अक्सर खामोश लम्हों में
किताबें भंग करती हैं
मेरे मन की चुप्पी…
खिड़की से आती हवा के साथ
पन्नों की सरसराहट
बनती है अभिन्न संगी…
पन्नों से झांकते शब्द
सुलझाते हैं मन की गुत्थियां
शब्द शब्द झरता है पन्नों से
हरसिंगार के फूल सा…
नीलगगन में चाँद
बादलों की ओट से झांकता
धूसर सा लगता है…
कशमकश के लम्हों में
एक खामोश सी नज़्म
साकार हो उठती है अहसासों में
बस उसी पल…
प्रभाकर की अनुपस्थिति में
पूर्णाभा के साथ
मन आंगन में..सात रंगों वाला…
इन्द्र धनुष खिल उठता है !!
लेखिका परिचय- मीना भारद्वाज
सुन्दर
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना मीना जी। किताबोब् से बढ़कर कौन सा दोस्त है जो मन की मौन रहकर सुनता है। हार्दिक आभार प्रिय संजय ये भावपूर्ण रचनासाझा करने liye💐💐🙏💐💐
ReplyDeleteआभार संजय भाई
ReplyDeleteसादर..
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज मंगलवार 01 सितंबर 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteसंजय जी एवं सभी गुणीजन का उत्साहवर्धन हेतु हृदयतल से सादर आभार !
ReplyDeleteबहुत बहुत सुंदर मीना जी! हृदय की गहराई से निकला यथार्थ सच बहुत प्यारा अभिनव सृजन ।
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