बस आँखों को बंद करो
सोचो क्या रंग जो तुमने देखे
पहली नीमिलित पलकों के
नीचे रंग कौन से थे वो
एक अन्धेरा दूर दूर तक
आवाजों की एक दुनिया है
कितनी परत चढी है तम की
शब्दों का बस साज बजा है
दो तूलिका उसे भी तुम अब
देखो क्या तस्वीर बनाता
छवि का क्या आकार उकेरे
कैसा चिंतन हार बनाता
...........
फैला कर रंगों को पथ में
चल देगा पग उस पर रख कर
निशाँ बनेगे, दिशा दिखेगी
चीरेगी उस तम के तन को
कोई रूप जन्म तब लेगा
मन की आशा से जब मन में
दृष्टि और रंगों की गाथा
लिखी ना जाए बहु बचनो में
बड़ी ही गहरी सोच तूलिका
और आँखों का संयम पल पल
सांस दिशा और पथ ही जीवन
रूप नहीं कोई इस रंग का
जल जैसा बहता ही जाता
हर आकार में ढलता जाता
नयन द्वार अलकें और पलकें
बंद खोल कर कुछ दुःख गाता
...............
शायद .......
खुल जायेंगे तम की परतें
बंद तालों के द्वार जो टूटे
चिंतन और मंथन की वाणी
तम पर कर प्रहार ये टूटे
रंग बिखर जायेंगे तो क्या
जीवन से बढ़कर तो नहीं है
गति है मन में चलो सूर्य तक
लिखो रोशनी कम तो नहीं है
शब्दों की माला हो अर्पित
रंगों की भाषा भी लिक्खो
बरसेंगे बादल से छन छन
रंग यहाँ हर मन में घुलकर
-सुमन रेणु
बेंगलोर
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