Thursday, August 30, 2012

बाहों में हो फूल सदा..............शिखा वर्मा

माना कि बाहों में हो फूल सदा ,
ये जरूरी तो नही ।
काँटों का दर्द भी ,
कभी तो सहना होगा।
राहों में छाव हो सदा,
ये जरूरी तो नहीं।
धुप की चुभन में,
कभी तो रहना होगा ।
हंसी खिलती रहे सदा ,
ये जरूरी तो नहीं।
पलकों पर जमे अश्को को,
कभी तो बहना होगा।
हर पल रहे खुशनुमा सदा,
ये जरूरी तो नहीं,
थम सी गयी है जिन्दगी,
कभी तो कहना होगा।
पर तुम्हें 
खुश रहने की कोशिश तो करना होगा |

-शिखा वर्मा
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Monday, August 27, 2012

सारे टुकड़े जब बिखर जाते हैं.............रश्मि भार्गव

पीठ पर वजन है
हाथ दोनों बंधे हैं
और आपका पत्‍थर
मेरी तरफ ही उठा है

नदी बह रही है
अपनी आंखों में
हंसती हुई
हवा भी चल रही है
अपनी ही मुस्कुराहट में
फैलती हुई
बस यहीं से
मैंने नदी और हवा
बनना शुरू कर दिया है

पत्ते झर रहे हैं
झर-झर
फूलों का गुलदस्ता
महक रहा है
गुन-गुन करता
दिशा के कोने में नारंगी
सूरज दिल खोल रहा है
वहीं इस झर-झर
और
गुन-गुन
और खुलने के बीच के
अन्तर का
अहसास समझ आया है

मैं और तुम
ऊपर नीला आकाश
चहलकदमी करता हुआ
नीचे धरती बिछती हुई
तब भीगने का
बहुत मन किया

पत्थरों के साथ
जब चलते हैं
तो सख्त अहसास
उगते हैं
पहाड़ों की ऊंचाई
से टकराते हैं
तो ऊंचाई की
ओर कदम बढ़ाते हैं
जीवन से जब
आमना-सामना होता है
तभी जीवन की
विषमता से
मिलना होता है.... 

- रश्मि भार्गव

Saturday, August 25, 2012

कुछ बातें जहां से शुरू होती हैं...........रश्मि भार्गव

एक बार फिर से
नदी बहने लगी है
और पानी बढ़ने लगा है
सागर भी छलकने
लगा है
गंध और गंधमयी
होकर बिखर गई है
पता नहीं ऐसा
कैसे हुआ
शायद ये तुमसे
मिलने का असर है
पत्तों का हरा रंग
और हरा हो गया है
हवा का स्पर्श
और मखमली हो गया है
और सफेद पत्थर
इधर-उधर उगने लगे हैं
मैंने पूछा खुद से
कि क्या हो गया है
शायद ये झर-झर
कर बहती हुई
तुम्हारी बातों के
असर से ही हुआ है
हर तरफ से
फूटती है रोशनी
जैसे- रोशनी ने
एक चेहरा बना लिया हो
हां- चेहरा कोई प्रलेप नहीं है
जिसे आत्मा को
चारदीवारी पर अंकित
कर दिया जाए
ये तो अपना आप है
जिसे आप स्वीकार करते हैं
एक प्रकाश पुंज है
जो फैलता जाता है
चेहरे की मखमली फिजां पर
और फिर
सावन भादो की बूंदें
हरियाली का जेवर
मिट्‍टी की खुशबू
फूलों की गंध
ये सब चेहरे का
वास्तविक रूप बन जाता है
शायद या फिर
यूं ही-
मुझे इसका पता तुम्हारी बातों
ने ही बताया है या कहा है
पता नहीं...।

-रश्मि भार्गव

Monday, August 20, 2012

आहट जो तुमसे होकर मुझ तक आती है....फाल्गुनी

रिश्तों की बारीक-बारीक तहें
सुलझाते हुए
उलझ-सी गई हूं,
रत्ती-रत्ती देकर भी
लगता है जैसे
कुछ भी तो नहीं दिया,
हर्फ-हर्फ
तुम्हें जानने-सुनने के बाद भी
लगता है
जैसे
अजनबी हो तुम अब भी,

हर आहट
जो तुमसे होकर
मुझ तक आती है
भावनाओं का अथाह समंदर
मुझमें आलोड़‍ित कर
तन्हा कर जाती है।

एक साथ आशा से भरा,
एक हाथ विश्वास में पगा
और
एक रिश्ता सच पर रचा,

बस इतना ही तो चाहता है
मेरा आकुल मन,
दो मुझे बस इतना अपनापन...
बदले में
लो मुझसे मेरा सर्वस्व-समर्पण....


-स्मृति जोशी "फाल्गुनी"

Sunday, August 19, 2012

ईद मुबारक...आबिद हुसैन

ईद मुबारक...

या अल्लाह, जिन्दगी को नया रास्ता दें दें
तेरा ही जिक्र, तेरा सुकून, तेरी अता दें दें

अब और इम्तिहान की कुव्वत नहीं मुझमे
तू रहीम हें, रहम तेरा जरा सा दें दें

ये अँधेरा सुबह होने का हें या गुमनामी का
थके हुए मुसाफिरों को अदद आसरा दें दें

हर कदम जाने-अनजाने गुनाह किये हें हमने
जो तेरी बारगाह में कुबूल हो वो ही तौबा दें दें

हमने हमारी समझ की हर तरकीब आजमा ली
तू ही अपने गैब से हमें कोई मोजेज़ा दें दें

--'आबिद'

Thursday, August 16, 2012

ज़िन्दगी जब भी मुस्कराएगी........कवि अशोक कश्यप

ज़िन्दगी जब भी मुस्कराएगी
हर झरोखे से महक आएगी

नहीं छेड़ो हया का राग कोई
चांदनी में दुल्हन नहाएगी

ज़रा खोलो तो पंख हिम्मत के
ये ज़मीं छोटी नज़र आएगी

सोचता हूँ के आज भिड़ जाऊ
मौत तो वैसे भी आएगी ...?

आग है हर तरफ महंगाई की
क्या वह खाएगी-पकाएगी...?

सहे सिन्धु सहारा सरिता का
यहाँ प्रलय जरूरी आएगी

शेर, चीते, सियार हँसते हैं
गाय कोई इधर से आएगी

आदमी कुछ भी कर नहीं सकता
जब ये कुदरत सितम ढहायेगी

क़र्ज़ थोड़ा सा और लेता हूँ
आज ससुराल बेटी जायेगी

आज फिर पीके बापू आया है
आई आटा उधार लाएगी

आज मांजी के पैर दाबे थे
क्या ये तरकीब रंग लाएगी ...?

ज़िन्दगी जब भी मुस्कराएगी
हर झरोखे से महक आएगी

---कवि अशोक कश्यप