वो नहीं बदलता तो हम भी कहां सुधरते हैं
वो घात करता है तो हम ऐतबार करते हैं
उकता गये हैं अब उन्हीं पुराने जख्मों से
तुम नया वार करो हम नईं आह भरते हैं
उसकी हर चाल में कई चाल छुपी होती हैं
समझते हैं हम पर कहां बचाव करते हैं
ठगे जाते हैं हर बार इक ही तरीके से
कमाल उसका है या हम कमाल करते हैं
राज़ जान लेते हैं उसकी आंखें पढ़ कर
फिर क्यूं उससे फिजूल सवाल करते हैं
हर फसाद की जड़ है जिद्दी यह दिल मेरा
लौटा लाता है जब भी उससे तौबा करते हैं
झूठे इकरार की फितरत है या फिर लत उसको
हर किसी से कहता है सिर्फ तुमसे प्यार करते हैं
काश आ जाये दर्द महसूस करने की सलाहियत उसे
समझ जायेगा खुद कि आखिर मुहब्बत किसे कहते हैं
- मेजर (डॉ.)शालिनी सिंह
सुन्दर
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज बुधवार 13 जनवरी 2021 शाम 5.00 बजे साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteआपकी इस प्रस्तुति का लिंक 14.01.2021 को चर्चा मंच पर दिया जाएगा| आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी
ReplyDeleteधन्यवाद
उसकी हर चाल में कई चाल छुपी होती हैं
ReplyDeleteसमझते हैं हम पर कहां बचाव करते हैं
ठगे जाते हैं हर बार इक ही तरीके से
कमाल उसका है या हम कमाल करते हैं
सुन्दर....
अभिनव सृजन।
ReplyDeleteझूठे इकरार की फितरत है या फिर लत उसको
ReplyDeleteहर किसी से कहता है सिर्फ तुमसे प्यार करते हैं
काश आ जाये दर्द महसूस करने की सलाहियत उसे
समझ जायेगा खुद कि आखिर मुहब्बत किसे कहते हैं
बहुत सुंदर।
बेहतरीन लफ्ज़ ।
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