Monday, August 31, 2020

डिस्कोर्स ...पूजा प्रियंवदा

खाली स्क्रीन तकते रहना
उस पर गुज़रते लफ़्ज़ों
और एक जैसे चेहरों को
पारदर्शी होते देखना

"रीडिंग बिटवीन द लाइन्स" का हुनर
अब काम आ रहा है
डिस्कोर्स की परख होना
वरदान भी है अभिशाप भी

कर्कश अट्टहासों के बाज़ार में
अंतर्मन का पार्श्वस्वर होना
दुश्वार है
बहिष्कृत रह कर
लोकप्रिय होने से
अपना एक संसार होना

सुनते हैं
सर्वव्यापी महामारी है
अकेले मरने की
फिर भी लाचारी है

ये पल पल एहसास
चाय में घोलती हूँ
धुएँ में फूंक देती हूँ
गोली में गटक लेती हूँ
और देखती हूँ
तुम्हें
अपनी स्क्रीन से गुज़रते हुए

-पूजा प्रियंवदा

Sunday, August 30, 2020

भादों की इस भारी बारिश में ...कृष्ण धर शर्मा

कितने ही चेहरे खिल उठे होंगे
सूखे सावन के बाद हुई
भादों की इस भारी बारिश में

कितने ही अरमानों को आज
पंख मिल गए होंगे
भादों की इस भारी बारिश में

कितने ही तो भजिये खाकर
इतराते होंगे, इठलाते होंगे
भादों की इस भारी बारिश में

कितने ही कवि कवितायें
लिखते होंगे इस बारिश पर
भादों की इस भारी बारिश में

कितनी ही कच्ची दीवारों ने
दम तोड़ा होगा आज अपना
भादों की इस भारी बारिश में

कितने ही बेघर हुए होंगे आज
कितने ही चूल्हे जले न होंगे
भादों की इस भारी बारिश में

चूल्हे को तकती आँखों को देख
कितनी ही माएं होंगी उदास
भादों की इस भारी बारिश में

-कृष्ण धर शर्मा, 

Saturday, August 29, 2020

खुद पर यकीन करो ..मंजू मिश्रा


उठो
सीधी खड़ी  हो 
और खुद पर यकीन करो 
तुम किसी से कम नहीं हो 
तुम झूठे पौरुष के दंभ का शिकार 
जानवरों का शिकार तो
बिलकुल नहीं बनोगी
तुम जिंदगी में 
किसी से नहीं डरोगी ....
*** 
अपने
पैरों के नीचे की जमीन 
और सर के ऊपर का आसमान 
तुम खुद तलाश करोगी 
तुम्हे अपनी जिंदगी से जो चाहिए
उसके होने न होने की राह भी 
तुम खुद तय करोगी
तुम जिंदगी में 
किसी से नहीं डरोगी ....
***
रिश्तों का मोल 
तुम खूब पहचानती हो 
इनको निभाने का सलीका भी 
खूब जानती हो लेकिन 
तुम कमजोर नहीं हो
अपने स्वाभिमान की कीमत पर 
तुम कुछ नहीं सहोगी  
तुम जिंदगी में  
किसी से नहीं डरोगी ....
***
-मंजू मिश्रा
मूल रचना


Friday, August 28, 2020

बेस्वाद ज़िंदगी......साधना वैद

 

कैसी विचित्र सी मनोदशा है यह!
भूलती जा रही हूँ सब कुछ इन दिनों ! 
इतने वर्षों का सतत अभ्यास 
अनगिनत सुबहों शामों का 
अनवरत श्रम 
सब जैसे निष्फल हुआ जाता है 
अब अपनी ही बनाई रसोई में 
कोई स्वाद नहीं रहा 
मुँह में निवाला देते ही 
खाने वालों का मुँह 
किसकिसा जाता है !
कितने भी जतन से मिष्ठान्न बनाऊँ 
जाने कैसा कसैलापन 
जिह्वा पर आकर 
ठहर जाता है !
नहीं जानती मैं ही सब कुछ 
भूल चुकी हूँ या 
खाद्य सामग्री मिलावटी है 
या फिर पहले बड़े सराह-सराह कर 
खाने वालों के मुँह का 
ज़ायका बदल गया है ! 
पकवानों की थाली की तरह ही 
ज़िंदगी भी अब उतनी ही 
बेस्वाद और फीकी हो गयी है जैसे ! 
बिलकुल अरुचिकर, नीरस, निरानंद !


