Monday, April 30, 2018

इंतज़ार.....अमित शर्मा

जो तैश में कर दे तर्रार, 
वो है इंतज़ार!

गर आने वाल हो महबूब...
तो सुहाता है इंतज़ार!!

तन्हाई में भी अक्स उसी का,
दिखलाता है इंतज़ार।

क्या होगा जब मिलेगी नज़र,
सोचवाता है इंतज़ार।

पहला जुमला प्यार का
कहलाता है इंतज़ार।

क्या रंग पहना होगा उसने,
झलक दिखलाता है इंतज़ार।

किस इत्र का भाग्य जागा होगा आज,
ये महकाता है इंतज़ार।

लबों की भीगी नमी का अहसास,
कराता है इंतज़ार।
-अमित शर्मा

Sunday, April 29, 2018

कहमुकरियाँ....अमीर खुसरो

-0-
खा गया पी गया 
दे गया बुत्ता 
ऐ सखि साजन? 
ना सखि कुत्ता! 

-0-
लिपट लिपट के वा के सोई 
छाती से छाती लगा के रोई 
दांत से दांत बजे तो ताड़ा 
ऐ सखि साजन? ना सखि जाड़ा! 

-0- 
रात समय वह मेरे आवे 
भोर भये वह घर उठि जावे 
यह अचरज है सबसे न्यारा 
ऐ सखि साजन? ना सखि तारा! 

-0- 
नंगे पाँव फिरन नहिं देत 
पाँव से मिट्टी लगन नहिं देत 
पाँव का चूमा लेत निपूता 
ऐ सखि साजन? ना सखि जूता! 

-0-
ऊंची अटारी पलंग बिछायो 
मैं सोई मेरे सिर पर आयो 
खुल गई अंखियां भयी आनंद 
ऐ सखि साजन? ना सखि चांद! 

-0- 
जब माँगू तब जल भरि लावे 
मेरे मन की तपन बुझावे 
मन का भारी तन का छोटा 
ऐ सखि साजन? ना सखि लोटा! 

-0-
वो आवै तो शादी होय 
उस बिन दूजा और न कोय 
मीठे लागें वा के बोल 
ऐ सखि साजन? ना सखि ढोल!

-अमीर खुसरो

Saturday, April 28, 2018

खुसरो बाजी प्रेम की मैं खेलूँ पी के संग....अमीर ख़ुसरो

1253-1325
सेज वो सूनी देख के रोऊँ मैं दिन रैन,
पिया पिया मैं करत हूँ पहरों, पल भर सुख ना चैन।

रैनी चढ़ी रसूल की सो रंग मौला के हाथ।
जिसके कपरे रंग दिए सो धन धन वाके भाग।।

 खुसरो बाजी प्रेम की मैं खेलूँ पी के संग।
 जीत गयी तो पिया मोरे हारी पी के संग।।

 चकवा चकवी दो जने इन मत मारो कोय।
 ये मारे करतार के रैन बिछोया होय।।

 खुसरो ऐसी पीत कर जैसे हिन्दू जोय।
 पूत पराए कारने जल जल कोयला होय।।

 खुसरवा दर इश्क बाजी कम जि हिन्दू जन माबाश।
 कज़ बराए मुर्दा मा सोज़द जान-ए-खेस रा।।

 उज्ज्वल बरन अधीन तन एक चित्त दो ध्यान।
 देखत में तो साधु है पर निपट पाप की खान।।

 श्याम सेत गोरी लिए जनमत भई अनीत।
 एक पल में फिर जात है जोगी काके मीत।।

 पंखा होकर मैं डुली, साती तेरा चाव।
 मुझ जलती का जनम गयो तेरे लेखन भाव।।

 नदी किनारे मैं खड़ी सो पानी झिलमिल होय।
 पी गोरी मैं साँवरी अब किस विध मिलना होय।।

