छुवन तुम्हारे शब्दों की
उठती गिरती लहरें मेरे मन की
ऋतुएँ हो पुलकित या उदास
साक्षी बन खड़ा है
मेरे आँगन का ये
अमलतास......
गुच्छे बीते लम्हों की
तुम और मैं धार समय की
डाली पर लटकते झूमर पीले-पीले
धूप में ठंडी छाया
नहीं मुरझाया
मेरे आँगन का
अमलतास..........
सावन मेरे नैनों का
फाल्गुन तुम्हारे रंगत का
हैं साथ अब भी भीगे चटकीले पल
स्नेह भर आँखों में
फिर मुस्काया मेरे आँगन का
अमलतास............
-श्वेता मिश्र
सुंदर भाव संजोती प्यारी सी रचना।
ReplyDeleteबहुत खूब ....सरस भाव भरी कलम
ReplyDeleteसुन्दर भाव
ReplyDeleteबेहद शानदार
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (11-12-2017) को "स्मृति उपवन का अभिमत" (चर्चा अंक-2814) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बेहद सुन्दर ....,
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