Monday, October 29, 2012

कभी तो झरो शब्द-बूंद.....स्मृति आदित्य

कभी तो झरो
मुझ पर
एक ऐसी शब्द-बूंद
कि मेरी मन-धरा पर
प्रस्फुटित हो जाए
शर्माया हुआ प्यार का कोमल अंकुर
सिर्फ तुम्हारे लिए।

कभी तो रचों
मेरे इर्द गिर्द
शब्द-फूलों का रंगीन समां
कि मैं महकने लगूं और
भर जाऊं खुशियों की गंध से
सिर्फ तुम्हारे लिए।
कभी तो आने दो
मेरे कजरारे बालों तक
नशीली
शब्द-बयार का झोंका
कि मेरे पोर-पोर में
खिल उठें
ताजातरीन कलियां
सिर्फ तुम्हारे लिए।

कभी तो पहनाओं
अपनी भावनाओं को
ऐसे शब्द-परिधान
कि ‍जिन्हें देखकर लहरा उठें
मेरे भीतर का भीगा सावन
सिर्फ तुम्हारे लिए।

मत बरसाओं मुझ पर
ऐसी शब्द-किरचें
कि होकर लहूलुहान
मैं, बस रिसते जख्म ही
ला सकूं
तुम्हारे लिए!


--स्मृति आदित्य

Sunday, October 28, 2012

प्रेम का मतलब तुम...............रविकांत






प्रेम-1 
प्रेम का मतलब है
तुम्हारे साथ रहना। 



 

प्रेम-2
तुम मुझे माफ नहीं करती
पर सारे अपमान पी कर भी
मैं तुम्हें मना लेता हूं।

हालांकि तुम कहती हो कि
इसका उल्टा ही सच है।

मैं बांहें फैलाकर
जरा-सा मुस्करा देता हूं।

प्रेम-3
तुम्हारे खिलाफ सुनी बहुत सी बातों पर
मुझे यकीन भी है।
पर उनकी चर्चा मैं तुमसे
कभी भी नहीं करूंगा।

पता नहीं ये बात
मेरे जेहन में है
या
तुम्हारे। 


--रविकांत

Thursday, October 25, 2012

तुम्हारी यादों के ज़ख्म है..........सुरेश पसारी "अधीर"


होती ही जा रही है, मेरी हर राह मुश्किल,
हर क़दम मुझे अब , दुश्वार होने लगा है।

चैन बहुत मिलता है ,अब तड़पने मे मुझे,
दर्द-ए-दिल ही ,दिल की दवा होने लगा है।

होने लगा खुद का ,वजुद भी मुझसे ज़ुदा,
ज़िन्दगी जबसे, तेरा सामना होने लगा है,

दुश्मनो से भी की ,दोस्ती की बात मैने,
पर फ़ासला ,अपनो से भी बढने लगा है।

इक तस्वीर हो गया है, इंसान दीवार पर,
इंसान भी अब ,क्या से क्या होने लगा है।

कुछ और नही ,तुम्हारी यादों के ज़ख्म है,
दर्द अब तो "अधीर", ज्यादा होने लगा है।

-सुरेश पसारी "अधीर"

Monday, October 22, 2012

जलजला है कोई तूफान के पीछे.........गोविन्द भारद्वाज



बेवफा चेहरे हैं मुस्कान के पीछे
राज गहरे हैं पहचान के पीछे

कश्तियाँ खामोश साहिल पर
जलजला है कोई तूफान के पीछे

कौन किसे दिलवाता है तमगे
साजिश छुपी है सम्मान के पीछे

अपनी जान का रखे वही ख्याल
फ़ना हो जाते हैं जो ईमान के पीछे

शहादत उनकी याद रखता गोविंद
हुए कुरबाँ जो हिन्दुस्तान के पीछे



--गोविन्द भारद्वाज

Saturday, October 20, 2012

माँ..................डॉ.ज़की तारिक



हुस्ने-तख़लीक का एक नग़मये रक़सां माँ है,
बज़्मे-तहज़ीब में उलफ़त का गुलिस्तां माँ है,


जिसकी आग़ोश में पलता है वुजूदे-आदम,
दरसे-अव्वल का वही एक दबिस्ताँ माँ है,


... उसके आँचल की हवा सायये रहमत जैसे,
ग़मे इन्सान के हर इक दर्द का दर्मा माँ है,


जब मसाइब की घटा घेर ले सारा माहौल,
सुब्ह उम्मीद का खुर्शीदे दुरखशां माँ है,


बाप बेशक है मसाइब से बचाने वाला,
ऐशो-इशरत की मगर नय्यरे ताबां माँ है,


ज़िन्दगी के ये कडे कोस..ये उलझी राहें,
इनसे घबराना अबस है के निगाहबां माँ है.


