बहुत ही भली लगतीं हैं
माँ की चूड़ियाँ बजती हैं
सुबह-सुबह नींद से जगाने के लिये
माँ की चूड़ियाँ बजती हैं
एक-एक कौर बना कर मुझे खिलाने के लिये
माँ-की चूड़ियाँ बजती हैं
थपकी दे कर मुझे सुलाने के लिये
माँ की चूड़ियाँ बजती हैं
आशीर्वाद और दुआयें देने के लिये..........
हे! ईश्वर सदा मेरी माँ की चूड़ियाँ
इसी तरह बजती रहें खनकती रहें
ये जब तक बजेंगी खनकेंगी
मेरे पापा का प्यार दुलार
मेरे सिर पर बना रहेगा......
वरना तो मैं -
कुछ भी नहीं कुछ भी नहीं
बहन की चूड़ियाँ बजती हैं
मेरी कमर पर प्यार भरा
धौल जमाने के लिये
बहन की चूड़ियाँ बजती हैं
मेरे माथे पर चंदन टीका लगाने के लिये
बहन की चूड़ियाँ बजती हैं
मेरी कलाई पर राखी बाँधने के लिये
बहन की चूड़ियाँ बजती हैं
लड़ने और झगड़ने के लिये
हे! ईश्वर सदा मेरी बहन की चूड़ियाँ
इसी तरह बजती रहें खनकती रहें
ये जब तक बजेंगी
साले बहनोई का रिश्ता रहेगा
और रहेगा भाई बहन का प्यार जन्मों तक..........
पत्नी की चूड़ियाँ बजती हैं
प्रतीक्षारत हाथों से दरवाज़ा खोलने के लिये
पत्नी की चूड़ियाँ बजती हैं
प्यार और मनुहार करने के लिये
पत्नी की चूड़ियाँ बजती हैं
हर दिन रसोई में
मेरी पसन्द के तरह-तरह के
पकवान बनाने के लिये
पत्नी की चूड़ियाँ बजती हैं
जब वह हो जाती है आलिंगनबद्ध
और सिमट जाती है मेरे बाहुपाश में
हे ईश्वर मेरी पत्नी की चूड़ियाँ
इसी तरह बजती रहें खनकती रहें
जब तक ये चूड़ियाँ बजेंगी खनकेंगी
तब तक मैं हूँ मेरा अस्तित्व है
वरना, इनके बिना मैं कुछ भी नहीं कुछ भी नहीं
बेटी की चूड़ियाँ बजती हैं
पापा-पापा करके ससुराल जाते वक़्त
मेरी कौली भरते समय
बेटी की चूड़ियाँ बजती हैं
दौड़ती हुई आये और मेरे
सीने से लगते वक़्त
बेटी की चूड़ियाँ बजती हैं
सूनी आँखों में आँसू लिये
मायके से ससुराल जाते वक़्त.......
बेटी की चूड़ियाँ बजती हैं
रूमाल से अपनी आँख के आँसू
पापा से छिपा कर पोंछते वक़्त
हे! ईश्वर मेरी बेटी की चूड़ियाँ
इसी तरह बजती रहें खनकती रहें
जब तक ये बजेंगी खनकेंगी
मैं उससे दूर रह कर भी
जी सकूँगा......ख़ुश रह सकूँगा
बहू की चूड़ियाँ बजती हैं
मेरे घर को अपना बनाने के लिये
बहू की चूड़ियाँ बजती हैं
मेरे दामन को ख़ुशियों से
भरने के लिये
बहू की चूड़ियाँ बजती हैं
मेरा वंश आगे बढ़ाने के लिये
बहू की चूड़ियाँ बजती हैं
मेरे बेटे को ख़ुश रखने के लिये
हे! ईश्वर मेरी बहू की चूड़ियाँ
सदा इसी तरह बजती रहें खनकती रहें
जब तक ये बजेंगी खनकेंगी
मेरा बुढ़ापा सार्थक है वरना,
इनके बिना तो मेरा जीना ही
निष्क्रिय है निष्काम है!
1986 में अवतरित
श्री अवधेश कुमार जी झा
की ये लम्बी कविता
मैं एक ई- पत्रिका में पढ़ी
अच्छी लगी सो यहाँ सहेज ली
ई- पत्रिका का लिंक यहाँ है
awdheshkumar.jha@gmail.com