Sunday, March 8, 2015
Saturday, March 7, 2015
आने वाला है...........यशोदा
विश्व महिला दिवस आठ मार्च पर विशेष
आने वाला है
महिला दिवस
लेकिन...
निजी तौर पर
ये मानना है
यही एक दिन नहीं
साल के सभी 365 दिन
हमारे ही हैं
ये दिवस तो
पुरुषों का
बनाया हुआ है
वे डरते हैं
शायद हमसे
इसीलिये वे
हमें इसी एक दिन
महत्वपूर्ण बनाने
की कोशिश..
की जाती है
लेकिन वास्तव में
हम पुरुषों को
डराते कभी भी नहीं
बल्कि जो भी काम करते हैं
हम अपने लिए
अपने परिवार के लिए
अपने समाज के लिए
अपने देश के लिए
ही करते है
-यशोदा
फराह खान के आलेख से प्रेरित
Friday, March 6, 2015
Thursday, March 5, 2015
टेसू खिले......संजय वर्मा 'दृष्टि'
खिले टेसू
ऐसे लगते मानो
खेल रहे हों पहाड़ों से होली
सुबह का सूरज
गोरी के गाल
जैसे बता रहे हों
खेली हमने भी होली
संग टेसू के
प्रकृति के रंगों की छटा
जो मौसम से अपने आप
आ जाती है धरती पर
फीके हो जाते हैं हमारे
निर्मित कृत्रिम रंग
डर लगने लगता है
कोई काट न ले वृक्षों को
ढंक न ले प्रदूषण सूरज को
उपाय ऐसा सोचें
प्रकृति के संग हम
खेल सकें होली
-संजय वर्मा 'दृष्टि'
लेखक व कवि
रसरंग से......
Wednesday, March 4, 2015
मेरे हमदम.................प्रदीप दीक्षित
जब आप दूर चले जाते हैँ धड़कनेँ थमने लगती हैँ
सांसेँ रुक जाती हैँ
यूं ही. . .
डर लगता है तुम्हेँ खोने से
तुमसे जुदा होने से
किसी का होने से
यूं ही. . .
बहार बन आये पतझड़ मेँ
दिल तुम्हारे लिए बेकरार था
तुम्हारा ही इंतजार था
यूं ही. . .
साथ निभाने का वादा करो
तब मुझे सुकून मिलेगा
सफर खुशनुमा कटेगा
यूं ही. . .
-प्रदीप दीक्षित
@कॉपी राइट
फेसबुक से
Tuesday, March 3, 2015
रंगों के आलेख.....मनोज खरे
उमर हिरनिया हो गई, देह-इन्द्र-दरबार
मौसम संग मोहित हुए, दर्पण-फूल-बहार
मौसम संग मोहित हुए, दर्पण-फूल-बहार
दर्पण बोला लाड़ से, सुन गोरी, दिलचोर
अंगिया न सह पाएगी, अब यौवन का जोर
यूं न लो अंगड़ाइयां, संयम हैं कमजोर
देर टूटते ना लगे, लोक-लाज की डोर
शाम सिंदूरी होंठ पर, आँखें उजली भोर
बैरन नदिया सा चढ़े, यौवन ये बरजोर
तितली झुक कर फूल पर, कहती है आदाब
सीने में दिल की जगह, रक्खा लाल गुलाब
अंगिया न सह पाएगी, अब यौवन का जोर
यूं न लो अंगड़ाइयां, संयम हैं कमजोर
देर टूटते ना लगे, लोक-लाज की डोर
शाम सिंदूरी होंठ पर, आँखें उजली भोर
बैरन नदिया सा चढ़े, यौवन ये बरजोर
तितली झुक कर फूल पर, कहती है आदाब
सीने में दिल की जगह, रक्खा लाल गुलाब
जब से होठों ने छुए, तेरे होंठ पलाश
उस दिन से ही हो गई, अम्बर जैसी प्यास
रहे बदलते करवटें, हम तो पूरी रात
अब के हम मिलेंगे, करनी क्या-क्या बात
प्राण-गली से गुजर रही, हंसी तेरी मनमीत
काला जादू रूप का, कौन सकेगा जीत
गढ़े कसीदे नेह के, रंगों के आलेख
पास पिया को पाओगे, आँखें बंद कर देख
~मनोज खरे
संयुक्त संचालक, जनसंपर्क विभाग, मध्य प्रदेश शासन.
उस दिन से ही हो गई, अम्बर जैसी प्यास
रहे बदलते करवटें, हम तो पूरी रात
अब के हम मिलेंगे, करनी क्या-क्या बात
प्राण-गली से गुजर रही, हंसी तेरी मनमीत
काला जादू रूप का, कौन सकेगा जीत
गढ़े कसीदे नेह के, रंगों के आलेख
पास पिया को पाओगे, आँखें बंद कर देख
~मनोज खरे
संयुक्त संचालक, जनसंपर्क विभाग, मध्य प्रदेश शासन.
Monday, March 2, 2015
तुम्हारी दुनिया में.....अशोक कुमार पाण्डेय
सिंदूर बनकर
तुम्हारे सिर पर
सवार नहीं होना चाहता हूं
न डस लेना चाहता हूं
तुम्हारे कदमों की उड़ान को
चूड़ियों की जंजीर में
नहीं जकड़ना चाहता
तुम्हारी कलाइयों की लय
न मंगल-सूत्र बन
झुका देना चाहता हूं
तुम्हारी उन्नत ग्रीवा
जिसका एक सिरा बंधा रहे
घर के खूंटे से
किसी वचन की बर्फ में
नहीं सोखना चाहता
तुम्हारी देह का ताप
बस आँखों से बीजना चाहता हूं विश्वाश
और दाखिल हो जाना चाहता हूँ
खामोशी से तुम्हारी दुनिया में
जैसे आँखों में दाखिल हो जाती है नींद
जैसे नींद में दाखिल हो जाते हैं स्वप्न
जैसे स्वप्न में दाखिल हो जाती है बेचैनी
और फिर
झिमिलाती रहती है उम्र भर
~अशोक कुमार पाण्डेय
युवा कवि, लेखक, समीक्षक व समालोचक
....नायिका से
Sunday, March 1, 2015
~होरी में.....प्रवीण करण
चांद-के गाल पे रंग लगा दओ होरी में
चांद-ए बाने अपओं बना लओ होरी में
चांद के आंगे पीछो फिरतो
आंगे फिरतो पीछे फिरतो
वई चांद-ए-संग बिठा लओ होरी में
चांद के पीछे पागल जैसो
पागल जैसो घायल जैसो
वई चांद-ए-संग नचा लओ होरी में
चांद मिले तो छूके देखों
छूके देखों छककर देखों
वई चांद-ए-अंग लगा लओ होरी में
जा होरी से चांद है मेरो
चांद है मेरो चांद है मेरो
सबे दिखा दओ सबे जता दओ होरी में
चांद-ए दिल का घाव दिखा दओ होरी में
चांद-ए दिल को दर्द सुना दओ होरी में
~प्रवीण करण
लेखक व कवि
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