कोई मुश्किल है कहाँ मादरे मुश्फिक के तुफैल,
कोई भी दर्द हो..हर दर्द का दर्मा माँ है,


ए ज़की उस पे निसार अपने दिलो जानो जिगर,
अपने हर सांस की तकमील का सामां माँ है.



डॉ.ज़की तारिक..गाज़ियाबाद

Friday, October 19, 2012

आखिर है कौन ? ............अशोक पुनमिया

 ये जो
    हर हाल में
  "मौन" है !
    आखिर कौन है ?
आखिर कौन है ?
    'राजा' है
 या है 'मोहरा' ?
    सच पे है
 घना कोहरा !
    बेईमानो की यहाँ
 भीड़ बहुत है,
    दलालों के यहाँ
 'नीड़' बहुत है !
    बिगड़ गई है
 दशा,देश की,
    टूटी मर्यादा,
'श्वेत' भेष की !
    व्यवस्था सारी
 चौपट है,
    कुर्सियों पे
 चढ़े 'नट' है !
    घपलों का
ना और-छोर है,
    'चोर' कोई,
 कोई 'महा चोर' है !
    मोबाईल की
 'तरंगे' खा गए,
    खा गए
 कोयले की खान !
    विकलांगों की
बैसाखिया खा गए,
    खा गए अपना 'ईमान'!!
 ''रोबोट'' है,या
    उसका 'क्लोन' है ?
 ये जो
    हर हाल में
 "मौन" है !
    आखिर कौन है ?
 आखिर कौन है ?

---अशोक पुनमिया
http://ashokpunamia.blogspot.in/

Monday, October 15, 2012

प्राप्ति................. पण्डित सूर्यकान्त त्रिपाठी 'निराला'

आज सूर्यकान्त त्रिपाठी 'निराला' की पुण्यतिथि है-

प्राप्ति
=====
तुम्हें खोजता था मैं,
पा नहीं सका,
हवा बन बहीं तुम, जब
मैं थका, रुका ।

मुझे भर लिया तुमने गोद में,

कितने चुम्बन दिये,
मेरे मानव-मनोविनोद में
नैसर्गिकता लिये;

सूखे श्रम-सीकर वे

छबि के निर्झर झरे नयनों से,
शक्त शिरा‌एँ हु‌ईं रक्त-वाह ले,
मिलीं - तुम मिलीं, अन्तर कह उठा
जब थका, रुका ।

~सूर्यकान्त त्रिपाठी 'निराला'
साभा--
https://www.facebook.com/pages/Selected-Pearls-चुने-हुए-मोती

हर दिन की तरह मेरा उदास.......रणजीत भोंसले

'शाम होने को है लाल सूरज
समन्दर में खोने को है ..
हर दिन की तरह मेरा उदास
मन उनकी यादों में रोने को है ..
फिर कुछ बूंद आँसुओं की
समाएगी इस सागर में रोज की तरह ,,
पर मेरे मन का सागर न
खाली होगा इन आँसुओं से कभी .
पानी के साथ आँसू भी
बदल बन उड़ जाते है आसमां में ..
पर अब तक न बरस पाई
उसके आँगन में ना जाने क्यों .
बस ये उम्मीद कि कभी तो
बारिश बन बरसेगें ये आँसू उस पर .
शायद पिघल ही जाये उसका
दिल उन आँसुओं में छिपे दर्द से 


--प्रस्तुति करणःरणजीत भोंसले

Friday, October 5, 2012

यादों की मासूम तितली..............स्मृति जोशी "फाल्गुनी"

 हर वक्त हर हाल में
मेरे साथ रही
तुम्हारी यादों की तितली

उड़ती रही, मँडराती रही
हवा के संग फरफराती रही
तुम्हारी यादों की तितली

रंगबिरंगी और आकर्षक
नाजुक और खुशनुमा

पकड़ी नहीं जा सकी मुझसे
बस, जब भी पकड़ना चाहा
कठोर होकर,

ना जाने कितनी और
उग आई मुझमें ही
जैसे मैं भूल गई थी
उन्हें खुद में ही बो कर... !

उदासी के लंबे रेगिस्तान में
जब कोई नहीं था
मेरे पास
रही
बस वही ति‍तली
मेरे आसपास।

जब तक साँसों के क्यारी में
महक रही है
तुम्हारी नजरों की रातरानी

थिरकती रहेगी मुझमें
यादों की सुकोमल तितली

अनछुई और अधखिली
कुछ-कुछ सूखी, कुछ-कुछ गीली
यादों की मासूम तितली। 

-स्मृति जोशी "फाल्गुनी" 
 Feature Editor, Webdunia.com