 साजन ये मत जानियो तोहे बिछड़त मोहे को चैन।
 दिया जलत है रात में और जिया जलत बिन रैन।।

 रैन बिना जग दुखी और दुखी चन्द्र बिन रैन।
 तुम बिन साजन मैं दुखी और दुखी दरस बिन नैंन।।

 अंगना तो परबत भयो, देहरी भई विदेस।
 जा बाबुल घर आपने, मैं चली पिया के देस।।

 आ साजन मोरे नयनन में, सो पलक ढाप तोहे दूँ।
 न मैं देखूँ और न को, न तोहे देखन दूँ।

 अपनी छवि बनाई के मैं तो पी के पास गई।
 जब छवि देखी पीहू की सो अपनी भूल गई।।

 खुसरो पाती प्रेम की बिरला बाँचे कोय।
 वेद, क़ुरान, पोथी पढ़े, प्रेम बिना का होय।।

 संतों की निंदा करे, रखे पर नारी से हेत।
 वे नर ऐसे जाऐंगे, जैसे रणरेही का खेत।।

 खुसरो सरीर सराय है क्यों सोवे सुख चैन।
 कूच नगारा सांस का, बाजत है दिन रैन।।
-अमीर ख़ुसरो

Friday, April 27, 2018

बालों पे चांदी सी चढ़ी थी.....धीरज शर्मा

ज़िन्दगी से लम्हें चुरा
पर्स में रखती रही!

फुरसत से खरचूंगी
बस यही सोचती रही।

उधड़ती रही जेब
करती रही तुरपाई
फिसलती रही खुशियाँ
करती रही भरपाई।

इक दिन फुरसत पायी
सोचा .......
खुद को आज रिझाऊं
बरसों से जो जोड़े
वो लम्हें खर्च आऊं।

खोला पर्स..लम्हें न थे
जाने कहाँ रीत गए!

मैंने तो खर्चे नही
जाने कैसे बीत गए !!

फुरसत मिली थी सोचा
खुद से ही मिल आऊं।

आईने में देखा जो
पहचान ही न पाऊँ।

ध्यान से देखा बालों पे
चांदी सी चढ़ी थी,
थी तो मुझ जैसी
जाने कौन खड़ी थी।
- धीरज शर्मा

Thursday, April 26, 2018

अस्तित्व..... और अस्मिता बचाने की लडाई......कुसुम कोठारी


अस्तित्व..... 
और अस्मिता बचाने की लडाई
खूब लडो जुझारू हो कर लड़ो
पर रुको 
सोचो ये सिर्फ 
अस्तित्व की लड़ाई है या 
चूकते जा रहे 
संस्कारों की प्रतिछाया... 

जब दीमक लगी हो नीव मे
फिर हवेली कैसे बच पायेगी 
नीव को खाते खाते
दिवारें हिल जायेगी
एक छोटी आंधी भी
वो इमारत गिरायगी
रंग रौगन खूब करलो
कहां वो बच पायेगी।

नीड़ तिनकों के तो सुना
ढहाती है आंधियां
घरौंदे माटी के भी 
तोडती है बारिशें
संस्कारों की जब
टूटती है डोरिया
उन कच्चे धागों पर कैसे
शामियाने  टिक पायेंगे।

समय ही क्या बदला है 
या हम भी हैं बदले बदले
नारी महान है माना
पर रावण, कंस भी पोषती है
सीता और द्रोपदी
क्या इस युग की बात है
काल चक्र मे सदा ही
विसंगतियां पनपती है।

पर अब तो दारुण दावानल है
जल रहा समाज जलता सदाचरण है
क्या होगा अंत गर ये शुरूआत है
केशव तो नही आयेंगे ये निश्चित है
कुछ  ढूंढना होगा इसी परिदृश्य मे 
अस्मिता का युद्ध स्वयं लड़ना होगा
संयम और संस्कारों को गढ़ना होगा।
 - कुसुम कोठारी

Wednesday, April 25, 2018

हाइकु.....नवीन श्रोत्रिय “उत्कर्ष”

(१)
तेज तपन,
बनी हूँ विरहन
जलता मन,
   
(२)
आखिरी आस
अब होगा मिलन
बुझेगी प्यास

(३)
फाल्गुनी रंग
चहुँ ओर गुलाबी
पीव न संग

(4)
रात  अँधेरी
मेंरा चाँद ओझल
उसी को हेरी

(5)
निगाहें फेरी,
या प्रेम छल अब,
है कौन बैरी ?

