Wednesday, January 27, 2021

याद के पहरों में जीते हैं ...अस्तित्व "अंकुर"

तुम्हारे साथ गुज़री याद के पहरों में जीते हैं,
हमें सब लोग कहते हैं कि हम टुकड़ों में जीते हैं,

हमें ताउम्र जीना है बिछड़ कर आपसे लेकिन,
बचे लम्हों की सौगातें चलो कतरों में जीते हैं,

वही कुछ ख्वाब जिनको बेवजह बेघर किया तुमने,
दिये उम्मीद के लेकर मेरी पलकों पे जीते हैं,

तुम्हारी बेरुखी पत्थर से बढ़कर काम आती है,
मेरे अरमान फिर भी काँच के महलों में जीते हैं,

जमाने की नज़र में हो चुके हैं खाक हम लेकिन,
हमें मालूम है हम आपकी नज़रों में जीते हैं,

मेरे हर शेर पर “अंकुर” यहाँ कुछ दिल धड़कते हैं,
यहाँ सब ज़िंदगी को हो न हो खतरों में जीते हैं,

-अस्तित्व "अंकुर"

 

10 comments:

  1. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन  में" आज बुधवार 27 जनवरी 2021 को साझा की गई है.........  "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

    ReplyDelete
  2. बहुत सुन्दर

    ReplyDelete
  3. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 28.01.2021 को चर्चा मंच पर दिया जाएगा| आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी
    धन्यवाद

    ReplyDelete
  4. बहुत ही सुंदर सृजन।

    ReplyDelete
  5. हर शेर लाजवाब, सुंदर ग़ज़ल..

    ReplyDelete
  6. तुम्हारी बेरुखी पत्थर से बढ़कर काम आती है,
    मेरे अरमान फिर भी काँच के महलों में जीते हैं!
    .....लाजवाब शेर

    ReplyDelete