Monday, October 31, 2016

सत्य कुछ फटा सा........... सुशील कुमार शर्मा





















सत्य कुछ फटा सा
लुटा सा
पिटा सा
हर एक पल
घटा सा।
सत्य कुछ फटा सा।

रोता हुआ
पिटता हुआ
सड़क पर
घिसटता हुआ
आधा साबुत
आधा मिटा सा।
सत्य कुछ फटा सा।  

पहला सा
सहला सा
गरीब जैसा
दहला सा
अजनबी जैसा
खटा सा।
सत्य कुछ फटा सा।  

बिकता हुआ
फिंकता हुआ
बेगारों सा
भटकता हुआ
पैरों के नीचे
अटा सा।
सत्य कुछ फटा सा।

सिमटता हुआ
निपटता हुआ
मन के कोने
चिमटता हुआ
अंदर से कुछ
घुटा सा।
सत्य कुछ फटा सा।  

थमता हुआ
रमता हुआ
बर्फ सा
जमता हुआ।
जिंदगी सा
मिटा सा।
सत्य कुछ फटा सा।

चीखता हुआ
चिल्लाता हुआ
टीवी पर
झल्लाता हुआ
सफेद कुर्ते में
ठुंसा सा।
सत्य कुछ फटा सा।  

मिटता हुआ
सटता हुआ
औरत की चीखों
सा घुटता हुआ
सबकी जुबां पर
रटा सा
सत्य कुछ फटा सा।    

-सुशील कुमार शर्मा

Sunday, October 30, 2016

मैं कच्‍ची मिट्टी............. सीमा 'सदा' सिंघल
















मैं उतरना चाहती हूं 
तेरे मन के आंगन में 
मां तेरी ही तरह 
बसना चाहती हूं सबके दिलों में 
यूं जैसे तेरी ममता 
बसती है ...दर्पण की तरह जिसमें 
जिसकी भी नजर पड़ती है 
उसे अपना ही 
अक्‍स नज़र आता है ... !!!

मैं कच्‍ची मिट्टी 
तुम उसकी सोंधी सी महक 
अंकुरित हुई तेरे 
प्‍यार भरे पावन मन में, 
तुलसी के चौरे की 
परिक्रमा करती जब तुम 
आंचल थामकर 
मैं चलती पीछे-पीछे 
संस्‍कार से सींचती 
तुम मेरा हर कदम 
मैं डगमगाती जब भी 
तुम उंगली पकड़ाती अपनी 
मैं मुस्‍करा के चलती 
संग तुम्‍हारे कदम से कदम मिलाकर ... !!!!

-सीमा 'सदा' सिंघल

Saturday, October 29, 2016

न्याय.............अधीर













न्याय बिक जाता है ...
कोतवाल बिक जाता है....
वकीलों का भी,
हर सवाल बिक जाता है,
सच को भी यहाँ….
अक्सर बिकते देखा है,
मुजरिमों को ऐश.... 
हमने करते देखा है,
मिलती है सज़ायें..
नेकी ..करने वालो को,
मिटा देते है कभी कभी 
ये अंधेरें भी.. उजालो को
हाँ... 
इस बात से,
नही मुझे इंकार है,
की नेकियाँ जहां में..
फिर भी बरक़रार है।

-सुरेश पसारी "अधीर"

Friday, October 28, 2016

मेरी विभा दीदी.... साभार संजय भाई

28 सितंबर 2014 से 28 अक्टूबर 2016 

के दरमियां काफी पानी बह गया सोन और माता गंगा में

हृदय से आभारी हूँ भाई संजय जी का

उनकी ख्वाहिश थी उन्हें माँ कहने वाले ढेर सारे होते --विभारानी श्रीवास्तव


विभारानी श्रीवास्तव ब्लॉगजगत में एक जाना हुआ  नाम है ( विभारानी श्रीवास्तव --  सोच का सृजन यानी जीने का जरिया ) विभारानी जी के लेखन की जितनी भी तारीफ की जाए कम है  एक से बढ़कर एक हाइकू लिखने की कला में माहिर कुछ भी लिखे पर हर शब्द दिल को छूता है हमेशा ही उनकी कलम जब जब चलती है शब्द बनते चले जाते है ...शब्द ऐसे जो और पाठक को अपनी और खीचते है और मैं क्या सभी विभा जी के लेखन की तारीफ करते है...........!!
**************************
कुछ दिन एहले विभा ताई जी की एक पोस्ट पढ़ी
मेरी ख्वाहिश थी
मुझे माँ कहने वाले ढेर सारे होते
मेरी हर बात धैर्य से सुनते
मुझे समझते
ख्वाहिश पूरी हुई फेसबुक पर :))))
.......मेरी आदरणीय ताई जी ये शब्द मुझे भावुक कर गए उनके लिखे शब्द बहुत ही अपनेपन का अहसास कराते है !
मौके कई मिले पर परिस्थियाँ ही कुछ ऐसी थी जिसकी वजह से आज तक ताई जी से मिलने का सौभाग्य नहीं प्राप्त हुआ !
क्योंकि एक लम्बे समय से मैं विभा ताई जी का ब्लॉग पढ़ रह हूँ और फेसबुक स्टेटस भी अक्सर पढता रहता हूँ पर ताई जी के लिए कुछ लिखने का समय नहीं निकल पाया पर आज समय मिला तो तो पोस्ट लिख डाली !
................ विभा ताई जी की उसी रचना की कुछ पंक्तिया साँझा कर रह हूँ जिसे याद कर आज यह पोस्ट लिखने का मौका मिला....!!

