Monday, July 31, 2017

मैंने छुआ, सहलाया उन्हें...शबनम शर्मा


बीच बाज़ार 
खिलौने वाले 
के खिलौने 
की आवाज़ से 
आकर्षित हो 
क़दम उसकी 
तरफ़ बढ़े।

मैंने छुआ,
सहलाया उन्हें 
व एक खिलौने 
को अंक में भरा
कि पीछे से कर्कष 
आवाज़ ने मुझे 
झंझोड़ा; 
‘‘तुम्हारी बच्चों की-सी 
हरकतें कब खत्म होंगी’’
सुनकर मेरा नन्हा बच्चा 
सहम-सा गया 
मेरी प्रौढ़ देह के अन्दर।
-शबनम शर्मा

Sunday, July 30, 2017

दर्द मज़े लेता है जो दुहराने में.....प्रस्तुतकर्ता- संदीप भारद्वाज


खुशबू जैसे लोग मिले अफ़साने में
एक पुराना खत खोला अनजाने में

जाना किसका ज़िक्र है इस अफ़साने में
दर्द मज़े लेता है जो दुहराने में

शाम के साये बालिस्तों से नापे हैं
चाँद ने कितनी देर लगा दी आने में

रात गुज़रते शायद थोड़ा वक्त लगे
ज़रा सी धूप दे उन्हें मेरे पैमाने में

दिल पर दस्तक देने ये कौन आया है
किसकी आहट सुनता है वीराने में ।

-प्रस्तुतकर्ता- 
संदीप भारद्वाज

Saturday, July 29, 2017

पंखुड़ियाँ ...24 कहानियो का संग्रह

आम के आम..गुठलियों के दाम
कहानी लेखकों के लिए सुनहरा मौका..

आई ब्लॉगर का संचालन करने वाली फर्म प्राची डिजिटल पब्लिकेशन द्वारा प्रकाशित होने जा रही 


में आमंत्रित है मात्र 2000 से 3000 शब्दों की मौलिक  अप्रकाशित कहानी

उपरोक्त कहानी संग्रह की बिक्री लाभ (आयका 75 प्रतिशत भाग के 24 लेखक बराबर के भागीदार रहेंगे अथवा प्रति -बुककी बिक्री की आय का 75 प्रतिशत भाग 24 लेखकों को देय होगा।

विस्तार से पढ़िए....

यदि आप कहानियां भी लिखते है तो आप प्राची डिजिटल पब्लिकेशन द्वारा जल्द ही प्रकाशित होने वाली -बुक "पंखुड़ियाँ" (24 लेखक और 24 कहानियाँके लिए आमंत्रितकी जा रही हैं। कहानी -मेल prachidigital5@gmail.com पर 31 अगस्ततक भेजी जा सकती हैं। तो देर किस बात की उठाईये कलम और भेज दीजिए अपनी कहानी। अधिक जानकारी केलिए https://goo.gl/ZnmRkM पर विजिट करें।
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Friday, July 28, 2017

‘अम्मा’....पीयूष शिवम


रो रहा था मैं करूँगा क्या अंधेरा हो गया,
ज्यों छिपाया माँ ने आँचल में सवेरा हो गया।

मिल्कियत सारे जहाँ की छान ली कुछ न मिला,
गोद में जाकर गिरे माँ की, बसेरा हो गया।

इस फ़रेब-ओ-झूठ  की दुनिया की नज़र न लगे,
माँ की बाँहों में गया, ममता का घेरा हो गया।

दिल कहे क्यों हिचकियाँ आतीं तुझे इतनी बता,
इस नज़र के सामने अम्मा का चेहरा हो गया।

माँ वही, अंगना वही, चूल्हा वही, मिट्टी वही,
याद आई तो शहर भी गाँव-खेड़ा हो गया।

तू ख़ज़ाने की दुआ करता रहा सारी उमर,
ले ख़ज़ाना दुआ का 'पीयूष' तेरा हो गया।

Thursday, July 27, 2017

डॉ. ए. पी. जे. अब्दुल कलाम जी को श्रद्धांजलि।

 जुलाई- 27 पुण्यतिथि

 डॉ. ए. पी. जे. अब्दुल कलाम

 शत-शत नमन

राष्ट्रपति, वैज्ञानिक, शिक्षक, फिलॉसफ़र और कमाल के इंसान 
एक व्यक्ति में इतनी गुण? 
डॉ. ए. पी. जे. अब्दुल कलाम जी को श्रद्धांजलि।

