ग्रंथ से बहुत
मदद मिली। दुनिया की सभी भाषाओं के विकास में पाणिनी के ग्रंथ का योगदान
है।
10.तारों को मिलाएंगे तो उससे मित्रावरुणशक्ति (Electricity) का उदय होगा
महर्षि अगस्त्य : महर्षि अगस्त्य एक
वैदिक ॠषि थे। निश्चित ही बिजली का आविष्कार थॉमस एडिसन ने किया लेकिन
एडिसन अपनी एक किताब में लिखते हैं कि एक रात मैं संस्कृत का एक वाक्य
पढ़ते-पढ़ते सो गया। उस रात मुझे स्वप्न में संस्कृत के उस वचन का अर्थ और
रहस्य समझ में आया जिससे मुझे मदद मिली।महर्षि
अगस्त्य राजा दशरथ के राजगुरु थे। इनकी गणना सप्तर्षियों की जाती है। ऋषि
अगस्त्य ने 'अगस्त्य संहिता' नामक ग्रंथ की रचना की।
आश्चर्यजनक रूप से इस ग्रंथ में विधुत उत्पादन से संबंधित सूत्र मिलते हैं-
संस्थाप्य मृण्मये पात्रे
ताम्रपत्रं सुसंस्कृतम्।
छादयेच्छिखिग्रीवेन
चार्दाभि: काष्ठापांसुभि:॥
दस्तालोष्टो निधात्वय: पारदाच्छादितस्तत:।
संयोगाज्जायते तेजो मित्रावरुणसंज्ञितम्॥
-अगस्त्य संहिता
अर्थात : एक मिट्टी का पात्र लें, उसमें ताम्र पट्टिका (Copper Sheet) डालें तथा शिखिग्रीवा (Copper sulphate) डालें, फिर बीच में गीली काष्ट पांसु (wet saw dust) लगायें, ऊपर पारा (mercury) तथा दस्त लोष्ट (Zinc) डालें, फिर तारों को मिलाएंगे तो उससे मित्रावरुणशक्ति (Electricity) का उदय होगा।
अगस्त्य संहिता में विद्युत का उपयोग इलेक्ट्रोप्लेटिंग (Electroplating) के
लिए करने का भी विवरण मिलता है। उन्होंने बैटरी द्वारा तांबा या सोना या
चांदी पर पॉलिश चढ़ाने की विधि निकाली अत: अगस्त्य को कुंभोद्भव (Battery Bone) कहते हैं।
--सौजन्यः बलवीर कुमार