.............मेरी ख्वाहिश थी
मुझे माँ कहने वाले ढेर सारे होते
मेरी हर बात धैर्य से सुनते
मुझे समझते
ख्वाहिश पूरी हुई फेसबुक पर
जब किसी ने कहा
सखी
बुई
ताई
बड़ी माँ
चाची
भाभी
दीदी
दीदी माँ दीदी माँ तो कानो में शहनाई सी ,
धुन लगती है .....
यही बात आज मैं ने फूलो से भी कहा
सभी को अपने बांहों के घेरे में लेकर बताना चाहती हूँ ...

विभा ताई जी के अपार स्नेह और आशीर्वाद पाकर खुशकिस्मत हूँ मैं की उनके लिए आज यह पोस्ट लिख पाया सुंदर लेखन के लिए विभा ताई जी को मेरी हार्दिक शुभकामनाएँ....!!!

संकलित श्री संजय भाई के ब्लॉग से

Thursday, October 27, 2016

आवाज़.............दीप्ति शर्मा













आवाज़ जो
धरती से आकाश तक
सुनी नहीं जाती
वो अंतहीन मौन आवाज़
हवा के साथ पत्तियों
की सरसराहट में
बस महसूस होती है
पर्वतों को लाँघकर
सीमाएँ पार कर जाती हैं
उस पर चर्चायें की जाती हैं
पर रात के सन्नाटे में
वो आवाज़ सुनी नहीं जाती
दबा दी जाती है
सुबह होने पर
घायल परिंदे की
अंतिम साँस की तरह
अंततः दफ़न हो जाती है
वो अंतहीन मौन आवाज़
-दीप्ति शर्मा

Wednesday, October 26, 2016

"प्राचीन स्वास्थ्य दोहावली"-3


चैत्र माह में नीम की, पत्ती हर दिन खावे !
ज्वर, डेंगू या मलेरिया, बारह मील भगावे !!

सौ वर्षों तक वह जिए, लेते नाक से सांस!
अल्पकाल जीवें, करें, मुंह से श्वासोच्छ्वास!!

सितम, गर्म जल से कभी, करिये मत स्नान!
घट जाता है आत्मबल, नैनन को नुकसान!!

हृदय रोग से आपको, बचना है श्रीमान!
सुरा, चाय या कोल्ड्रिंक, का मत करिए पान!!

अगर नहावें गरम जल, तन-मन हो कमजोर!
नयन ज्योति कमजोर हो, शक्ति घटे चहुंओर!!

तुलसी का पत्ता करें, यदि हरदम उपयोग!
मिट जाते हर उम्र में,तन में सारे रोग।

-श्री अख्तर खान "अकेला" द्वारा संकलित



Tuesday, October 25, 2016

"प्राचीन स्वास्थ्य दोहावली"-2


रक्तचाप बढने लगे, तब मत सोचो भाय!
सौगंध राम की खाइ के, तुरत छोड दो चाय!!

सुबह खाइये कुवंर-सा, दुपहर यथा नरेश!
भोजन लीजै रात में, जैसे रंक सुरेश!!

देर रात तक जागना, रोगों का जंजाल!
अपच,आंख के रोग सँग, तन भी रहे निढाल

दर्द, घाव, फोडा, चुभन, सूजन, चोट पिराइ!
बीस मिनट चुंबक धरौ, पिरवा जाइ हेराइ!!

सत्तर रोगों कोे करे, चूना हमसे दूर!
दूर करे ये बाझपन, सुस्ती अपच हुजूर!!

भोजन करके जोहिए, केवल घंटा डेढ!
पानी इसके बाद पी, ये औषधि का पेड!!

अलसी, तिल, नारियल, घी सरसों का तेल!
यही खाइए नहीं तो, हार्ट समझिए फेल!

पहला स्थान सेंधा नमक, पहाड़ी नमक सु जान!
श्वेत नमक है सागरी, ये है जहर समान!!

अल्यूमिन के पात्र का, करता है जो उपयोग!
आमंत्रित करता सदा, वह अडतालीस रोग!!

फल या मीठा खाइके, तुरत न पीजै नीर!
ये सब छोटी आंत में, बनते विषधर तीर!!

चोकर खाने से सदा, बढती तन की शक्ति!
गेहूँ मोटा पीसिए, दिल में बढे विरक्ति!!

रोज मुलहठी चूसिए, कफ बाहर आ जाय!
बने सुरीला कंठ भी, सबको लगत सुहाय!!

भोजन करके खाइए, सौंफ, गुड, अजवान!
पत्थर भी पच जायगा, जानै सकल जहान!!