“एक महान विचारक, विद्वान, विज्ञानविद और उच्च कोटी के मनुष्य, भारत के 11वें राषट्रपति डॉ. ए. पी. जे. अब्दुल कलाम, एक ख्याती प्राप्त वैज्ञानिक इंजीनियर जिन्होने भारत को उन्नत देशों के समूह में सबसे आगे लाने के लिये प्रक्षेपण यानो तथा मिसाइल प्रऔद्योगिकी के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान दिया है।”


मैं अब भी पूनम की रात में अपनी माँ काे याद करता हूँ। 
उस स्मृति की छवियाँ मेरी पुस्तक 
"अग्नि की उड़ान" 
में संग्रहित "माँ" कविता में उभरी हैंः .....
डॉ. ए. पी. जे. अब्दुल कलाम
.....

मिसाइल मैन

डॉ.ए.पी.जे.अब्दुल कलाम

शत शत नमन
यह प्रस्तुति श्री कृष्णमोहन सिंह के द्वारा

" निशा " ......चंचलिका शर्मा


क्यों इतनी 
सुहानी लगती हो 
कुछ मासूम , कुछ नादान
कभी 
" नव निशा " सी लगती हो ....
एक 
रूमानी सी मुस्कान 
चेहरे पर लिए 
दिन 
भर की थकान सबकी 
ओझल करती 
सबको तुम सुलाती हो ...... 
- चंचलिका शर्मा

Wednesday, July 26, 2017

उपहार....अर्कित पाण्डेय

मैं रहा रात भर सोचता बस प्रिये,
दूँ क्या उपहार में जन्मदिन पर तुम्हें।

प्रातः आकाश की लालिमा दूँ तुम्हे,
या दूँ पंछियों का चहचहाता वो स्वर,
नीले आकाश की नीलिमा दूँ तुम्हे,
या दूँ भेंट पुष्पों का गुच्छा मधुर,

पर प्रकृति सी सजल तुम स्वयं हो प्रिये,
क्या ये उपहार देना उचित है तुम्हें।

मैं रहा रात भर सोचता बस प्रिये,
दूँ क्या उपहार में जन्मदिन पर तुम्हें।

अपने पुण्यों का सारा मैं फल दूँ तुम्हे,
या दूँ अपने हिस्से की सारी हंसी,
विधाता की स्याही कलम दूँ तुम्हें,
लिख लो तकदीर में अपने हर पल खुशी,

है जो दिल वो तेरा,है जो जो वो तेरी,
संग मेरे बचा क्या समर्पण को तुम्हे।

मैं रहा रात भर सोचता बस यही,
दूँ क्या उपहार में जन्मदिन पर तुम्हें


हाथ खाली हैं मेरे मैं क्या दूँ तुम्हें,
इस सघन विश्व में भी नहीं कुछ मेरा,
सारा जीवन समर्पित किया है तुम्हें,
मैं रहा बस तेरा,और रहूंगा तेरा,

दे रहा हूँ मैं तुमको वचन ये प्रिये,
सारे जीवन पर मेरे अब हक है तुम्हे।

मैं रहा रात भर सोचता बस प्रिये,
दूँ क्या उपहार में जन्मदिन पर तुम्हें।

-अर्कित पाण्डेय

Tuesday, July 25, 2017

एक शाश्वत सत्य ...निधि सक्सेना


घुंधला धुंधला सा स्वप्न था वो
तुम थमी थमी मुस्कुराहटों में गुम
हाथ में कलम लिए
मुझे सोचते
मुझे गुनगुनाते
मुझ पर नज़्म लिखते..
वहीं थिर गईं आँखे
वहीं स्थिर हो गया समय
सतत अविनाशी..
मैं उसी स्वप्न में कैद हो गई हूँ..
कि तुम चाहो
इससे अधिक कुछ चाह नही..
यही निर्वाण है मेरा
यही नितांत सुख..
आँखो में ठहरा ये स्वप्न
बस यही है एक शाश्वत सत्य ...
~निधि सक्सेना

Monday, July 24, 2017

आग, पानी और प्यास....प्रेम नंदन









जब भी लगती है उन्हें प्यास
वे लिखते हैं
खुरदुरे कागज के चिकने चेहरे पर
कुछ बूँद पानी
और धधकने लगती है आग !
इसी आग की आँच से
बुझा लेते हैं वे
अपनी हर तरह की प्यास !
मदारियों के
आधुनिक संस्करण हैं वे
आग और पानी को
कागज में बाँधकर
जेब में रखना
जानते हैं वे!
- प्रेम नंदन
संपर्क – 
उत्तरी शकुन नगर, 
सिविल लाइन्स, 
फतेहपुर, (उ०प्र०)|
मोबाइल – 09336453835
ईमेल - premnandan10@gmail.com

Sunday, July 23, 2017

आंखो से गिरे है मोती हजारो.....प्रीती श्रीवास्तव

तेरी बेवफाई का शिकवा सनम ! 
मै किसी से कर नही सकती !!