लेखिका परिचय - साधना वैद
मूल रचना


Thursday, August 27, 2020

तू चिंगारी बनकर उड़ री ....गोपाल सिंह नेपाली


तू चिंगारी बनकर उड़ री, जाग-जाग मैं ज्वाल बनूँ,
तू बन जा हहराती गँगा, मैं झेलम बेहाल बनूँ,

आज बसन्ती चोला तेरा, मैं भी सज लूँ लाल बनूँ,
तू भगिनी बन क्रान्ति कराली, मैं भाई विकराल बनूँ,

यहाँ न कोई राधारानी, वृन्दावन, बंशीवाला,
तू आँगन की ज्योति बहन री, मैं घर का पहरे वाला ।

बहन प्रेम का पुतला हूँ मैं, तू ममता की गोद बनी,
मेरा जीवन क्रीड़ा-कौतुक तू प्रत्यक्ष प्रमोद भरी,

मैं भाई फूलों में भूला, मेरी बहन विनोद बनी,
भाई की गति, मति भगिनी की दोनों मंगल-मोद बनी

यह अपराध कलंक सुशीले, सारे फूल जला देना ।
जननी की जंजीर बज रही, चल तबियत बहला देना ।

भाई एक लहर बन आया, बहन नदी की धारा है,
संगम है, गँगा उमड़ी है, डूबा कूल-किनारा है,

यह उन्माद, बहन को अपना भाई एक सहारा है,
यह अलमस्ती, एक बहन ही भाई का ध्रुवतारा है,

पागल घडी, बहन-भाई है, वह आज़ाद तराना है ।
मुसीबतों से, बलिदानों से, पत्थर को समझाना है ।
-गोपाल सिंह नेपाली

Wednesday, August 26, 2020

जीना हो तो मरने से नहीं डरो रे.... रामधारी सिंह दिनकर


वैराग्य छोड़ बांहों की विभा सम्भालो,
चट्टानों की छाती से दूध निकालो,
है रुकी जहां भी धार, शिलाएं तोड़ो,
पीयूष चन्द्रमाओं का पकड़ निचोड़ो।

चढ़ तुंग शैल शिखरों पर सोम पियो रे!
योगियों नहीं विजयी के सदृश जियो रे!

जब कुपित काल धीरता त्याग जलता है,
चिनगी बन फूलों का पराग जलता है,
सौन्दर्य बोध बन नई आग जलता है,
ऊंचा उठकर कामार्त्त राग जलता है।

अम्बर पर अपनी विभा प्रबुद्ध करो रे!
गरजे कृशानु तब कंचन शुद्ध करो रे!

जिनकी बांहें बलमयी ललाट अरुण है,
भामिनी वही तरुणी, नर वही तरुण है,
है वही प्रेम जिसकी तरंग उच्छल है,
वारुणी धार में मिश्रित जहां गरल है।

उद्दाम प्रीति बलिदान बीज बोती है,
तलवार प्रेम से और तेज होती है !

छोड़ो मत अपनी आन, सीस कट जाए,
मत झुको अनय पर भले व्योम फट जाए,
दो बार नहीं यमराज कण्ठ धरता है,
मरता है जो एक ही बार मरता है।

तुम स्वयं मृत्यु के मुख पर चरण धरो रे!
जीना हो तो मरने से नहीं डरो रे !

स्वातन्त्रय जाति की लगन व्यक्ति की धुन है,
बाहरी वस्तु यह नहीं भीतरी गुण है !
वीरत्व छोड़ पर का मत चरण गहो रे
जो पड़े आन खुद ही सब आग सहो रे!

जब कभी अहम पर नियति चोट देती है,
कुछ चीज़ अहम से बड़ी जन्म लेती है,
नर पर जब भी भीषण विपत्ति आती है,
वह उसे और दुर्धुर्ष बना जाती है ।

चोटें खाकर बिफरो, कुछ अधिक तनो रे!
धधको स्फुलिंग में बढ़ अंगार बनो रे!

