दो दिलों के दरमियाँ दीवार-सा अंतर न फेंक
चहचहाती बुलबुलों पर विषबुझे खंजर न फेंक
हो सके तो चल किसी की आरजू के साथ-साथ
मुस्कराती ज़िंदगी पर मौत का मंतर न फेंक
जो धरा से कर रही है कम गगन का फासला
उन उड़ानों पर अंधेरी आँधियों का डर न फेंक
फेंकने ही हैं अगर पत्थर तो पानी पर उछाल
तैरती मछली, मचलती नाव पर पत्थर न फेंक
-डॉ. कुंवर बेचैन
बहुत सुन्दर
ReplyDelete👌👌बहुत खूब
ReplyDeleteसुंदर बहुत ही सुंदर रचना
ReplyDeleteशुभ्र भावों का अपूर्व संगम हर शेर बेहतरीन।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर
ReplyDeleteनमस्ते, आपकी यह प्रस्तुति BLOG "पाँच लिंकों का आनंद"
ReplyDelete( http://halchalwith5links.blogspot.in ) में गुरूवार 14-12-2017 को प्रकाशनार्थ 881 वें अंक में सम्मिलित की गयी है। प्रातः 4:00 बजे के उपरान्त प्रकाशित अंक चर्चा हेतु उपलब्ध हो जायेगा।
चर्चा में शामिल होने के लिए आप सादर आमंत्रित हैं, आइयेगा ज़रूर। सधन्यवाद।
सदाबहार रचना ! मेरे 'मानस' गुरु की रचना को सम्मान दिया। आपका बहुत आभार
Deleteआपकी इस प्रस्तुति का लिंक 14 - 12 - 2017 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2817 में दिया जाएगा
ReplyDeleteधन्यवाद
सदाबहार रचना ! मेरे मानस गुरु की रचना को सम्मान दिया। आपका बहुत आभार
ReplyDeleteउम्दा प्रस्तुति
ReplyDeleteबहुत अच्छी रचना ।
ReplyDeleteलाजवाब रचना ....
ReplyDeleteवाह!!!!