मैं बाजार नहीं गया था
बाजार कमाता है
पर सवेरा होना बाकी है।
अभी मिली हैं आँखें उनसे
पर दिल मिलना बाकी है।
पेड़ों के अभी कुछ कुछ पत्ते झरे हैं
पर हरियाली अभी बाकी है।
अभी तो मैंने देखा है एक चाँद
पर उससे मुलाकात अभी बाकी है।
सुसख हवा चली है कुछ कुछ
पर गर्मी आना बाकी है।
अभी दो चार हुई हैं उनसे मुलाकातें
पर अभी प्यार होना बाकी है
-इश्तियाक अंसारी
याद में आपके दिल परेशान है,
आप तो अपना वादा निभाते नहीं।
याद आते रहे तुमको हम भी बहुत,
क्यों कभी तुम हमें यह बताते नहीं।
स्वरचित
-नीलम गुप्ता
।।सधु।।
मेघ सांवरे उमड़े, बरसेंगे
खुशियों से आंचल भर देंगे
कोपल-कोपल मुस्काई धरती
फिरसे अंखुआए अहसासों में
चितवन रस में भीगे कांपे
दूरियाँ न रहीं अब राहों मे
आकाश सिमटते देखा है इसने
फुनगियों की नन्ही-सी बाहों में।
-शैल अग्रवाल
-कौशल शुक्ला
तितली वह मेरी सबसे सुंदर
सबसे चमकीले पंखों वाली
फूल-फूल इतराती फिरती
मेरी ही बगिया में आकर
मेरे ही हाथों में ना आती
बहुत प्यार करता हूँ इससे
इसने प्यार की कद्र ना जानी
आजादी है प्रेम कोई बन्धन नहीं
कहती और झटसे ये उड़ जाती।
- शैल अग्रवाल
स्त्री से मत कहना
अपने मन की कोई दुविधा,कोई अप्रिय बात
वो बाँध लेगी उसकी गाँठ
झोंक देगी अपनी सारी ताकत
उसे समाप्त करने में
वो पूछेगी बार-बार उसके बारे में सवाल
और देगी खुद ही हर सवाल का
एक संभावित जवाब
किसी स्त्री से मत बताना
अपने जीवन के दुःख
जो रख देगी अपने सारे सुख गिरवी
और तुम्हें दुःखों से निकालनें की करेगी
भरसक कोशिश
किसी स्त्री से मत बताना
अपने डर के बारें में ठीक-ठीक कोई अनुमान
वो इसके बाद अपने डरों को भूलकर
तुम्हें बताएगी तुम्हारी ठीक-ठीक ताकत
अपने बारें में न्यूनतम बताना
किसी स्त्री को
बावजूद इसके
वो जान लेगी तुम्हारे बारें में वो सब
जो खुद के बारें नही जानते तुम भी
स्त्री से मत पूछना
दुःख की मात्रा
और सुख का अनुपात
स्त्री से मिलते वक्त
छोड़ आना अपने पूर्वानुमान
बचना अपने पूर्वाग्रहों से
सोचना हर मुलाकात को आख़िरी
स्त्री को बदलने की कोशिश मत करना
और खुद भी मत बदलना
स्त्री नही करती पसंद
किसी बदलाव को बहुत जल्द
स्त्री से कहना अपना धैर्य
स्त्री से सुनना उसके अनुभव
बिना सलाह मशविरा दिए
स्त्री जब पूछे तुमसे क्या हुआ?
कहना सब ठीक है
वो समझ जाएगी खुद ब खुद
कितना ठीक है और कितना है खराब.
- डॉ. अजित सिंह तोमर...
अगर चाँद मर जाता
झर जाते तारे सब
क्या करते कविगण तब?
खोजते सौन्दर्य नया?
देखते क्या दुनिया को?
रहते क्या, रहते हैं
जैसे मनुष्य सब?
क्या करते कविगण तब?
प्रेमियों का नया मान
उनका तन-मन होता
अथवा टकराते रहते वे सदा
चाँद से, तारों से, चातक से, चकोर से
कमल से, सागर से, सरिता से
सबसे
क्या करते कविगण तब?
आँसुओं में बूड़-बूड़
साँसों में उड़-उड़कर
मनमानी कर- धर के
क्या करते कविगण तब
अगर चाँद मर जाता
झर जाते तारे सब
क्या करते कविगण तब
- त्रिलोचन शास्त्री
1222,1222,122.
मुफ़ाईलुन,मुफ़ाईलुन फ़ऊलुन।
बहरे हज़ज मुसद्दस महज़ूफ़
सभी कहते हरिक घर में ख़ुदा है।
हमारा सर तभी हर दर झुका है।।
झुका सज़दे में सर है जिस भी दर पे।
सभी के ही लिए मांगी दुआ है।।
ख़ुदा के बंदों से कर लो मुहब्बत।
इबादत करने की यह भी अदा है।।
सभी को एक ही मंज़िल मिलेगी।
सफ़र चाहे किया सबने जुदा है।।
लिखा जाए जुदा सबका नसीबा।
मुक़द्दर एक सा किसका हुआ है।।
है दर किसका हमें क्या लेना देना।
हमें बस चाहिए सबका भला है।।
जुदा चाहे फ़लक के सब हैं"अंजुम"।
मगर इक सी लगे सबकी ज़िया है।।
--प्यासा अंजुम
2122 2122 2122 212
रफ़्ता रफ़्ता खुशबुएँ घर मे बिखर जाने तो दो ।
कुछ हवाओं को मेरे आंगन तलक आने तो दो ।।
रोक लेंगे मौत का ये कारवां हम एक दिन।
इस वबा के वास्ते कोई दवा पाने तो दो ।।
सच बता देगा जो मुज़रिम है मुहब्बत का यहाँ।
उसकी आँखों में अभी थोड़ा नशा छाने तो दो ।।
दर्दो ग़म के दौर से गुज़री है उसकी ज़िंदगी ।
चन्द लम्हे ही सही अब दिल को बहलाने तो दो ।।
ये ज़माना खुद समझ लेगा सनम की ख्वाहिशें ।
स्याह जुल्फें अरिज़ो पर उनको लहराने तो दो।।
टूट कर भी वो बदलता है कहाँ अपना बयान ।
आइने को सच किसी महफ़िल में बतलाने तो दो ।।
सारी यादें फिर जवां हो जाएंगी तुम देखना ।
गीत जो मैंने लिखा था बज़्म में गाने तो दो ।।
ज़िंदगी की हर हक़ीक़त से वो होगा रुबरू ।
इश्क़ में कुछ ठोकरें उसको अभी खाने तो दो ।।
-डॉ. नवीन त्रपाठी