शाख से झर रहा हूं
मै पीला पत्ता
तेरे मन से उतर गया हूं
मैं पीला पत्ता
ना तुम्हें ना बहारों को
कुछ भी अंतर पड़ेगा
सूख कर मुरझाया सा
मै पीला पत्ता
छोड़ ही दोगे ना तुम मुझे
आज कल मे
लो मै ही छोड तुम्हें चला
मै पीला पत्ता
संग हवाओं के बह चला
मै पीला पत्ता
अब रखा ही क्या है मेरे लिये
न आगे की नियति का पता
ना किसी गंतव्य का
मै पीला पत्ता।।
कुसुम कोठारी
बहुत सुंदर रचना
ReplyDeleteबेहद शानदार
बहुत सा आभार नीतू जी।
Deleteजी सादर आभार।
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार रिंकी जी।
ReplyDeleteनमस्ते, आपकी यह प्रस्तुति BLOG "पाँच लिंकों का आनंद"
ReplyDelete( http://halchalwith5links.blogspot.in ) में
गुरूवार 28-12-2017 को प्रकाशनार्थ 895 वें अंक में सम्मिलित की गयी है। प्रातः 4:00 बजे के उपरान्त प्रकाशित अंक चर्चा हेतु उपलब्ध हो जायेगा।
चर्चा में शामिल होने के लिए आप सादर आमंत्रित हैं, आइयेगा ज़रूर।
सधन्यवाद।
जी सादर धन्यवाद।
Deleteआपकी इस प्रस्तुति का लिंक 28-12-2017 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2831 में दिया जाएगा
ReplyDeleteधन्यवाद
सादर धन्यवाद।
Deleteसुंंदर भावाभिव्यक्ति..
ReplyDeleteआदरणीय कुसुम जी -- बेहतरीन रचना के लिए सस्नेह शुभकामना --
ReplyDeleteवाह!!सुंंदर ।
ReplyDeleteसुन्दर धन्यवाद
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