Monday, January 28, 2013

इश्क़ में इल्ज़ाम उठाने ज़रूरी हैं...............हेमज्योत्सना 'दीप'

सफ़र के बाद अफ़साने ज़रूरी हैं
ना भूल पाए वो दीवाने ज़रूरी हैं

जिन आँखों में हँसी का धोखा हो
उनके मोती चुराने ज़रूरी हैं

माना के तबाह किया उसने मुझे,
मगर रिश्ते निभाने ज़रूरी हैं

ज़ख़्म दिल के नासूर ना बन जाए
मरहम इन पर लगाने ज़रूरी हैं

माना वो ज़िंदगी हैं मेरी लेकिन,
पर दूर रहने के बहाने ज़रूरी हैं

इश्क़ बंदगी भी हो जाए, कम हैं,
इश्क़ में इल्ज़ाम उठाने ज़रूरी हैं

महफ़िल में रंग ज़माने के लिए,
दर्द के गीत गुनगुनाने ज़रूरी है

रात रोशन हुई जिनसे सारी,
सुबह वो 'दीप' बुझाने ज़रूरी हैं। 


-हेमज्योत्सना 'दीप'

Sunday, January 27, 2013

लड़ो कि तुमको लड़ना है...........माधवी श्री

लड़ो कि तुमको लड़ना है

लड़ कर जीने का हक हासिल करना है।

ये दुनिया जो तुम्हें गर्भ से

इस दुनिया में आने के लिए

 प्रतिबंधित करती है 




......

... आने के बाद हर पल

तुमसे तुम्हारे लड़की होने का

हिसाब मांगती है।

हिसाब देते-देते तुम्हारी जुबान

भले ही थक जाए,

पर उनके प्रश्न नहीं रूकते।

आओ इन प्रश्नों को बदल दें,
.......
इन प्रश्न करनेवालों को बदल दें.


आओ लड़े कि

तुम्हें जीने का हक

हासिल करना है अपने लिए

अपने सुंदर कल के लिए। 



--माधवी श्री

Sunday, January 20, 2013

तुम्हारे जाने का अहसास......स्मृति आदित्य "फाल्गुनी"




सिर्फ, एक छोटा-सा पल
तुम्हें लेकर आया मुझ तक,
और जैसे मैंने जी लिया एक पूरा युग।

.....
उस एक संक्षिप्त पल में
गुजरी मुझ पर एक साथ
भीनी हवाओं की नरम थपकियाँ

बरसीं मीठी शीतल सावन बूँदें
बिखरी कच्ची टेसू पत्तियाँ
कानों में घुलती रही देर तक
तुम्हारी नीम गहरी आवाज
मेरी आँखों में चमकती रहीं
तुम्हारी शहदिया दो आँख
मेरी अँगुलियों में महकता रहा
तुम्हारे जाने का अहसास

.....
दिल की गुलमोहर बगिया में
खिली देर तक एक सुहानी आस।
सामने थे तब कितनी दूर थे तुम
अब जब कहीं नहीं हो तब
कितने आसपास....बनकर खास!
एक मधुरिम प्यास..! 


-स्मृति आदित्य "फाल्गुनी"

Friday, January 18, 2013

किसी भी जनम में बिटिया न बनूँ ..........सदा




माँ ... मैं एक कोशिश बनी
हार के क्षणों को अपनी विजय में
परिवर्तित करने के लिए
पर तुम्‍हारे मन का संताप बन गई
.... 


मैं एक कोशिश बनी
पापा का मस्‍तक ऊँचा कर जाऊँ
नहीं कर सकी ऐसा
और ताउम्र की घुटन बन गई
...
मैं हर क्षण लड़ी
भइया के काँधे पर चढ़ विदा होने के लिए
रक्षा का वचन लेते - लेते
मैं उनकी आँख के कोरों का आँसू बन
मन का संत्रास बन गई
....
मैं बनना चाहती थी अपनी
अपनी बहनों के लिये आदर्श
सखियों की नज़र का अभिमान
बहुत अन्‍याय किया मैने
हर एक के साथ और हिचकी बन
उनके गले का मौन बन अवरूद्ध हो गई
जीवन पर्यन्‍त के लिए
....
तुम जब भी करो मेरी मुक्ति के लिए
शांति का पाठ  तो उन पलों में
एक दुआ करना
किसी भी जनम में बिटिया न बनूँ
ये कहते हुये मन से बस मन से
तुम ये तर्पण करना !!!
--सदा
 सदा जी की अन्य रचनाओं के लिये
http://ladli-sada.blogspot.in/
http://sada-srijan.blogspot.in/
http://sadalikhna.blogspot.in/

Thursday, January 17, 2013

तेरे सामने नजर उठाऊँ कैसे............डॉ. अनिल चड्ढा


गहराई में समाऊं कैसे
तेरी याद से जुदा होऊँ कैसे
गुजरे लम्हें भुलाऊँ कैसे
दिल से उठते धुएं से रोकी साँसे,

दबी चिनगारी बुझाऊँ कैसे.
रोम रोम में बस चुकी दुलार तेरा,
दाग इसके कहो मिटाऊँ कैसे.
खुद की निगाहों में गुनाहगार हुआ,

तेरे सामने नजर उठाऊँ कैसे
जो आ सकूँ तो कैसे न आऊँ,
तुझे जानबूझ कर रुलाऊँ कैसे.
शमा ने चाहा कि परवाना जले,

मरने के डर से इसे बुझाऊँ कैसे.
शोख नजरों ने की गुस्ताखी,
इनकी गहराईयों मे जाऊँ कैसे.