उद्देश्य जन्म का नहीं कीर्ति या धन है,
सुख नहीं धर्म भी नहीं, न तो दर्शन है,
विज्ञान ज्ञान बल नहीं, न तो चिन्तन है,
जीवन का अन्तिम ध्येय स्वयं जीवन है।

सबसे स्वतन्त्र रस जो भी अनघ पिएगा!
पूरा जीवन केवल वह वीर जिएगा!
-रामधारी सिंह दिनकर

Tuesday, August 25, 2020

हम पंछी उन्मुक्त गगन के ...शिवमंगल सिंह सुमन

हम पंछी उन्मुक्त गगन के
पिंजरबद्ध न गा पाएंगे,
कनक-तीलियों से टकराकर
पुलकित पंख टूट जाएंगे।

हम बहता जल पीनेवाले
मर जाएंगे भूखे-प्यासे,
कहीं भली है कटुक निबोरी
कनक-कटोरी की मैदा से,

स्वर्ण-श्रृंखला के बंधन में
अपनी गति, उड़ान सब भूले,
बस सपनों में देख रहे हैं
तरू की फुनगी पर के झूले।

ऐसे थे अरमान कि उड़ते
नील गगन की सीमा पाने,
लाल किरण-सी चोंचखोल
चुगते तारक-अनार के दाने।

होती सीमाहीन क्षितिज से
इन पंखों की होड़ा-होड़ी,
या तो क्षितिज मिलन बन जाता
या तनती सांसों की डोरी।

नीड़ न दो, चाहे टहनी का
आश्रय छिन्न-भिन्न कर डालो,
लेकिन पंख दिए हैं, तो
आकुल उड़ान में विघ्न न डालो।
-शिवमंगल सिंह सुमन

Friday, August 21, 2020

मुंडेर पर पतझड़ ....अशोक लव


एकाकीपन के मध्य
स्मृतियों के खुले आकाश पर
विचरण कर रहे हैं
उदासियों के पक्षी

कहाँ-कहाँ से उड़ते चले आ रहे हैं
बैठते चले जा रहे हैं
मन मुंडेर पर!
भीग गया है अंतस का कोना-कोना

क्यों आ जाता है
वसंत के तुंरत बाद
पतझड़ ?
क्यों नहीं भाती उदासियों को
खुशियों की
नन्ही चमकीली बूँदें ?

-अशोक लव

Thursday, August 20, 2020

वक्त से नजरें मिलाओ तो सही...प्रीती श्री वास्तव

वक्त से नजरें मिलाओ तो सही।
हाले दिल अपना बताओ तो सही।।

क्या मिलेगा तुमको डर कर जीने से।
खौफ को मन से भगाओ तो सही।।

दर्द की वो क्या देंगें तुमको दवा।
जख्म उनको तुम दिखाओ तो सही।।

बैठकर तुम रूबरू उनके कभी।
हो खफा क्यूं ये बताओ तो सही।।

ये जहां सारा मुहब्बत पर टिका।
प्यार दिल में तुम जगाओ तो सही।।

मर गयी है जीने की जो लालसा।
मुस्कुराहट फिर से लाओ तो सही।।

दिल की तुम आवाज को सुनकर कभी।
उनसे चलकर मिलने जाओ तो सही।।

बैठे हैं नजरें बिछाये कब से वो।
उनके लिये दिल बिछाओ तो सही।।

-प्रीती श्री वास्तव

Wednesday, August 19, 2020

मैने कहा उसे रोक कर ... गुलज़ार

एक सुबह इक मोड़ पर
मैने कहा उसे रोक कर
हाथ बढ़ा ए ज़िंदगी
आँख मिला के बात कर

रोज़ तेरे जीने के लिये,
इक सुबह मुझे मिल जाती है
मुरझाती है कोई शाम अगर,

तो रात कोई खिल जाती है
मैं रोज़ सुबह तक आता हूं
और रोज़ शुरु करता हूं सफ़र

हाथ बढ़ा ए ज़िंदगी
आँख मिला के बात कर


तेरे हज़ारों चेहरों में
एक चेहरा है, मुझ से मिलता है
आँखो का रंग भी एक सा है
आवाज़ का अंग भी मिलता है
सच पूछो तो हम दो जुड़वां हैं
तू शाम मेरी, मैं तेरी सहर

