Wednesday, January 27, 2016

माता श्री हाटेशवरी......हाटकोटी मंदिर शिमला


हाटकोटी मंदिर शिमला से 100 किलोमीटर दूरी पर पब्बर नदी के किनारे प्राचीन हाटकोटी मंदिर स्थित है। हाटेशवरी माता का यह प्रसिद्ध मंदिर महिषासुरमर्दिनी (दुर्गा) का है और दूसरा शिव का। मंदिर पत्थर को तराश कर बनाया गया है जिस पर पहले पत्थर का बड़ा अमलक स्थापित था इस मंदिर में स्थापित महिषासुरमर्दिनी की भव्य प्रतिमा दसवीं शताब्दी की है। दो मीटर ऊंची कांस्य प्रतिमा कला की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण है।
ये मंदिर पांच पांडवों ने अपने वनवास के अंतिम वर्ष अज्ञात वास में बनाया था। इस मंदिर में ही उन्होंने अपनी सफलता की कामना की थी।



The historical temple of Mata Hateshwari is located in Hatkoti village that lies on the banks of Pabbar River, which is approximately 100 Km far from Shimla. It is away from the hustle and bustle of the city and provides inner peace to the mind and one feels the presence of divinity in the whole atmosphere.

काफी लोगों को जिज्ञासा है कि 
माँ हाटेशवरी का नाम पहली बार सुन रहे हैं..
मंदिर माता श्री का है कहाँ
आज समय था मेरे पास
सो सोची मैं चलो आज
भाई कुलदीप जी के शहर में ही चलें
सो पहुुँच गई शिमला..कड़ाके की ठण्ड है वहाँ
प्रस्तुत हैं माँ हाटेशवरी की सम्पूर्ण तो नहीं कह सकती
पर हाँ विस्तृत जानकारी
सादर
यशोदा

जानकारियाँ..
हिमांचल टूरिज़्म के सौजन्य से

Tuesday, January 26, 2016

हाँ जी हम बेशक ऐसा कर सकते थे...नवीन

हाँ जी हम बेशक ऐसा कर सकते थे।
रोज़ नया भगवान खड़ा कर सकते थे॥

वो तो मिट्टी ने ही रोक लिया वरना।
हम भी चादर को मैला कर सकते थे॥

हवा ने अपने होश नहीं खोये वरना।
तिनके! बहुतों को अन्धा कर सकते थे॥

जिस के मुसकाने से मुसकाते हैं हम।
उस को हम कैसे रुसवा कर सकते थे॥

हम ही से परहेज़ न हो पाये वरना।
कई बैद हम को अच्छा कर सकते थे॥

-नवीन सी. चतुर्वेदी

http://thalebaithe.blogspot.com/ navincchaturvedi@gmail.com 

Monday, January 25, 2016

मिले ग़म से अपने फ़ुर्सत तो सुनाऊं वो फ़साना....मुईन अहसन जज़्बी

मिले ग़म से अपने फ़ुर्सत तो सुनाऊँ वो फ़साना|
कि टपक पड़े नज़र से मय-ए-इश्रत-ए-शबाना।


यही ज़िन्दगी मुसीबत यही ज़िन्दगी मुसर्रत
यही ज़िन्दगी हक़ीक़त यही ज़िन्दगी फ़साना।


कभी दर्द की तमन्ना कभी कोशिश-ए-मदावा
कभी बिजलियों की ख़्वाहिश कभी फ़िक़्र-ए-आशियाना। 


मेरे कहकहों के ज़द पर कभी गर्दिशें जहाँ की, 
मेरे आँसूओं की रौ में कभी तल्ख़ी-ए-ज़माना


कभी मैं हूँ तुझसे नाला कभी मुझसे तू परेशाँ,
मेरी रिफ़अतों ले लर्जा कभी मेहर -ओ-माह-ओ-अंजुम।

मिरी पस्तियों से खाइफ़ कभी औज़-ए-ख़ुसरवाना 
कभी मैं तेरा हदफ़ हूँ कभी तू मेरा निशाना।

जिसे पा सका न ज़ाहिद जिसे छू सका न सूफ़ी, 
वही तीर छेड़ता है मेरा सोज़-ए-शायराना। 

-मुईन अहसन जज़्बी
जन्म : अगस्त 1912, आजमगढ़ (उ.प्र.) 
निधन : फरवरी 2005 अलीगढ़ (उ. प्र.) 
शब्दार्थ :
जश्न की रात की शराब, खुशी, इलाज की कोशिश, 
जमाने की कड़ुआहट, उँचाई, सिहरन, तारा, गहराई, डर, 
शाही ताकत का कद, उद्देश्य, श़ायर का जुनून