(6)
बरसें    नैन,
सुजान तुम कहाँ,
मिले न चैन,

(7)
खिलीं कलियाँ,
  सुगन्धित वसुधा,
नव प्रभात,

(8)
नवल राग,
आया है मधुमास,
खेलेंगे फाग,

(9)
कहता चंग,
करें मन गुलाबी
पी प्रेम भंग,

(10)
तपता तन,
  सजन सतरंगी,
रंग दो मन,
-नवीन श्रोत्रिय “उत्कर्ष”
श्रोत्रिय निवास बयाना

Tuesday, April 24, 2018

ढूँढती हूँ...अजन्ता शर्मा

उनको बिसारकर ढूँढती हूँ।
पहर-दर-पहर ढूँढती हूँ।

खाकर ज़हर ज़िन्दगी का,
शाम को, सहर ढूँढती हूँ।

अपने लफ्जों का गला घोंट,
उनमें असर ढूँढती हूँ।

अन्तिम पड़ाव पर आज,
अगला सफ़र ढूँढती हूँ।

बर्दाश्त की हद देखने को,
एक और कहर ढूँढती हूँ।

दीवारें न हों घरों के सिवा,
ऐसा एक शहर ढूँढती हूँ।

रंग बागों का जीवन में भरे,
फूलों का वो मंजर ढूँढती हूँ।

इश्क की रूह ज़िन्दा हो जहाँ,
ऐसी इक नज़र ढूँढती हूँ।

दिल को खुश करना चाहूँ,
वादों का नगर ढूँढती हूँ।

रौशनी आते आते टकरा गई,
सीधी - सी डगर ढूँढती हूँ।

छोड़ जाय मेरे आस का मोती,
किनारे खड़ी वो लहर ढूँढती हूँ।

जो मुझे डंसता है छूटते ही,
उसी के लिये ज़हर ढूँढती हूँ।

जानती हूँ कोई साथ नहीं देता।
क्या हुआ ! अगर ढूँढती हूँ।

कौन कहता है कि मै ज़िन्दा हूँ?
ज़िन्दगी ठहर ! ढूँढती हूँ!

पत्थर में भगवान बसते हैं,
मिलते नहीं, मगर ढूँढती हूँ।
-अजन्ता शर्मा

Monday, April 23, 2018

कोई अर्थ नहीं......राष्ट्रकवि श्री रामधारी सिंह दिनकर

नित जीवन के संघर्षों से
जब टूट चुका हो अन्तर्मन,
तब सुख के मिले समन्दर का
*रह जाता कोई अर्थ नहीं*।।

जब फसल सूख कर जल के बिन
तिनका -तिनका बन गिर जाये,
फिर होने वाली वर्षा का
रह जाता कोई अर्थ नहीं।।

सम्बन्ध कोई भी हों लेकिन
यदि दुःख में साथ न दें अपना,
फिर सुख में उन सम्बन्धों का
रह जाता कोई अर्थ नहीं।।

छोटी-छोटी खुशियों के क्षण
निकले जाते हैं रोज़ जहाँ, 
फिर सुख की नित्य प्रतीक्षा का
रह जाता कोई अर्थ नहीं।।

मन कटुवाणी से आहत हो 
भीतर तक छलनी हो जाये,
फिर बाद कहे प्रिय वचनों का
रह जाता कोई अर्थ नहीं।।

