Monday, November 18, 2024

स्मृतियों की झालर

 स्मृतियों की झालर



पूरे चांद की आधी रात में
एक मधुर कविता
पूरे मन से बने
हमारे अधूरे रिश्ते के नाम लिख रही हूं
चांद के चमकीले उजास में
सर्दीली रात में
तुम्हारे साथ नहीं हूं लेकिन

रेशमी स्मृतियों की झालर
पलकों के किनारे पर झूल रही है
और आकुल आग्रह लिए
तुम्हारी एक कोमल याद
मेरे दिल में चुभ रही है..

चांद का सौन्दर्य
मेरी कत्थई आंखों में सिमट आया है
और तुम्हारा प्यार
मन का सितार बन कर झनझनाया है
चांद के साथ मेरे कमरे में उतर आया है

- स्मृति आदित्य 'फाल्गुनी'

साभार- हथेलियों पर गुलाबी अक्षर

Sunday, November 17, 2024

गुलाबी अक्षर

 हथेलियों पर गुलाबी अक्षर



रख दो
इन कांपती हथेलियों पर
कुछ गुलाबी अक्षर
कुछ भीगी हुई नीली मात्राएं
बादामी होता जीवन का व्याकरण
चाहती हूँ कि
हथेली पर उग कोई कविता
अंकुरित हो जाए कोई भाव
प्रस्फुटित हो जाए कोई विचार
फूटने लगे ललछौंही कोंपलें...
मेरी हथेली की उर्वरा शक्ति
सिर्फ जानते हो तुम
और तुम ही दे सकते हो
कोई रंगीन-सी उगती हुई कविता
इस रंगहीन वक्त में ....

-फाल्गुनी

(पुस्तक कल ही मिली इसी संग्रह की पहली कविता है ये)