कहे दुनिया सनम से दूर रहना
मुझे तनहा नहीं मंजूर रहना
दिया है प्यार हमने प्यार ले कर
किसीका किसलिए मश्कूर रहना
लिखा क़िस्मत में है ये आशिक़ों की
ग़मों से ज़िंदगी भरपूर रहना
शिकायत है मुझे दिलबर से ये ही
न आँखों में वफ़ा का नूर रहना
बुलाता है मुझे वो पास अपने
मगर कहता है मुझसे दूर रहना
ख़लिश ये ज़िंदगी क्या ज़िंदगी है
पहर आठों नशे में चूर रहना.
बहर --- १२२२ १२२२ १२२
-महेश चन्द्र गुप्ता