है गुनाहगार तू मेरा कहकर !
साहिब आहें भर नही सकती!!

इल्जाम क्या दूं मै तुझको !
बिन आइना संवर नही सकती !!

की हिमाकत मैने जहां मे सनम !
संगदिलो से जंग लड़ नही सकती !!

अब तो खुदाया का आसरा है !
दर्दे-दिल से अब गुजर नही सकती !!

लिख दूं नाम तेरा हर हरफ पर!
शरारत मै ऐसी कर नही सकती !!

तारीफ क्या करूं उस नाचीज की !
आबरू जिसकी बिगड़ नही सकती !!

आंखो से गिरे है मोती हजारो !
दामन खाली ये भर नही सकती !!

तराना क्या छेड़ू ग़ज़ल मे !
प्रीत बिन मुकम्मल कर नही सकती !!

कुछ नया कर जाऊं तो अच्छा! 
आखिरी दम मगर पढ़ नही सकती !!

सात फेरे सात जन्मों का बंधन!
सात आरजुये मगर निखर नही सकती!!

कर जाये वो वफा तेरे साथ भी! 
उम्मीद न कर ठहर नही सकती !!

तेरी पालकी में चार फूल अच्छे !
तेरे नाम से बगिया बिखर नही सकती !!

-प्रीती श्रीवास्तव..

Saturday, July 22, 2017

एक और क्षितिज .......चंचलिका शर्मा


क्षितिज के 
उस पार भी है 
एक और क्षितिज 
चल मन चलें उस पार ..........

जहाँ तितलियाँ
इठलातीं , इतराती 
लहराती लहरों सी है 
जैसे दूर सागर के उस पार .......

भटक नहीं 
किसी बंधन में 
छोड़ उस पार की चिंता 
रम जा अब सिर्फ़ ही इस पार ......... 
- चंचलिका शर्मा

Friday, July 21, 2017

माँ की सीख..... निधि सक्सेना



सुनो बेटा
वहाँ परदेस में
अपनी दोनों कलाईयों पर घड़ी बाँधे रखना..
हाँ ये कुछ अजीब जरूर है
पर इसमें हर्ज कुछ नही..
तुम्हारी बायीं कलाई पर बंधी घड़ी स्थानिक समय दिखाए
वहां की धारा के संग बहने के लिए..
और दायीं कलाई पर बंधी घड़ी पर
भारत का समय बाँधना 
कि अपने दायीं ओर से तुम हमेशा आश्वस्त रहो
कि हम हैं यहाँ हर वक्त हर घड़ी..
कि तुम्हें यहाँ के समय का संज्ञान रहे
कि तुम हमेशा बंधे रहो 
अपने भूमि से
अपने रिश्तों से..
कि घड़ी की टिक टिक
तुम्हें यहाँ की मधुरता की याद दिलाती रहे
पल पल आशा और सुख की स्मृतियाँ रहें
और वही टिक टिक
हर निराशा और कुंठा मिटाती रहे
लाचारी और बेबसी विस्मृत कराती रहे....
- निधि सक्सेना

Thursday, July 20, 2017

क्या आपने कभी इन पश्चिमी दार्शनिकों को पढ़ा है


*लियो टॉल्स्टॉय (1828 -1910)*
"हिन्दू और हिन्दुत्व ही एक दिन दुनिया पर राज करेगी, क्योंकि इसी में ज्ञान और बुद्धि का संयोजन है"।

*हर्बर्ट वेल्स (1846 - 1946)*
" हिन्दुत्व का प्रभावीकरण फिर होने तक अनगिनत कितनी पीढ़ियां अत्याचार सहेंगी और जीवन कट जाएगा । तभी एक दिन पूरी दुनिया उसकी ओर आकर्षित हो जाएगी, उसी दिन ही दिलशाद होंगे और उसी दिन दुनिया आबाद होगी । सलाम हो उस दिन को "।

*अल्बर्ट आइंस्टीन (1879 - 1955)*
"मैं समझता हूँ कि हिन्दूओ ने अपनी बुद्धि और जागरूकता के माध्यम से वह किया जो यहूदी न कर सके । हिन्दुत्व मे ही वह शक्ति है जिससे शांति स्थापित हो सकती है"।