हाथ बढ़ा ए ज़िंदगी
आँख मिला के बात कर

मैने कहा उसे रोक कर.
-गुलज़ार

Tuesday, August 18, 2020

हाल-चाल ठीक-ठाक है ...गुलज़ार

 जन्मदिवस पर 
गुलजार साहब को 
अशेष शुभकामनाएँ

हाल-चाल ठीक-ठाक है
सब कुछ ठीक-ठाक है
बी.ए. किया है, एम.ए. किया
लगता है वह भी ऐंवे किया
काम नहीं है वरना यहाँ
आपकी दुआ से सब ठीक-ठाक है

आबो-हवा देश की बहुत साफ़ है
क़ायदा है, क़ानून है, इंसाफ़ है
अल्लाह-मियाँ जाने कोई जिए या मरे
आदमी को खून-वून सब माफ़ है

और क्या कहूं?
छोटी-मोटी चोरी, रिश्वतखोरी
देती है अपा गुजारा यहाँ
आपकी दुआ से बाक़ी ठीक-ठाक है

गोल-मोल रोटी का पहिया चला
पीछे-पीछे चाँदी का रुपैया चला
रोटी को बेचारी को चील ले गई
चाँदी ले के मुँह काला कौवा चला

और क्या कहूं?
मौत का तमाशा, चला है बेतहाशा
जीने की फुरसत नहीं है यहाँ
आपकी दुआ से बाक़ी ठीक-ठाक है
हाल-चाल ठीक-ठाक है

-गुलज़ार

Sunday, August 16, 2020

ज़मीं से क्यूँ उजाला जा रहा है ...डॉ. नवीन मणि त्रिपाठी

1222 1222 122

ये किस सांचे में ढाला जा रहा है ।
मेरे हक़ का निवाला जा रहा है ।।

मुनाफ़ा जिनसे हासिल था उन्हीं का ।
निकाला अब दिवाला जा रहा है ।

अज़ब है ये तुम्हारी मीडिया भी ।
हमेशा सच को टाला जा रहा है ।।

वतन को डस लिया वो सर्प देखो ।
जिसे ग़फ़लत में पाला जा रहा है ।।

गुनाहों को छुपाने के लिए क्यूँ ।
यूँ पर्दा ख़ूब डाला जा रहा है ।।

यहाँ नीलामियों का दौर साहब ।
वतन कैसे सँभाला जा रहा है ।।

तरक़्की कर लिया है मुल्क ने अब ।
शिगूफा यह उछाला जा रहा है ।।

किसी जमहूरियत की ही जुबाँ पर।
लगाया रोज़ ताला जा रहा है ।।

फ़रेबी शम्स तू कुछ तो बता दे ।
ज़मीं से क्यूँ उजाला जा रहा है ।।

-डॉ. नवीन मणि त्रिपाठी
मौलिक अप्रकाशित

Saturday, August 15, 2020

यह मौन मेरा तुम पढ़ लेना ...पावनी दीक्षित 'जानिब'

यह मौन मेरा तुम पढ़ लेना
एहसास हृदय में धर लेना।

मन वीणा का तार हो तुम
हृदय रक्त संचार हो तुम
मेरी धड़कन के तारों में
सांसों की सरगम भर देना ।
यह मौन मेरा तुम पढ़ लेना
एहसास हृदय में धर लेना।

तुम प्रेम विरह का संगम हो
तुम अनदेखा इक बंधन हो
तुम आना सूर्य की आभा ले
मेरे मन का अंधेरा हर लेना।
यह मौन मेरा तुम पढ़ लेना
एहसास हृदय में धर लेना।

चंदन हो अग्नि अंगार हो तुम
जैसे फूलों का हार हो तुम
मुझे तपा कर सोना कर
अपनी माला में गढ़ लेना
यह मौन मेरा तुम पढ़ लेना
एहसास हृदय में धर लेना।