Friday, January 22, 2016

हैं कहाँ हिचकियाँ आज के दौर में.....कुँवर कुसुमेश


सिर्फ लफ़्फाज़ियाँ आज के दौर में। 
और चालाकियाँ आज के दौर में।

अधखुला जिस्म लेकर के घूमें-फिरें,
राह में लड़कियाँ आज के दौर में।

देख लो पल रही पाउडर मिल्क पर,
दुधमुही बच्चियाँ आज के दौर में।

रुखसती के समय में भी बूढ़े बहुत, 
कर रहे शादियाँ आज के दौर में।

डॉक्टर की बदौलत ही मरने लगीं,
कोख में बेटियाँ आज के दौर में।

अब न शोखी न शोखी का मतलब कोई ,
खो गईं शोखियाँ आज के दौर में।

याद महबूब को भी न आती "कुँवर",
हैं कहाँ हिचकियाँ आज के दौर में।

-कुँवर कुसुमेश

Saturday, January 16, 2016

हो गया यार वो बरी कैसे.......कुँवर कुसुमेश


रस्मे-दुनिया उलट गई कैसे। 
बर्फ़ में आग ये लगी कैसे।

वो न आये,तो कौन आया है ?
हो गई शाम सुरमई कैसे ?

वो है इल्मे-अदब से नावाक़िफ़,
कर रहा फिर भी शायरी कैसे ?

जेल से छूटने लगे मुल्ज़िम,
हो गया यार वो बरी कैसे।

ज़िन्दगी में अजीब हलचल है,
कट रही फिर भी ज़िन्दगी कैसे।

प्यार का अब सुबूत क्या माँगूं,
तुमने देखा, लिपट गई कैसे।

शेर मैंने "कुँवर" कहा था जो,
कह गया शेर वो वही कैसे।


-कुँवर कुसुमेश

Friday, January 15, 2016

बेटियाँ.....जयप्रकाश मानस











आँगन में 
चहकती हुईं गौरेया
देखते-ही-देखते पहाड़ हो गई

आख़िर एक दिन उन्हें
घोंसले से दूर कहीं खदेड़ दिया गया

लेकिन गईं कहाँ वे ढीठ!

अब वे नदी की तरह उतरती रहती हैं
उदास आँखों में
पारी-पारी से











-जयप्रकाश मानस
वेबसाईट : www.srijangatha.com
सम्पर्क : srijangatha@gmail.com

सोलह की उम्र खास मिली......जहीर कुरैशी


जवान होने की सीमा के आसपास मिली 
किशोर वय मे भी,सोलह की उम्र खास मिली..

खुशी के बाद नज़र आई सारी दुनिया खुश
उदास होते ही दुनिया बहुत उदास मिली

हटा कर राख अगन को जगाना पड़ता है
हताश लोगों के मन में भी कोई आस मिली

वो जिसने किया बाध्य चाकरी के लिए
हरिक मनुष्य की काया में भूख प्यास मिली

विकल समुद्र से मिलने चल पड़ी नदियां
समुद्र होने की चाहत नदी के पास मिली

उन्हीं के स्वप्न का सूरज कभी नहीं डूबा
वो जिनके सपने के अन्दर बहुत उजास मिली

-जहीर कुरैशी

Thursday, January 14, 2016

समझ नही पाता है इंसान...विमल गांधी


समझ नहीं पाता है इंसान। 
कभी - कभी.....
जिंदगी दिखाती है रास्ते बहुत॥

खड़ी करती है सवाल बहुत।
किस राह जाऊँ किस राह नही जाऊँ॥

कर देती है बैचेन बहुत।
क्या करूँ क्या नहीं करूँ॥

समझ नही पाता है इंसान।
जिंदगी दुविधा में फँस जाती है॥

फ़ैसला करना मुश्किल हो जाता है कि...
किस दिशा जाऊँ किस दिशा नही जाऊँ॥

उस समय सिर्फ याद आती है 
उस रब की...कि वो ही कोई राह दिखाये 
जिस पर हम खुशी-खुशी जाये॥

©विमल गांधी



“विमल गांधी जी” की कवितओं का 
हर एक शब्द में अलौकिक सार भरा हैं। 
जो हर एक शब्द पर विचार सागर-मंथन कर हृदयसात करने योग्य हैं। 
कविताऐं छोटी और सरल शब्दों में होते हुए भी हृदयसात करने योग्य हैं। 
जो भी इंसान इन कविताओं को गहराई (हर शब्दों का सार) से समझकर आत्मसात करें, उसका जीवन धन्य हो जायें।