*हस्टन स्मिथ (1919)*
"जो विश्वास हम पर है और इस हम से बेहतर कुछ भी दुनिया में है तो वो हिन्दुत्व है । अगर हम अपना दिल और दिमाग इसके लिए खोलें तो उसमें हमारी ही भलाई होगी"।

*माइकल नोस्टरैडैमस (1503 - 1566)*
" हिन्दुत्व ही यूरोप में शासक धर्म बन जाएगा बल्कि यूरोप का प्रसिद्ध शहर हिन्दू राजधानी बन जाएगा"।

*बर्टरेंड रसेल (1872 - 1970)*
"मैंने हिन्दुत्व को पढ़ा और जान लिया कि यह सारी दुनिया और सारी मानवता का धर्म बनने के लिए है । हिन्दुत्व पूरे यूरोप में फैल जाएगा और यूरोप में हिन्दुत्व के बड़े विचारक सामने आएंगे । एक दिन ऐसा आएगा कि हिन्दू ही दुनिया की वास्तविक उत्तेजना होगा "।

*गोस्टा लोबोन (1841 - 1931)*
" हिन्दू ही सुलह और सुधार की बात करता है । सुधार ही के विश्वास की सराहना में ईसाइयों को आमंत्रित करता हूँ"।

*बरनार्ड शॉ (1856 - 1950)*
"सारी दुनिया एक दिन हिन्दू धर्म स्वीकार कर लेगी । अगर यह वास्तविक नाम स्वीकार नहीं भी कर सकी तो रूपक नाम से ही स्वीकार कर लेगी। पश्चिम एक दिन हिन्दुत्व स्वीकार कर लेगा और हिन्दू ही दुनिया में पढ़े लिखे लोगों का धर्म होगा "।

*जोहान गीथ (1749 - 1832)*
"हम सभी को अभी या बाद मे हिन्दू धर्म स्वीकार करना ही होगा । यही असली धर्म है ।मुझे कोई हिन्दू कहे तो मुझे बुरा नहीं लगेगा, मैं यह सही बात को स्वीकार करता हूँ ।"

Wednesday, July 19, 2017

थोड़ा रोमांच भर लायें.....निधि सक्सेना



बहुत कड़वा हो गया है जिंदगी का स्वाद
चलो किसी खूबसूरत वादी से
थोड़ा रोमांच भर लायें..
मुद्दत हुई हमें जी भर के हँसे
चलें किसी दरिया किनारे
मौजों से थोड़ी मौजें मांग लायें..
दरक गया है कहीं कुछ भीतर
मन ठंडे बस्ते में पड़ा रहता है
चलो चाँद के थोड़ा करीब चलो
रूमानी होने का खेल करो
भीगे पाँव कुछ अठखेलियाँ हों
कि जिंदगी के मिज़ाज कुछ जहीन हों...
~निधि सक्सेना

Tuesday, July 18, 2017

एक आदत - सी हो गई है ....चंचलिका शर्मा









अब तो 
एक आदत - सी हो गई है , 
अपने आप से कहने की ,
"थकना मना है" ......

बेशुमार 
आँसुओं को पीकर 
मुस्कुरा कर कहने की , 
"रोना मना है" ........

औरत हूँ ,
औरों के लिए ही जीना है ,
आइने में भी अपना वजूद 
"ढूँढना मना है" ............ 

- चंचलिका शर्मा

Monday, July 17, 2017

#हिन्दी_ब्लॉगिंग.. कुछ दिन पहले.....डॉ. कौशल किशोर श्रीवास्तव


कुछ दिन पहले इस किताब में -
महक रहे थे बरक नये।

जिल्दसाज तुम बतलाओ।
वे सफे सुनहरे किधर गये।

जहाँ इत्र की महक रवां थी।
जलने की बू आती है।

दहशत वाले बादल कैसे।
आसमान में पसर गये।

बूढ़ा होकर इंकलाब क्यों -
लगा चापलूसी करने।

कलमों को चाकू होना था।
क्यों चमच्च में बदल गये।

बंधे रहेंगे सब किताब में।
मजबूती के धागे से।

एक तमन्ना रखने वाले।
बरक-बरक क्यों बिखर गए।

जिल्दों से नाजुक बरकों को।
क्या तहरीर बचाएगी।

क्या मजनून बदलने होंगे।
गढ़ने होंगे लफ़्ज नए।

छिंदवाड़ा, मध्यप्रदेश