सुख-साधन चाहे जितने हों
पर काया रोगों का घर हो,
     फिर उन अगनित सुविधाओं का
रह जाता कोई अर्थ नहीं।।
-राष्ट्रकवि श्री रामधारी सिंह दिनकर

Sunday, April 22, 2018

जीवन के प्रति श्रद्धा...उर्मिला सिंह

दिल के  समन्दर  में भावों की  कश्ती  होती है!
उठती गिरती लहरें जीवन की कहानी कहती है!!
सुख दुख है जीवन माना ,पर पार उसे है करना,
सघर्षों से लड़ कर ही अपनी पहचान बनानी है!!

ज्ञान तुम्हें मिलता है किताबों से, सच है माना
अनुभव राह दिखाता है ,जब छाये घोर अँधेरा
जितने गहरे जाओगे मोती ढूंढ तभी पाओगे
जग में पदचिन्ह तभी तुम अपने दे जाओगे

जीवन के प्रति श्रद्धा ही ध्येय तुम्हें बनाना है
कर्म शक्ति सर्वदा तुम्हे, उसी से पाना है
यदि साध्य तुम्हारा उज्ज्वल होगा जीवन में
साधन अवश्य मिलेगा तुमको मन्जिल पाने में
-उर्मिला सिंह

Saturday, April 21, 2018

लघु कविताएँ ; ‘एक काफिला नन्हीं नौकाओं का’.....डॉ. सुधा गुप्ता

‘एक काफिला नन्हीं नौकाओं का’.....

1- सिर्फ़ एक धुन
उदासी में डूबी सुबह
उदासी में भीगी शाम
उदासी का जाम 
जिन्दगी की बाँसुरी पर 
सिर्फ़ एक धुन 
बजती हैं –
एSS क तेरा नाम ।
-0-
2- तपिश और आग 
दिल के आतिशदान में
चटख़ती यादों ! 
तपिश तो ठीक है, सही जाएगी 
उफ़ ! आग ऐसी ।
मत बनो बेरहम इतनी
मेरी दुनिया जल ही जाएगी !
-0-
3-दो पल में 
कहाँ- कहाँ हो आया मन
दो पला में
क्या- क्या पाया
खो आया मन 
दो पल में …
-0-
4- इंतज़ार 
इंतज़ार 
इंतज़ार ---
पलकों पर काँपते 
आँसुओं की बन्दनवार 
कि / पुतली की रोशनी में
झिलमिलाते /दीयों की क़तार ----
-0-
5-दस्तक
स्वीटपीज़ की गंध 
धीमे – धीमे/ हवा पर बैठ 
सरसराती/ आती हैं 
कोई महक भरी याद 
हौले –हौले 
मेरे दिल का दरवाज़ा 
थपथपाती हैं –
न, नहीं खोलूँगी !
-0-
6-फाँस 
बदल गया मौसम 
फूल गए
अमलतास 
करक गई / ज़ोर से 
फिर कोई फाँस…
-0-
7-चोट 
सुबह-सवेरे
कोयल बोली / कहाँ पी का गाँव
मौसम-बहेलिया 
मँजे खिलाड़ी-सा
फेंक गया दाँव 
टप से गिरी मैं 
चोट खाई चिड़िया-सी 
बाज़ी फिर
उसके हाथ रहेगी !!
-0-
8-मृग- जल 
हौले –से 
तुमने/ तपता मेरा हाथ 
छुआ, और पूछा -
‘अब कैसी हो?’
----झपकी आई थी !
-0-
9-सान्त्वना
फूल
मुझे बहलाने आए—
मेरे पास बैठ कर
हिचकी भर-भर 
रोने लगे …
-0-
10- सिसकी 
बहुत देर रो –रो कर
हलकान हो-हो कर 
सो जाए/ कोई बच्चा
काँधे लग कर 
तो/ नींद में 
जैसे बार- बार 
उसे सिस की आती है,
ऐसे 
मुझे तेरी याद आती है…।
-0-
11-बुज़दिल
दहकती टहनियाँ 
गुलमौर की 
‘आग किसने लगाई’ 
फुस फुसाया जा रहा है,
सवाल
जंगल में कई दिन से 
बुझाने
कोई आगे नहीं आता ।
-0-
12- औचक ही
गुज़रे सबेरों की 
किताब
का कोई पन्ना खुल गया
जनवरी की अलस्सुबह
ठण्डे पानी से नहा कर 
निकलने पर 
पूरी रफ्तार से / चलते
छत-पंखे के नीचे 
औचक ही 
आ गया तन –मन…
-0-
13-मिट्टी का दिया
मैं / मिट्टी का दीया
बड़ी मेहरबानी!
इस दीवाली
तुमने जला दिया
और / यूँ / अपना
जश्न मना लिया …
-डॉ. सुधा गुप्ता

