सुविख्यात पंजाबी लेखिका
अमृता प्रीतम जी ने
"मायके" पर क्या खूब लिखा है:
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रिश्ते पुराने होते हैं
पर "मायका" पुराना नही होता
जब भी जाओ .....
अलाय बलायें टल जाये
यह दुआयें मांगी जाती हैं
यहां वहां बचपन के कतरे बिखरे होते है
कही हंसी कही खुशी कही आंसू सिमटे होते हैं
बचपन का गिलास....कटोरी ....
खाने का स्वाद बढ़ा देते हैं
अलबम की तस्वीरें
कई किस्से याद दिला देते हैं
सामान कितना भी समेटू
कुछ ना कुछ छूट जाता है
सब ध्यान से रख लेना
हिदायत पिता की ....
कैसे कहूं सामान तो नही
पर दिल का एक हिस्सा यही छूट जाता है
आते वक्त माँ, आँचल मेवों से भर देती हैं
खुश रहना कह कर अपने आँचल मे भर लेती है ....
आ जाती हूँ मुस्करा कर मैं भी
कुछ ना कुछ छोड कर अपना
रिश्ते पुराने होते हैं
जाने क्यों मायका पुराना नही होता
उस देहरी को छोडना हर बार ....आसान नही होता।
- अमृता प्रीतम
साभार कुसुम शुक्ला
आभार..
ReplyDeleteसादर..
वाह
ReplyDeleteमन को छूती हुई रचना लाजबाव है
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteआपकी इस प्रस्तुति का लिंक 10.9.2020 को चर्चा मंच पर दिया जाएगा। आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी|
ReplyDeleteधन्यवाद
दिलबागसिंह विर्क
सच में ..मायका कभी पुराना नहीं होता 😊😊
ReplyDeleteनमस्कार दिग्विजय जी, अमृता जी की बात हो और वो अंतर्मन को ना छुए... ऐसा हो ही नहीं सकता..बहुत खूब कि मायका कभी पुराना नहीं होता ... कुसुम शुक्ला जी को धन्यवाद
ReplyDeleteबहुत सुंदर! दिल के पास के अल्फाज ।
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