चारों तरफ कैसा तूफान है
हर दीपक दम तोड़ रहा है
इंसानों की भीड जितनी बढी है
आदमियत उतनी ही नदारद है
हाथों मे तीर लिये हर शख्स है
हर नजर नाखून लिये बैठी है
किनारों पे दम तोडती लहरें है
समंदर से लगती खफा खफा है
स्वार्थ का खेल हर कोई खेल रहा है
मासूमियत लाचार दम तोड रही है
शांति के दूत कहीं दिखते नही है
हर और शिकारी बाज उड रहे है
कितने हिस्सों मे बंट गया मानव है
अमन ओ चैन मुह छुपा के रो रहा है।
-कुसुम कोठारी
हर दीपक दम तोड़ रहा है
इंसानों की भीड जितनी बढी है
आदमियत उतनी ही नदारद है
हाथों मे तीर लिये हर शख्स है
हर नजर नाखून लिये बैठी है
किनारों पे दम तोडती लहरें है
समंदर से लगती खफा खफा है
स्वार्थ का खेल हर कोई खेल रहा है
मासूमियत लाचार दम तोड रही है
शांति के दूत कहीं दिखते नही है
हर और शिकारी बाज उड रहे है
कितने हिस्सों मे बंट गया मानव है
अमन ओ चैन मुह छुपा के रो रहा है।
-कुसुम कोठारी