लौकी का रस पीजिए, चोकर युक्त पिसान!
तुलसी, गुड, सेंधा नमक, हृदय रोग निदान!

प्रस्तुतिकरणः अख्तर ख़ान "अकेला"
और भी है...देखते रहिए..

Monday, October 24, 2016

"प्राचीन स्वास्थ्य दोहावली"



पानी में गुड डालिए, बीत जाए जब रात!
सुबह छानकर पीजिए, अच्छे हों हालात!!

धनिया की पत्ती मसल, बूंद नैन में डार!
दुखती अँखियां ठीक हों, पल लागे दो-चार!!

ऊर्जा मिलती है बहुत, पिएं गुनगुना नीर!
कब्ज खतम हो पेट की, मिट जाए हर पीर!!

प्रातः काल पानी पिएं, घूंट-घूंट कर आप!
बस दो-तीन गिलास है, हर औषधि का बाप!!

ठंडा पानी पियो मत, करता क्रूर प्रहार!
करे हाजमे का सदा, ये तो बंटाढार!!

भोजन करें धरती पर, अल्थी पल्थी मार!
चबा-चबा कर खाइए, वैद्य न झांकें द्वार!!

प्रातः काल फल रस लो, दुपहर लस्सी-छांस!
सदा रात में दूध पी, सभी रोग का नाश!!

प्रातः- दोपहर लीजिये, जब नियमित आहार!
तीस मिनट की नींद लो, रोग न आवें द्वार!!

भोजन करके रात में, घूमें कदम हजार!
डाक्टर, ओझा, वैद्य का , लुट जाए व्यापार !!

घूट-घूट पानी पियो, रह तनाव से दूर!
एसिडिटी, या मोटापा, होवें चकनाचूर!!

अर्थराइज या हार्निया, अपेंडिक्स का त्रास!
पानी पीजै बैठकर, कभी न आवें पास!!

प्रस्तुतिकरणः अख्तर ख़ान "अकेला"
और भी है...देखते रहिए..

Sunday, October 23, 2016

ये ज़िंदगी तो है रहमत..............राहत इदौरी

हरेक चहरे को ज़ख़्मों का आइना न कहो
ये ज़िंदगी तो है रहमत इसे सज़ा न कहो

न जाने कौन सी मजबूरियों का क़ैदी हो
वो साथ छोड़ गया है तो बेवफ़ा न कहो

तमाम शहर ने नेज़ों पे क्यों उछाला मुझे
ये इत्तेफ़ाक़ था तुम इसको हादिसा न कहो

ये और बात के दुशमन हुआ है आज मगर
वो मेरा दोस्त था कल तक उसे बुरा न कहो

हमारे ऐब हमें ऊँगलियों पे गिनवाओ
हमारी पीठ के पीछे हमें बुरा न कहो

मैं वाक़यात की ज़ंजीर का नहीं कायल
मुझे भी अपने गुनाहो का सिलसिला न कहो

ये शहर वो है जहाँ राक्षस भी हैं राहत
हर इक तराशे हुए बुत को देवता न कहो

--राहत इंदौरी 

Saturday, October 22, 2016

अलविदा............विजय कुमार सप्पत्ति

सोचता हूँ 
जिन लम्हों को, 
हमने एक दूसरे के नाम किया है 
शायद वही ज़िंदगी थी !

भले ही वो ख़्यालों में हो , 
या फिर अनजान ख़्वाबों में ..
या यूँ ही कभी बातें करते हुए ..
या फिर अपने अपने अक़्स को,
एक दूजे में देखते हुए हो ....

पर कुछ पल जो तुने मेरे नाम किये थे...
उनके लिए मैं तेरा शुक्रगुजार हूँ !!

उन्हीं लम्हों को,
मैं अपने वीरान सीने में रख,
मैं,
तुझसे ,
अलविदा कहता हूँ ......!!!
अलविदा !!!!!!











-विजय कुमार सप्पत्ति

vksappatti@gmail.com

Friday, October 21, 2016

काश..............दिव्या माथुर













काश कि उस मनहूस सुबह
मैं सीढ़ी से गिर जाती
मेरी तीमारदारी में तुम्हें
दफ़्तर की देर हो जाती
हलका सा दिल का दौरा
या तुम्हें सुबह पड़ जाता
आराम करो पूरा ह्फ़्ता
डाक्टर साग्रह कह जाता
‘स्कूल छोड़कर आओ पापा’
रघु ही उस दिन ज़िद करता
लाडली तुम्हारी गोद में चढ़
गंदा कर देती सूट नया
सजधज के मेनका सी मैं
काश कि पाती तुम्हें रिझा
काश तुम्हारा मचलके दिल 
द्फ़्तर जाने को न करता
काश कि सूरज देर से उगता
काश अलारम न बजता
काश सुबह हम देर से उठते
काश ये घर न उजड़ता।