-पावनी दीक्षित 'जानिब' 
सीतापुर

Friday, August 14, 2020

आज की दास्तां हमारी है ...गुलज़ार

शाम से आज सांस भारी है
बे-क़रारी सी बे-क़रारी है

आप के बाद हर घड़ी हम ने
आप के साथ ही गुज़ारी है

रात को दे दो चांदनी की रिदा
दिन की चादर अभी उतारी है

शाख़ पर कोई क़हक़हा तो खिले
कैसी चुप सी चमन में तारी है

कल का हर वाक़िआ तुम्हारा था
आज की दास्तां हमारी है

-गुलज़ार

Thursday, August 13, 2020

मेरे अपने मुझे मिट्टी में मिलाने आए ..राहत इंदौरी

मेरे अपने मुझे मिट्टी में मिलाने आए 
अब कही जां के मेरे होश ठिकाने आए 

तूने बालो में सजा रक्खा था कागज़ का गुलाब 
मै ये समझा कि बहारो के ज़माने आए 

चाँद ने रात की दहलीज़ को बख्शे है 
चिराग़ मेरे हिस्से में भी अश्को के खज़ाने आए 

दोस्त होकर भी महीनो नहीं मिलता मुझसे 
उससे कहना कि कभी जख्म लगाने आए 

फुरसते चाट रही है मेरी हस्ती का लहू
मुंतज़िर हूँ कि कोई मुझे बुलाने आए 
-राहत इंदौरी


Wednesday, August 12, 2020

मुरझाया फूल ....महादेवी वर्मा

था कली के रूप शैशव में‚ अहो सूखे सुमन
हास्य करता था‚ खिलाती अंक में तुझको पवन
खिल गया जब पूर्ण तू मंजुल‚ सुकोमल पुष्पवर
लुब्ध मधु के हेतु मंडराते लगे आने भ्रमर।

स्निग्ध किरणे चंद्र की तुझको हंसातीं थीं सदा
रात तुझ पर वारती थी मोतियों की संपदा
लोरियां गा कर मधुप निंद्रा–विवश करते तुझे
यत्न माली का रहा आनंद से भरता तुझे।

कर रहा अठखेलियां इतरा सदा उद्यान में
अंत का यह दृश्य आया था कभी क्या ध्यान में ?
सो रहा अब तू धरा पर‚ शुष्क बिखराया हुआ
गंध कोमलता नहीं‚ मुख मंजु मुरझाया हुआ।

आज तुझको देख कर चाहक भ्रमर आता नहीं
लाल अपना राग तुझ पर प्रात बरसाता नहीं
जिस पवन नें अंक में ले प्यार तुझको था किया
तीव्र झोकों से सुला उसने तुझे भू पर दिया।

कर दिया मधु और सौरभ दान सारा एक दिन
किंतु रोता कौन है तेरे लिये दानी सुमन
मत व्यथित हो फूल‚ सुख किसको दिया संसार ने
स्वार्थमय सबको बनाया है यहां करतार ने।

विश्व में हे फूल! सबके हृदय तू भाता रहा
दान कर सर्वस्व फिर भी हाय! हर्षाता रहा
जब न तेरी ही दशा पर दुख हुआ संसार को
कौन रोएगा सुमन! हम से मनुज निःसार को।
-महादेवी वर्मा
यू ट्यूब में सुनिए

Tuesday, August 11, 2020

हृदय में मत कर वृथा गुमान ...सुभद्राकुमारी चौहान

यह मुरझाया हुआ फूल है, 
इसका हृदय दुखाना मत।
स्वयं बिखरनेवाली इसकी, 
पँखड़ियाँ बिखराना मत॥

गुज़रो अगर पास से इसके 
इसे चोट पहुँचाना मत।
जीवन की अंतिम घड़ियों में, 
देखो, इसे रुलाना मत॥

अगर हो सके तो ठंढी-बूँदे 
टपका देना प्यारे।
जल न जाय संतप्त हृदय, 
शीतलता ला देना प्यारे॥


डाल पर वे मुरझाये फूल! 
हृदय में मत कर वृथा गुमान।
नहीं हैं सुमनकुंज में अभी 
इसीसे है तेरा सम्मान॥

मधुप जो करते अनुनय 
विनय ने तेरे चरणों के दास।
नई कलियों को खिलती देख 
नहीं आवेंगे तेरे पास॥

सहेगा वह कैसे अपमान? 
उठेगी वृथा हृदय में शूल।
भुलावा है, मत करना गर्व, 
डाल पर के मुरझाये फूल!!
-सुभद्राकुमारी चौहान

सुनिए यू ट्यूब में