Monday, June 11, 2012

खुदा परस्त दुआ ढूंढ रहे हैं.......अंसार कम्बरी

वो हैं के वफ़ाओं में खता ढूंढ रहे हैं,
हम हैं के खताओं में वफ़ा ढूंढ रहे हैं !

हम हैं खुदा परस्त दुआ ढूंढ रहे हैं,
वो इश्क के बीमार दवा ढूंढ रहे हैं !

तुमने बड़े ही प्यार से जो हमको दिया है,
उस ज़हर में अमृत का मज़ा ढूंढ रहे हैं !

माँ-बाप अगर हैं तो ये समझो के स्वर्ग है,
कितने यतीम इनकी दुआ
ढूंढ रहे हैं !

उस दौर में सुनते हैं के घर-घर में बसी थी,
इस दौर में हम शर्मो-हया
ढूंढ रहे हैं !

वैसे तो पाक दामनी सबको पसंद है,
फिर आप क्यों औरत में अदा
ढूंढ रहे हैं !

हाँ ! 'क़म्बरी' ने सच के सिवा कुछ नहीं कहा,
कुछ लोग हैं जो सच की सज़ा
ढूंढ रहे हैं !


 
-----अंसार 'क़म्बरी'

Saturday, June 2, 2012

उनकी बातो में ठहराव बहुत है !.........डॉ. सरोज गुप्ता

मेरे इस ब्लाग की पचासवीं पोस्ट 
मैं आदरणीय दीदी डॉ. सरोज गुप्ता 
की कलम की कील से जड़ रहीं हूँ 
देते हैं रोज नसीहतों की पुडिया ,
उनकी बातो में ठहराव बहुत है !
हम तो ठहरे कच्चे धागे ,
उनके प्रेमजाल में उलझे आज भी ,
जान हथेली पर रख भागे है !

देख बारिश का जल भराव ,
स्वप्नों के दिखाते ख़्वाब बहुत हैं !
वो बारिश का पानी ,
वो कागज़ की कश्ती से ,
उनका लगाव बहुत है !

मित्रों के मित्रों के नवाब ,
उनका महफिल में रुवाब बहुत है !
सुरा सुन्दरी के ठेकेदार ये,
रिश्तों पर पैसा यहाँ पडता भारी,
हीरे जवाहरात के उभार बहुत है !

देश के गद्दारों को खिलाते कबाब ,
गैरों के साथ भी लगाव बहुत है!
कठोर फैसले लेने कठिन थे ,
देश हित किया क्यों मलिन था ,
उनके पास इसके जवाब नहीं है !
उनके पास इसके जवाब बहुत है !!
-डॉ. सरोज गुप्ता