-दिव्या माथुर

Thursday, October 20, 2016

हमीं बुनियाद का पत्थर हैं........ राहत इंदौरी

नया सूरज निकाला जा रहा है
दिए में तेल डाला जा रहा है

हमीं बुनियाद का पत्थर हैं 
लेकिन हमें घर से निकाला जा रहा है 

न हार अपनी न अपनी जीत होगी
मगर सिक्का उछाला जा रहा है

मेरे झूठे गिलासों की चखा कर
बहकों को संभाला जा रहा है

जनाज़े पे मेरे लिख देना यारो
मोहब्बत करने वाला जा रहा है

Wednesday, October 19, 2016

हर लम्हा खुश होना पड़ेगा............डॉ. फ़रियाद "आज़र"


खु़द अपना बारे-गम ढोना पड़ेगा
मगर हर लम्हा खुश होना पड़ेगा

वो इतना हँस चुका है ज़िन्दगी में
कि शायद उम्र भर रोना पड़ेगा

अगर तुम खु़द को पाना चाहते हो
तो आपने आप को खोना पड़ेगा

वो शायद ख़्वाब में दोबारा आये
मुझे इक बार फिर सोना पड़ेगा

निखर जायेगी फिर सूरत तुम्हारी
मगर अश्कों से मुँह धोना पड़ेगा

पड़ेगा दुश्मनों का साथ देना
ख़िलाफ़ अपने उसे होना पड़ेगा

-डॉ. फ़रियाद "आज़र"

Tuesday, October 18, 2016

सफ़र में.............सुशील यादव

तुम बाग़ लगाओ, तितलियाँ आएँगी
उजड़े गाँव नई बस्तियाँ आएँगी

जिन चेहरों सूखा, आँख में सन्नाटा
बादल बरसेंगे, बिजलियाँ आएँगी

दो चार क़दम जो, चल भी नहीं पाते
हिम्मत की नई, बैसाखियाँ आएँगी

उम्मीद की बंसी, बस डाले रखना
क़िस्मत की सब, मछलियाँ आएँगी

सफ़र में अकेले, हो तो मालूम रहे
तेरे सामने भी, दुश्वारियां आएँगी

नाकामी अंदाज़ में, कुछ नये छुपाओ
अख़बार छप के, सुर्खियाँ आएँगी

-सुशील यादव

Monday, October 17, 2016

खुद ही बदल सको तो चलो............ निदा फ़ाज़ली


सफर में धूप तो होगी, जो चल सको तो चलो
सभी हैं भीड़ में, तुम भी निकल सको तो चलो

किसी के वास्ते राहें कहाँ बदलती हैं 
तुम अपने आप को खुद ही बदल सको तो चलो 

यहां किसी को कोई रास्ता नहीं देता 
मुझे गिरा के अगर तुम संभल सको तो चलो 

कहीं नहीं कोई सूरज, धुंआ धुंआ है फ़िज़ा
खुद अपने आप से बाहर निकल सको तो चलो

यही है ज़िन्दगी, कुछ ख्वाब, चंद उम्मीदें
इन्ही खिलौनों से तुम भी बहल सको तो चलो
-निदा फ़ाज़ली 
http://www.bestghazals.net/2016/10/nida-fazlis-poetry-yahaan-kisi-ko-koi.html

Sunday, October 16, 2016

बिना हड्डियों वाली लड़की

शुभ प्रभात

क्या आपने बिना हड्डियों वाली लड़की देखी है
नहीं न...
तो देर क्यों देख लीजिए इस मंगोलियन लड़की को

एक जू-ए-दर्द से जिगर तक रवां है आज............... अली सरदार जाफ़री

एक जू-ए-दर्द से जिगर तक रवां है आज
पिघला हुआ रगों में इक आतिश-फ़िशां है आज
जू-ए-दर्द=पीड़ा की नदी; रवाँ=बहना/चलना
रग़=नाड़ी; आतिश-फ़िशां=ज्वालामुखी

लब सी दिये हैं ता न शिक़ायत करे कोई
लेकिन हर एक ज़ख्म के मुँह में ज़बां है आज
ता=ताकि

तारीकियों ने घेर लिया है हयात को
लेकिन किसी का रू-ए-हसीं दर्मियां है आज
तारिकी=अँधेरा; हयात=जीवन; रू=चेहरा; हसीं=सुन्दर

जीने का वक़्त है यही मरने का वक़्त है
दिल अपनी ज़िन्दगी से बहुत शादमां है आज
शादमां=प्रसन्न

हो जाता हूँ शहीद हर अहल-ए-वफ़ा के साथ
हर दास्तान-ए-शौक़ मेरी दास्तां है आज
अहल-ए-वफ़ा=विश्वसनीय; दास्तान-ए-शौक़=प्रेमकथा

आए हैं किस निशात से हम क़त्ल-गाह में
ज़ख्मों से दिल चूर नज़र गुल-फ़िशां है आज
निशात=प्रसन्नता; क़त्ल-गाह=वध-स्थल; चूर=टूटा हुआ; गुल-फ़िशां=फूलों को फैलना

ज़िन्दानियों ने तोड़ दिया जुल्म का ग़रूर
वो दब-दबा वो रौब-ए-हुकूमत कहाँ है आज
ज़िन्दानी=बन्दी; ग़रूर=अभिमान; दब-दबा=तड़क-भड़क;
रौब=धाक / डर / त्रास; हुकूमत=शासन

