Tuesday, October 27, 2015

कितने सागर कितनी नदियां कितनी नावें....शुभ्रा ठाकुर, रायपुर













एक तुम्हारी याद
चली आती है चुपचाप
दबे कदमों से
सहमी साँसों के साथ

कितने सागर
कितनी नदियां
कितनी नावें
टतबंध सारे तोड़कर
बंधन सारे छोड़कर

तय कर सारी दूरियां
सात समंदर पार से भी
नदियां नदियां
दरिया दरिया
सागर सागर
डगमगाती नावें

कंपकपाती-सी पतवारें
आशाओं के टिमटिमाते
जुगनू
अंधियारी - सी रात

और तुम्हारी याद
चली आती है चुपचाप
दबे कदमों से
सहमी साँसों के साथ
बस ! तुम नहीं आते
और मैं रह जाती हूँ
निःशब्द !!! चुपचाप !!!

-शुभ्रा ठाकुर, रायपुर

Sunday, October 25, 2015

मिरे क़ातिलों को ख़बर कीजिए....... साहिर लुधियानवी

उनकी पुण्यतिथि पर विशेष
25 अक्टूबर,1980


मैं ज़िंदा हूँ ये मुश्तहर कीजिए 
मिरे क़ातिलों को ख़बर कीजिए 
  
ज़मीं सख़्त है आसमाँ दूर है 
बसर हो सके तो बसर कीजिए

सितम के बहुत से हैं रद्द-ए-अमल
ज़रूरी नहीं चश्म तर कीजिए

वही ज़ुल्म बार-ए-दिगर है तो फिर
वही जुर्म बार-ए-दिगर कीजिए

क़फ़स तोड़ना बाद की बात है
अभी ख़्वाहिश-ए-बाल-ओ-पर कीजिए

-साहिर लुधियानवी
1921-1980

मुश्तहरः घोषणा, रद्द-ए-अमलः प्रतिक्रिया, 
बार-ए-दिगरः दूसरे का भार,  क़फ़सः पिंजरा, 
ख़्वाहिश-ए-बाल-ओ-परः पंख आने का इन्तजार 

Sunday, October 4, 2015

चांद पर मेरी उदासी छा जाएगी...स्मृति आदित्य











कल पिघल‍ती चांदनी में 
देखकर अकेली मुझको 
तुम्हारा प्यार
चलकर मेरे पास आया था 
चांद बहुत खिल गया था। 

आज बिखरती चांदनी में 
रूलाकर अकेली मुझको 
तुम्हारी बेवफाई 
चलकर मेरे पास आई है 
चांद पर बेबसी छाई है। 

कल मचलती चांदनी में 
जगाकर अकेली मुझको 
तुम्हारी याद 
चलकर मेरे पास आएगी 
चांद पर मेरी उदासी छा जाएगी।

-स्मृति आदित्य