Friday, April 20, 2018

*पंद्रह कदम* ......कुसुम कोठारी


पहले कदम से साथ चले सब
एक सुंदर स्नेह *अलाव*'प्रज्वलित कर 
फिर मचा *'बवाल'* जबरदस्त
तीसरा कदम एक *'चित्र'* मनोरम
रचा सभी ने काव्य विहंगम
फिर कायनात हुई *इंद्रधनुषी*
*पहाड़ी नदी* की रागिनी मोहक
*खलल* पडा फिर भी ना  रुका कारवाँ
बढते रहे कदम उत्साहित
*प्रश्न* पूछना था तितली से
क्यों मंडराती हो सुमनों पर
सांझ ढले होती *उदास*
*परिक्रमा* ये कैसी विचित्र
फिर भी ना छोडी *उम्मीद*
*एहसास* था कितना गहरा
उस पर *तन्हाई* का पहरा
तोड बंधन भरी  *उड़ान* 
*डर* का ना था अब कोई काम
पंद्रहवें कदम पर *कदम*  मिलायें
आज तक की यही कहानी
लिखो कदम पर कविता सुहानी।
-कुसुम कोठारी।

Thursday, April 19, 2018

पाषाण यहाँ बसते.....उर्मिला सिंह

कैसे मन्जिल तक पहुँचे, छाया  घोर अँधेरा है!
कदम कदम यहाँ दरिंदो का लगा हुआ मेला है!

मन  कहता  सपनो  को  पूरा  कर लूँ,
डर कहता दरिंदो से अपने को बचालूँ,
      
कैसे अर्जुन बन लक्ष्य साधू हाँथों से तीर सरकता है!
कदम-कदम पर यहाँ  दरिंदो का लगा हुआ मेला है!  
  
मन कहता सघर्षों से डरो नही तुम,
तन कहता नर भक्षी से दूर रहों तुम,
        
 किस को मन की व्यथा सुनाऊँ पाषाण यहाँ बसते!
 काँटो से रुह जख्मी होती मानव पाषाण बने हँसते!   

नारी सदियों से अग्नि परीक्षा से है गुजरी , 
जीने का मोल चुकाया माँ बहन पत्नी बनी,
        
बाजी जब भी हारी रिश्तों के भाओं में बहते-बहते!   
कामी बहसियों की दरिंदगी कदम नारियों के रोकते!
    
 प्रदूषित हो  रहा शहर-शहर व्यभिचार से,
डरी है बच्चियाँ माँ बाप देश के माहौल से,
       
काँटों से रूह जख्मी होती मानव पाषाण बनेहंसते!
किसको मन की  व्यथा सुनाऊँ  पाषाण यहाँ बसते! 
-उर्मिला सिंह


Wednesday, April 18, 2018

कदम कदम बढ़ाये जा...राम सिंह ठाकुर


कदम कदम बढ़ाये जा, खुशी के गीत गाये जा
ये जिन्दगी है क़ौम की, तू क़ौम पे लुटाये जा

शेर-ए-हिन्द आगे बढ़, मरने से फिर कभी ना डर
उड़ाके दुश्मनों का सर, जोशे-वतन बढ़ाये जा
कदम कदम बढ़ाये जा ...