अली सरदार जाफ़री 
29 नवम्बर 1913 - 01 अगस्त 2000

Saturday, October 15, 2016

भविष्य को संजोते हैं...........सीमा 'सदा'








वक़्त को जरूरत के पंख लगा दो तो
वो और तेजी से भागता है,
ठहरता नहीं जरा भी
सोचती हूँ भागते-भागते
कितना कुछ पीछे छूट गया होगा
पर वो मस्त है
उसके पास अपनी ही व्यस्तता है
गुजरे हुए कल और आने वाले कल के बदले
वह आज में जीने का अभ्यस्त है !!!
जो गुज़र गया है वो
काल के गाल में समा गया
जो आने वाला है
उसकी भी उसे फिक्र नहीं
बस आज और अभी में जीता है
काश समय के इस पाठ को
हम भी पढ़ पाते, सीख पाते इससे
वर्तमान में जीना !!!
....
हम विपरीत नियमावलि को अपनाते हैं
तभी तो वर्तमान में अतीत को जीते हैं
भविष्य को संजोते हैं संवारते हैं
औ' अपने आज को
संघर्षपूर्ण या फिर कड़वा कर लेते हैं !!!!!!
-सीमा 'सदा'

Friday, October 14, 2016

ज़िन्दगी...............सरोज भटनागर

क्षणिकाएँ


 1
दिल कुछ सोच कर
गुदगुदा जाता है
कि राह में दो कदम चल कर
कोई मुस्कुरा जाता है
ना जाने कभी कोई क्षण
ज़िन्दगी को ज़िन्दगी बना जाता है।

2
ज़िन्दगी जब भी कभी
ख़ुद को पढ़ा करती है
एक हल्की सी पीड़ा
मुँह पर चादर ओढ़ लेती है,
दुख इतने मिले कि
पलकों से चुन लेती हूँ
अरे - सुख एक मिला
वो भी बोझ बन गया।

3
हँस रहा था अभी वह
और घर जाते जाते मर गया
ज़िन्दगी और मौत का 
फ़ासला तो देखिए ज़रा।

4
ज़िन्दगी ने जो ग़म सहा
वह औरों का दिया नहीं था
वो ज़ख़्‍म ख़न्जरों के भी नहीं थे,
मीठे बोल रेशम में लपेटे
बहुत बार सुने हैं अपनों से।

-सरोज भटनागर

Thursday, October 13, 2016

अन्त्येष्टि - कुछ भाव...............दिव्या माथुर

कफ़न
बर्फ़ के पैसे बचा
बेटा ले तो आया है
किंतु कब तक
ये धूपबत्ती संभाल पाएगी दुर्गंध
विधवा के मन में
चल रहा है ये द्वंद
सोच रहा है बेटा उधर
पिता के मृत शरीर पर 
यदि फटी धोती
डाली जा सकती
तो ख़रीद लाता वह 
माँ के लिए एक धोती सस्ती।


करवट
लंबी काली कार पर 
सजा दिए गये हैं
फूलों से लिखे संदेश
‘लव यू पापा’
‘मिस यू ग्रैंड डैड’
‘फ़ेयर दी वैल हब्बी’

शवपेटिका में लेटे
करवट बदल रहे हैं
वही दादा जो
जीवन भर
ग़ुलामी के विरुद्ध खटे।

कुट्टी 
काली टाई लगाये
दस वर्षीय पोता
माँ से ज़िद कर रहा है
शवपेटिका को खोलने की
भला उसके दादा 
इतनी देर कैसे चुप रह सकते हैं
काला रिबन और
नई काली फ्रॉक पहने
पिता की अँगुली थामें
सहमी सी चल रही है पोती
अपने दादा से उसने
कल ही तो कुट्टी की थी।

नुमाइश
काले क्रिस्प सूट पहने बेटे
मेहमानों की खातिर में लगे हैं
सिल्क की साड़ियाँ पहने बहुऐं
अपने चमकते हीरों की
नुमाइश में लगीं हैं
बिचका के मुँह 
किसी ने कहा
एक दिन के लिए
इतने महँगे हीरे लेने का क्या फ़ायदा
बहु ने खटाक से जवाब दिया
पर हीरे तो हर मौके पर
पहने जा सकते हैं।

शिष्टाचार
नई नवेली विधवा
पड़ौसिनों से घिरी बैठी है
काली सिल्क की
नई साड़ी में लिपटी 
असहज
‘कैसी हो?’
‘आल राइट?’
‘केम छो?’
के प्रश्नों के भँवर में
डूबती उबरती
‘हाँ’ में सिर हिलाती है तो
पाती है कि वह ज़िंदा है।

तेरहवीं
सफ़ेद और लाल शराब में
तैरते लोग अपनी अपनी 
चपर चपर में लगे हैं
तरह तरह के पकवान सजे हैं
‘अरे कोई मृतक को भी याद कर लो’
दिल्ली से आई ताईजी ने कहा

