चाँद बोला चाँदनी, चौथा पहर होने को है,
चल समेटें बिस्तरे वक़्ते सहर होने को है।
चल यहाँ से दूर चलते हैं सनम माहे-जबीं,
इस ज़मीं पर अब न अपना तो गुज़र होने को है।
गर सियासत ने न समझा दर्द जनता का तो फिर,
हाथ में हर एक के तेग़ो-तबर होने को है।
तेग़ो-तबर=तलवार और फरसा (कुल्हाड़ी)
जो निहायत ही मलाहत से फ़साहत जानता,
ना सराहत की उसे कोई कसर होने को है।
मलाहत=उत्कृष्टता; फ़साहत=वाक्पटुता; सराहत=स्पष्टता
है शिकायत, कीजिये लेकिन हिदायत है सुनो,
जो क़बाहत की किसी ने तो खतर होने को है।
क़बाहत=खोट;अश्लीलता; ख़तर=ख़तरा
पा निजामत की नियामत जो सखावत छोड़ दे,
वो मलामत ओ बगावत की नज़र होने को है।
निज़ामत=प्रबंधन; नियामत (नेमत)=वरदान;
सख़ावत=सज्जनता; मलामत=दोषारोपण; बग़ावत=विद्रोह
शान "हिन्दुस्तान" की कोई मिटा सकता नहीं,
सरफ़रोशों की न जब कोई कसर होने को है।
गंगाधर शर्मा "हिन्दुस्तान"
(कवि एवं साहित्यकार)
अजमेर (राजस्थान)
gdsharma1970@gmail.com