--डॉ. अनिल चड्ढा

Tuesday, January 15, 2013

मेरा भी होता है बलात्कार.............सीमा व्यास




मेरा भी होता है बलात्कार, एक बार नहीं कई बार

-जब सरेराह बीसियों निगाहें मुझे ऊपर से नीचे तक गौर से घूरती है,

-जब सड़क चलते कोई भद्दे इशारे करता है;

-जब पीछे से किसी मर्द द्वारा सीटी बजाने या 
चूमने की आवाज निकाली जाती है,

-मुझे रंग रूप या कपड़ों से उपनाम देकर छेड़ा जाता है,

-जब महिलाओं को नीचा दिखानेवाले चुटकुले सरेआम सुनाए जाते हैं 
या एसएमएस किए जाते हैं

-जब समूह में महिलाओं को दोयम दर्जे पर रखने की बात दोहराई जाती है,

-जब पुरुष अपनी ही पत्नियों के कम अक्ल होने का दावा कर 
उन्हें अपमानित करते हैं,

-जब बस स्टॉप पर खड़े होने के बावजूद कोई 
लिफ्ट लेने के लिए जबरदस्ती करता है,

-जब निर्णय लेने में महिलाओं की भागीदारी की बात को 
हंसी में उड़ाया जाता है,

इसे सहन करती है मेरे जैसी कई महिलाएं .....
इनकी कहीं रिपोर्ट नहीं........

कहीं इस बलात्कार के अपराधी आप तो नहीं..........?

जी हां हर रोज, सरे राह, मेरा भी होता है बलात्कार....  
क्या आप भी करते हैं यह अनाचार... ?? 

--सीमा व्यास

Monday, January 14, 2013

उम्मीद.................कवि अशोक कश्यप


तपती गर्मी में जिस दरख्त ने राहत दी थी
आज पतझड़ हुआ तो कुल्हाड़ी तलाशते हो

कोपलें आएँगी और फल भी ये तुम्हें देगा
क्यों उम्मीदों की शाख को अभी तराशते हो

फूलने-फलने को कुछ खाद-पानी दो तो सही
करो मेहनत निठल्ले रहके क्यों विलासते हो

जिसने चाहा है उसे मिला है तुम आजमा लो
हौसले खोते हो क्यों हिम्मतें क्यों हारते हो

ये दुनिया गोल है समय का चक्र गोल ही है
कल वहां और थे तुम जिस जगह विराजते हो

सभी कुछ आसमां से इस ज़मीं पर दिखता है
क्यों अपने कृत्यों पे तुम उजला पर्दा डालते हो

यहाँ दामन पे सबके दाग़ है छोटा ही सही
क्यों हंसके दूसरों की पगड़ियाँ उछालते हो


----कवि अशोक कश्यप

Friday, January 11, 2013

तुम अपने आप में पूरी हो जाना..........सचिन कुमार जैन


जब कोई तुमसे यह बोले तुम तो देवी हो
उससे तुम सजग रहना
जब कोई तुमसे बोले तुम तो ममता हो
उससे तुम सचेत रहना

जब कोई तुमसे बोले तुम स्नेह की प्रतिमा हो
उससे तुम बच कर रहना
जब कोई तुमसे बोले तुम ही चरित्र हो
उससे तुम दूरी बना लेना

जब कोई तुमसे बोले चुप रहना ही जिम्मेदारी है
उस पर तुम विश्वास मत करना
जब कोई तुमसे बोले तुम उस पर निर्भर हो
तुम उससे नाता तोड़ लेना

जब तुमसे कोई बोले तुम केवल यौनिकता हो
तुम बिना सोचे उसका प्रतिकार करना
जब कोई तुमसे बोले वह तुम्हारी रक्षा करेंगे
तुम अपनी ताकत को इकठ्ठा कर खड़े हो जाना

जब कोई तुमसे बोले तुम पीछे चलो
तुम अपनी राह खुद चुन लेना
जब कोई तुमसे बोले बलिदान ही तुम्हारी नियति है
तब तुम अपनी मुट्ठी भींच लेना

तुम अब किसी को कुछ मत कहने देना
तुम अब अपने आप में पूरी हो जाना.....। 


-----सचिन कुमार जैन

Sunday, January 6, 2013

औरत की ख़ामोशी.................सोनल चौधरी

 सुने गौर से कोई कभी तो
औरत की खामोशी को
वो कितना कुछ है कह जाती
बिन कुछ कहे भी
चोटें उसके तन की
हैं चीख चीख कर बतलाती

क्या होता, क्या उस पर बीते
बंद दरवाजों के पीछे
उसकी चुप्पी भी, है कह जाती
होंठ तो उसके मौन रहे
पर लम्हे कई अंगार भरे
है रोती हुई आँखें दर्शाती

दहेज और सती के नाम पे
हैं कितने अत्याचार हुए
फिर भी ये खड़ी है खामोश
गर ये चीख उठी कभी
चारों ओर मचेगी तबाही
कैसे नहीं घबराए मन ये सोच

माँ दुर्गा के पुजारी को
भी शर्म नहीं आती देखो
लाचार औरत की लज्जा नोच
गर इस मूक औरत ने कभी
अपने बंधन तोड़ दिए सभी
होगा सर्वनाश, घबराए मन ये सोच

-सोनल चौधरी