हिम्मत तेरी बढ़ती रहे, खुदा तेरी सुनता रहे
जो सामने तेरे खड़े, तू ख़ाक मे मिलाये जा
कदम कदम बढ़ाये जा ...

चलो दिल्ली पुकार के, क़ौमी निशां सम्भाल के
लाल किले पे गाड़ के, लहराये जा लहराये जा
कदम कदम बढ़ाये जा...
-राम सिंह ठाकुर

Tuesday, April 17, 2018

कदम मिलाकर चलना होगा.....अटल बिहारी बाजपेयी

बाधाएं आती हैं आएं
घिरें प्रलय की घोर घटाएं,

पांवों के नीचे अंगारे,
सिर पर बरसें यदि ज्वालाएं,

निज हाथों से हंसते-हंसते,
आग लगाकर जलना होगा।

कदम मिलाकर चलना होगा।

हास्य-रुदन में, तूफानों में,
अमर असंख्यक बलिदानों में,

उद्यानों में, वीरानों में,
अपमानों में, सम्मानों में,

उन्नत मस्तक, उभरा सीना,
पीड़ाओं में पलना होगा!

कदम मिलाकर चलना होगा।

उजियारे में, अंधकार में,
कल कछार में, बीच धार में,

घोर घृणा में, पूत प्यार में,
क्षणिक जीत में, दीर्घ हार में,

जीवन के शत-शत आकर्षक,
अरमानों को दलना होगा।

कदम मिलाकर चलना होगा।

सम्मुख फैला अमर ध्‍येय पथ,
प्रगति चिरन्तन कैसा इति अथ,

सुस्मित हर्षित कैसा श्रम श्लथ,
असफल, सफल समान मनोरथ,

सब कुछ देकर कुछ न मांगते,
पावस बनकर ढलना होगा।

कदम मिलाकर चलना होगा।

कुश कांटों से सज्जित जीवन,
प्रखर प्यार से वञ्चित यौवन,

नीरवता से मुखरित मधुवन,
पर-ह‍ति अर्पित अपना तन-मन,

जीवन को शत-शत आहुति में,
जलना होगा, गलना होगा।

कदम मिलाकर चलना होगा।
-अटल बिहारी बाजपेयी

Monday, April 16, 2018

आखिर सत्ता का शेर भूखा कैसे सोयेगा....पूजा प्रियंवदा

one more girl
दिल्ली के ITO के पास 
यमुना पर नए चमकते पुल पर 
छोटे छोटे हाथ 
फल -सब्ज़ियाँ सजाते 
पेंसिल की छुअन 
नहीं जानते

थोड़ा आगे 
प्रगति मैदान की 
लम्बी वाली लाल बत्ती पर 
सख़्त तार के गोले से 
अपने छोटे शरीर को निकालती 
सिर्फ दो रुपये की मुस्कान

कनॉट प्लेस के चमकीले शीशों में 
देखती अपना मैला चेहरा 
जलती सड़क पर छोटे नंगे पाँव 
दिन भर भागते 
भूख से , शाम के लिए 
"सुरक्षित" कोना खोजते

वहीँ थोड़ी दूर 
संसद के सामने गुर्राती 
राजनैतिक शेरनियां 
हैबिटैट सेंटर में 
मॉकटेल्स में डूबी 
स्त्री-विमर्श की कवितायेँ

आखिर सत्ता का शेर 
भूखा कैसे सोयेगा ?
अगले दिन की 
ब्रेकिंग न्यूज़ के लिए 
भेड़िये खोजते हैं 
एक और लड़की 
उम्र, धर्म ,नाम 
कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता !
-पूजा प्रियंवदा