कँधे उचका कर 
लोग इधर उधर हो लिए
बहू ने लपक कर भरे दिये में
कुछ और घी डाल दिया
बेटे ने जगजीत सिंह के भजनों की
टेप लगा दी।

-दिव्या माथुर
DivyaMathur@aol.com

Monday, October 10, 2016

अंतिम क्रिया.........राकेश भ्रमर


उस देश के लोग बहुत धार्मिक थे. उन दिनों गौ रक्षा को लेकर देश में धार्मिक उन्माद बहुत उफान पर था. 
पिछले दिनों देश के एक प्रदेश में कुछ व्यक्तियों को इसलिए सरेआम डण्डों से मारा-पीटा गया, क्योंकि वह गाय की खाल उतार रहे थे. मरे हुए जानवरों की खाल निकालना उनका पुश्तैनी कर्म था. इसके बावजूद गौ रक्षकों ने उनको बेरहमी से पीटा. इस बात को लेकर प्रदेश में बवाल मच गया. देश की संसद में भी हंगामा हुआ. 

इसी बीच प्रदेश के एक गांव में पंडित जी की गाय बीमार पड़ गयी. बहुत इलाज कराने के बावजूद वह नहीं बची और मर गयी. पंडितजी स्वयं उसे उठाकर नहीं फेंक सकते थे, अतः वह रामदास रैदास के घर गए. उससे मृत गाय को उठाकर गांव से बाहर फेंकने के लिए कहा. वह तैयार हो गया, परन्तु उसी समय रामदास का बेटा वहां आ गया. वह शहर में पढ़ता था और देश के हालात से अवगत था. 

मामला समझकर पंडितजी से बोला, ‘‘पंडितजी, एक बात बताइए, आप गाय को क्या मानते हैं?’’ 
पंडित जी पहले तो चौंके, फिर संभलकर बोले, ‘‘गाय हमारी माता है.’’ 
‘‘गाय आपकी माता है, तो आप स्वयं उसका दाह-संस्कार क्यों नहीं करते?’’ 

‘‘क्या मतलब?’’ पंडित जी हैरान रह गये. 
‘‘मतलब बहुत साफ है. गाय आपकी मां है, तो उसकी अंतिम क्रिया आप ही करेंगे. हम क्यों करेंगे? आप लोगों ने जगह-जगह गौ रक्षक समितियां खोल रखी हैं. फिर मृत गाय को उठाने के लिए हमारे पास क्यों आए हैं? 

वह आपकी माता है, आप ही उसे उठाइए...फेंकिए या जलाइए. हम आपकी माता को क्यों हाथ लगाएं. आप कहते हैं कि हम लोगों की छाया पड़ने मात्र से आप अपवित्र हो जाते हैं. तब अगर हम आपकी माता को छुएंगे, तो क्या पाप के भागी नहीं बनेंगे. 

आप अपने हाथों अपनी माता का अंतिम संस्कार करके उसे स्वर्ग भेजिए और हमें नर्क जाने से बचाइए.’’ 

पंडितजी के पास कोई उत्तर नहीं था. वह पिटा हुआ-सा मुंह लेकर घर लौट आए.

-राकेश भ्रमर, 
रचनाकार

Sunday, October 9, 2016

हिम्मत है तो सूरज के मुक़ाबिल भी आ.....प्रस्तुतिः द्वारका दास


आसमानो से जमीनो को मिलाने वाले 
झूठें होते है ये तकदीर बताने वाले 

अब तो मर जाता है रिश्ता ही बुरे वक्तो पर
पहले मर जाते थे रिश्तों को निभाने वाले 

जो तेरे ऐब बताता है उसे मत खोना 
अब कहां मिलते है आइना दिखाने वाले 

टूटकर भी मैं मुक्कमल हूं के भारत हूँ मैं
कट गये खुद ही मुझे तोड़ कर जाने वाले

बन गया ज़ह्र मेरी लौ का धुआं रात गए
सुबह उट्ठे ही नहीं मुझ को जगाने वाले

तुझ में हिम्मत है तो सूरज के मुक़ाबिल भी आ
मेरे मासूम चराग़ों को डराने वाले

परदे दरवाज़ों पे, आँगन में हसीं चेहरे थे
गाँव में घर हुआ करते थे ख़ज़ाने वाले

प्रस्तुतिः  द्वारका दास

Saturday, October 8, 2016

औरत का दर्द............दिनेश ध्यानी









औरत का दर्द
आजीवन पराश्रित
कहने को तो घर की लक्ष्मी
हक़ीक़त में
लाचार और विवश।

जन्मने से पहले
जन्मने के बाद न जाने 
कब दबा दिया जाय
इसका गला।

तरेरती आँखें नोचने को तत्पर
न घर, न बाहर रही अब सुरक्षित,
जीवन की रटना
जीवन भर खटना
दूसरों की खातिर
खुद को होम करना।

