कभी तो झरो
मुझ पर
एक ऐसी शब्द-बूंद
कि मेरी मन-धरा पर
प्रस्फुटित हो जाए
शर्माया हुआ प्यार का कोमल अंकुर
सिर्फ तुम्हारे लिए।
कभी तो रचों
मेरे इर्द गिर्द
शब्द-फूलों का रंगीन समां
कि मैं महकने लगूं और
भर जाऊं खुशियों की गंध से
सिर्फ तुम्हारे लिए।
कभी तो आने दो
मेरे कजरारे बालों तक
नशीली
शब्द-बयार का झोंका
कि मेरे पोर-पोर में
खिल उठें
ताजातरीन कलियां
सिर्फ तुम्हारे लिए।
कभी तो पहनाओं
अपनी भावनाओं को
ऐसे शब्द-परिधान
कि जिन्हें देखकर लहरा उठें
मेरे भीतर का भीगा सावन
सिर्फ तुम्हारे लिए।
मत बरसाओं मुझ पर
ऐसी शब्द-किरचें
कि होकर लहूलुहान
मैं, बस रिसते जख्म ही
ला सकूं
तुम्हारे लिए!
--स्मृति आदित्य
मुझ पर
एक ऐसी शब्द-बूंद
कि मेरी मन-धरा पर
प्रस्फुटित हो जाए
शर्माया हुआ प्यार का कोमल अंकुर
सिर्फ तुम्हारे लिए।
कभी तो रचों
मेरे इर्द गिर्द
शब्द-फूलों का रंगीन समां
कि मैं महकने लगूं और
भर जाऊं खुशियों की गंध से
सिर्फ तुम्हारे लिए।
कभी तो आने दो
मेरे कजरारे बालों तक
नशीली
शब्द-बयार का झोंका
कि मेरे पोर-पोर में
खिल उठें
ताजातरीन कलियां
सिर्फ तुम्हारे लिए।
कभी तो पहनाओं
अपनी भावनाओं को
ऐसे शब्द-परिधान
कि जिन्हें देखकर लहरा उठें
मेरे भीतर का भीगा सावन
सिर्फ तुम्हारे लिए।
मत बरसाओं मुझ पर
ऐसी शब्द-किरचें
कि होकर लहूलुहान
मैं, बस रिसते जख्म ही
ला सकूं
तुम्हारे लिए!
--स्मृति आदित्य