Sunday, January 10, 2016

बेवफाई का है अजब आलम....कुँवर कुसुमेश


लोग जो महवे-यार मिलते हैं। 
आजकल बेक़रार मिलते हैं।

और तेवर मेरे सनम के तो,
बाखुदा धार दार मिलते हैं।

दुश्मनों की नहीं कमी कोई,
एक ढूँढो हज़ार मिलते है।

खुशनसीबी मेरी है दोस्त मुझे,
क़ाबिले-ऐतबार मिलते हैं।

बेवफाई का है अजब आलम ,
अब कहाँ जाँ-निसार मिलते हैं।

एक सिहरन है लाज़िमी उठना,
जब "कुँवर" दिल के तार मिलते है।

-कुँवर कुसुमेश

Thursday, January 7, 2016

कैसे गुज़ार देते हैँ कोठों पे लोग उम्र...शिवशंकर यादव

इंसानियत की मेरी बीमारी नहीं जाती।
सिर से मेरी अना ये उतारी नहीं जाती।

है वास्ता हमारा भी रघुकुल से दोस्तो,
खाली कभी ज़ुबान हमारी नहीं जाती।

मजबूरियाँ ले जाती हैँ बाज़ार में उसको,
इज़्ज़त गँवाने ख़ुद ही बेचारी नहीं जाती।

राहोँ मे लड़कियोँ को सदा घूरने वाली,
आदत हरामज़ादे तुम्हारी नहीं जाती।

शादी किये बिना ही है होती सुहागरात,
लड़की कोई ससुराल कुँवारी नहीं जाती।

कैसे गुज़ार देते हैँ कोठों पे लोग उम्र,
होटल में मुझसे रात गुज़ारी नहीं जाती।

नाहक़ किसी ग़रीब की क़िस्मत बिगाड़ कर,
क़िस्मत मेरी ये मुझसे सँवारी नहीं जाती।

-शिवशंकर यादव

नाम : शिवशंकर यादव
कुसौडा, सुरियाँवा, जिला-भदोही, उत्तर प्रदेश
सम्पर्क : yshiv567@gmail.com



Wednesday, January 6, 2016

सात शहीद...यशोदा



चले गए वो क्यों
क्या दुश्मनी थी उनसे
जो मार दिया छल से
जो चाहते हैं वो
वो होगा जरूर
पर उन्हे... 
देनी होगी तिलाजली
हथियार के रूप में
और सरकार से
विनम्र आग्रह
तलाशें..उन सफेदपोशों
और सरकारी अमले में से
विभीषणों और जयचंदों  को
जो इन आतंकवादियों को 
खबरें मुहैय्या  करवाते हैं
व पनाह भी देते हैं
और तभी..
भारत की जनता
मरते-मरते जीने के
भय से मुक्त होगी
मन की उपज

-यशोदा    
                                                                                                                                                                        
        

Sunday, January 3, 2016

सोचो ख़ुद को तराशा क्या....अनुराग सिंह


मानव की परिभाषा क्या
अन्तःमन की भाषा क्या
निराशा तो आनी ही है
नहीं तो जीवन की आशा क्या

कुछ भावों के संग्रह से
मानव मन के अनुग्रह से
स्वप्न विघटित होते ही हैं
नहीं तो फिर अभिलाषा क्या

गिरते नहीं तो सँभालते क्या
डरने वाले फिर चलते क्या
तुम ख़ुद ही ख़ुद के परखी हो
सोचो ख़ुद को तराशा क्या

मन में है ये नफ़रत क्यूँ
इंसान की ऐसी फ़ितरत क्यूँ
छोटा सी ही ये जीवन है
उसमें जीना ज़रा सा क्या
-अनुराग सिंह

नाम : अनुराग सिंह

शिक्षा : आईआईआईटी अलाहाबाद से एम.एस.
इस समय एम.ए. (हिन्दी) के विद्यार्थी
संप्रति : आरआरएसआईएमटी में असिटेंट प्रोफ़ेसर
सम्पर्क : anurag17889@gmail.com


Friday, January 1, 2016

उम्मींदों की पोटली है मेरे काँधे पे.....सदा










सिमट रहे हैं 
कुछ लम्हे उसके आगोश में 
कुछ उस तक 
पहुँचने की फि़राक़ में हैं 
कुछ कद के छोटे हैं 
तो दबे हैं भीड़ में 
पर सब साथ हैं उसके
क्यूं कि उसने सबको
कुछ न कुछ दिया है !
.. 
खुशियों और गम के आँसू 
झिलमिलाये हैं उसकी पलकों पर भी 
अतीत के पन्नों में कैद हो 
इससे पहले वो 
कहना चाहता है तुम्हे 
मुबारक हो नया साल 
जो मिला उसे तक़दीर समझना 
जो चाहते हो 
उसके लिये दुआयें हैं मेरी 
उम्मींदों की पोटली है मेरे काँधे पे 
दिन तारीख वर्ष 
फिर गवाह बनेंगे 
इन्ही शुभकामनाओं के साथ 
मेरा हर दिन लम्हा 
तुम्हारे लिये है !!

-सीमा सदा