-दिनेश ध्यानी

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Wednesday, October 5, 2016

मिरर इमेज लिखने के शौक ने लिखवाई विश्व प्रसिद्ध पुस्तकें..... मिताली गोयल

दुनिया में एक से एक कलाकार मौजूद है जिनकी प्रतिभा देखकर लोग चमत्कार समझने लगते है। ऐसे ही एक कलाकार ने पांच तरह की पुस्तकों को लिखकर चौका दिया है। लेखक पीयूष गोयल ने उल्टे अक्षरों में गीता, सुई से मधुशाला, मेंहंदी से गीतांजलि, कार्बन पेपर से पंचतंत्र के साथ ही कील से पीयूष वाणी लिख डाली। पीयूष की इन किताबों को देखकर हर कोई हतप्रभ है।कला और दक्षता की कोई सीमा नहीं होती,रोज नई उपलब्‍धियां प्रकाश में आती रहती हैं, ऐसा ही दिलचस्‍प कारनामा किया है श्रीमती रविकांता एवं डॉ. दवेंद्र कुमार गोयल के बेटे पीयूष गोयल ने। उसने पंच प्रचलित पुस्‍तकें पंच तरीके से लिख डाली हैं।

इनमें अध्‍यात्‍म दर्शन और कर्मफल संस्‍कृति को व्‍यापक और सहजता के साथ जनग्राही बनाने वाली भागवत गीता भी शामिल है।49 वर्षीय पीयूष गोयल अपने धुन में रमकर कुछ अलग करने में जुटे कि शब्दों को उल्टा लिखने में लग गए। इस धुन में ऐसे रमे कि कई अलग-अलग सामग्री से कई पुस्तकें लिख दीं।

डिप्लोमा इन मैकेनिकल इंजीनियरिंग का पढ़ाई करने वाले पीयूष गोयल का 2000 में एक्सीडेंट हो गया था। उन्हें इस हादसे से उबरने में करीब नौ माह  लग गए।  इस दौरान उन्होंने श्रीमद्भभगवद गीता को अपने जीवन में उतार लिया। जब वे ठीक हुए तो कुछ अलग करने की जिजीविषा पाले वे शब्दों को उल्टा (मिरर शैली) लिखने का प्रयास करने लगे। फिर अभ्यास ऐसा बना कि उन्होंने कई किताबें लिख दीं। गोयल की लिखीं पुस्तकें पढ़ने के लिए आपको दर्पण का सहारा लेना पड़ेगा। उल्टे लिखे अक्षर दर्पण में सीधे दिखाई देंगे और आप आसानी से उसे पढ़ लेंगे।
पीयूष गोयल बताते हैं कि कुछ लोगों ने कहा कि आपकी लिखी किताबें पढ़ने के लिए शीशे की जरूरत होगी। कुछ ऐसा करें कि दर्पण की जरूरत न पड़े। इस पर पीयूष गोयल ने सुई से मधुशाला लिख दी। 
हरिवंश राय बच्चन की पुस्तक ‘मधुशाला’ को सुई से मिरर इमेज में लिखने में करीब ढाई माह का समय लगा। गोयल की मानें तो यह सुई से लिखी ‘मधुशाला’ दुनिया की अब तक की पहली ऐसी पुस्तक है जो मिरर इमेज व सुई से लिखी गई है।



उल्‍टे अक्षरों से लिख गई भागवत गीता ( Bhagwat Gita )

आप इस भाषा को देखेंगे तो एकबारगी भौचक्के रह जायेंगे। आपको समझ में नहीं आयेगा कि यह किताब किस भाषा शैली में लिखी हुई है। पर आप जैसे ही दर्पण ( शीशे‌ ) के सामने पहुंचेंगे तो यह किताब खुद-ब-खुद बोलने लगेगी। सारे अक्षर सीधे नजर आयेंगे। इस मिरर इमेज किताब को पीयूष ने लिखा है। मिलनसार पीयूष मिरर इमेज की भाषा शैली में कई किताबें लिख चुके हैं।

सुई से लिखी मधुशाला ( Madhushala )

पीयूष ने एक ऐसा कारनामा कर दिखाया है कि देखने वालों आँखें खुली रह जाएगी और न देखने वालों के लिए एक स्पर्श मात्र ही बहुत है। पीयूष ने पूछने पर बताया कि सुई से पुस्तक लिखने का विचार क्यों आया ? अक्सर मुझ से ये पूछा जाता था कि आपकी पुस्तकों को पढ़ने के लिए शीशे की जरूरत पड़ती है। पढ़ना उसके साथ शीशा, आखिर बहुत सोच समझने के बाद एक विचार दिमाग में आया क्यों न सूई से कुछ लिखा जाये सो मैंने सूई से स्वर्गीय श्री हरिवंशराय बच्चन जी की विश्व प्रसिद्ध पुस्तक 'मधुशाला' को करीब 2 से ढाई महीने में पूरा किया। यह पुस्तक भी मिरर इमेज में लिखी गयी है और इसको पढ़ने लिए शीशे की जरूरत नहीं पड़ेगी क्योंकि रिवर्स में पेज पर शब्दों के इतने प्यारे मोतियों जैसे पृष्ठों को गुंथा गया है, जिसको पढ़ने में आसानी रहती हैं और यह सूई से लिखी 'मधुशाला' दुनिया की अब तक की पहली ऐसी पुस्तक है जो मिरर इमेज व सूई से लिखी गई है।

