एक चतुर शिक्षक ने पूछा
“एक प्लस एक का मान बताओ।”
बेंच पर सामने बैठे विद्यार्थी ने कहा “दो”
“तुम गणितज्ञ या वैज्ञानिक बनोगे
सच्चाई के वृत्त में भ्रमण करोगे।”
उन्होंने पुनः पूछा “कोई दूसरा उत्तर?”
किसी ने सकुचाते हुए कहा “तीन”
“तुम व्यापारी बनने के क़ाबिल हो
मौक़ा मिले तो इसे आज़माओ।”
उन्होंने फिर कहा “कोई अन्य उत्तर?”
पिछली बेंच से आवाज़ आयी “एक”
शिक्षक ने पूछा “इसका क्या अर्थ?”
उस विद्यार्थी ने कहा
“यह प्रश्न आपके लिए है
आप सोचिये, यह आपकी परीक्षा भी है
यदि आप फ़ेल हो गए
तो कल मैं क्लास में उत्तर बताऊँगा।”
शिक्षक चतुर थे, सोचते रहे
किन्तु किसी तार्किक निष्कर्ष से दूर रहे
इसी चिन्तन में रात बिताई
दूसरे दिन क्लास में जल्दी पहुँच गए
“हाँ, बताओ अपने उत्तर का अर्थ
मुझे समझ लो असमर्थ।”
विजयी स्वर में विद्यार्थी ने कहा
“एक जोड़ एक से बनता है एक
जब हो प्यार का अभिषेक
प्रेमी और प्रेमिका हो जाते हैं एक
यह है श्रृंगार रस का विवेक
किन्तु गणित या व्यापार से बहुत दूर।”
शिक्षक महोदय ने निर्णय दिया
“तुम एक कवि बनोगे
जो कल्पना की दुनिया में जीते हैं
बिना व्यापार किये ही
साधन संपन्न होना चाहते हैं
गणित को अपना दुश्मन समझते हैं।”
क्लास की गम्भीरता को चीरते हुए
एक साहसी विद्यार्थी ने पूछा
“मैंने कहते सुना है
एक और एक बनाते हैं ग्यारह
जिसका अर्थ है मेरी समझ से बाहर
क्या डालेंगे प्रकाश इस पर?”
कोई मजाकिया विद्यार्थी बोल उठा
“जब किसी पति-पत्नी ने नौ बच्चे पैदा किये
तो एक और एक मिलकर बन गए ग्यारह
राजनीति में यह आज भी चर्चित है
क्योंकि प्रजातन्त्र में संख्या महत्वपूर्ण है।”
हँसी की गूँज क्लास में फैल गई
आज की पढ़ाई ख़त्म हुई!!
-डॉ. कौशल श्रीवास्तव