मेंहदी कोन से लिखी गई गीतांजलि ( Gitanjali )

पीयूष ने एक और नया कारनामा कर दिखाया है उन्होंने 1913 के साहित्य के नोबेल पुरस्कार विजेता रविन्द्रनाथ टैगोर की विश्व प्रसिद्ध कृति 'गीतांजलि' को 'मेंहदी के कोन' से लिखा है। उन्होंने 8 जुलाई 2012 को मेंहदी से गीतांजलि लिखनी शुरू की और सभी 103 अध्याय 5 अगस्त 2012 को पूरे कर दिए।इसको लिखने में 17 कोन तथा दो नोट बुक प्रयोग में आई हैं। पीयूष ने श्री दुर्गा सप्त शती, अवधी में सुन्दरकांड, आरती संग्रह, हिंदी व अंग्रेजी दोनों भाषाओं में श्री साईं सत्चरित्र भी लिख चुके हैं। 'रामचरितमानस' ( दोहे, सोरठा और चौपाई ) को भी लिख चुके हैं। 

कील से लिखी 'पीयूष वाणी'

अब पीयूष ने अपनी ही लिखी पुस्तक 'पीयूष वाणी' को कील से ए-फोर साइज की एल्युमिनियम शीट पर लिखा है। पीयूष ने पूछने पर बताया कि कील से क्यों लिखा है ? तो उन्होंने बताया कि वे इससे पहले दुनिया की पहली सुई से स्वर्गीय श्री हरिवंशराय बच्चन जी की विश्व प्रसिद्ध पुस्तक 'मधुशाला' को लिख चुके हैं। तो उन्हें विचार आया कि क्यों न कील से भी प्रयास किया जाये सो उन्होंने ए-फोर साइज के एल्युमिनियम शीट पर भी लिख डाला।

कार्बन पेपर की मदद से लिखी 'पंचतंत्र' ( Carbon paper written 'Panchatantra' )

गहन अध्ययन के बाद पीयूष ने कार्बन पेपर की सहायता से आचार्य विष्णुशर्मा द्वारा लिखी 'पंचतंत्र' के सभी ( पाँच तंत्र, 41 कथा ) को लिखा है। पीयूष ने कार्बन पेपर को (जिस पर लिखना है) के नीचे उल्टा करके लिखा जिससे पेपर के दूसरी और शब्द सीधे दिखाई देंगे यानी पेज के एक तरफ शब्द मिरर इमेज में और दूसरी तरफ सीधे।

जीवन परिचय


पीयूष गोयल  का जन्म 10 फ़रवरी 1967 को माता रविकांता एवं डॉ. दवेंद्र कुमार गोयल के घर हुआ। पीयूष 2003 से कुछ न कुछ लिखते आ रहे हैं 
श्रीमदभगवदगीता (हिन्दी व अंग्रेज़ी), श्री दुर्गा सप्त सत्ती (संस्कृत), श्रीसांई सतचरित्र (हिन्दी व अंग्रेज़ी), श्री सुंदरकांड, चालीसा संग्रह, सुईं से मधुशाला, मेहंदी से गीतांजलि (रबींद्रनाथ टैगोर कृत), कील से "पीयूष वाणी" एवं कार्बन पेपर से "पंचतंत्र" (विष्णु शर्मा कृत)।


नर न निराश करो मन को
नर न निराश करो मन को
कुछ काम करो, कुछ काम करो
जग में रहकर कुछ नाम करो
इन लाइनों से प्रेरणा लेकर पले बढे है पीयूष गोयल पेशे से डिप्लोमा यांत्रिक इंजिनियर है। इन सबके अलावा पीयूष गोयल दुनिया की पहली मिरर इमेज पुस्तक श्रीमदभागवत गीता के रचनाकार हैं। पीयूष गोयल ने सभी 18 अध्याय 700 श्लोक अनुवाद सहित हिंदी व अंग्रेज़ी दोनों भाषाओं में लिखा है। पीयूष गोयल ने इसके अलावा दुनिया की पहली सुई से मधुशाला भी लिखी है। पीयूष गोयल की 3 पुस्तकें प्रकशित हो चुकी हैं। पीयूष गोयल संग्रह के भी शौक़ीन हैं, उनके पास प्रथम दिवश आवरण, पेन संग्रह, विश्व प्रसिद्ध लोगो के ऑटोग्राफ़ संग्रह भी हैं। इस के आलावा संस्कृत में श्री दुर्गा सत्सती, अवधी में सुन्दरकाण्ड, हिंदी व अंग्रेज़ी में श्रीसाईं चरित्र भी लिख चुके हैं।



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उपरोक्त विवरण अभी मुझे मेल से प्राप्त हुई......
पूरा अक्षरशः कॉपी करके यहां रख दी हूँ .. 
मिताली बहन को आभार
उनके द्वारा प्रेषित इस रचना का लिंक उन्हें भेज रही हूँ
सम्पर्क सूत्र 
mitaligoel1770@gmail.com