इस दिल की चाहत रह गयी अधूरी।
तेरे इश्क की इबादत रह गयी अधूरी।।
मेरे महबूब जरा फिर शरारत न कर।
छुपा छुपी में मुहब्बत रह गयी अधूरी।।
चाँद को तकती रही मैं तो रात भर।
बदली की हिफाजत रह गयी अधूरी।।
गरज उठे जो बादल जमीं के लिये।
मौसम की हिदायत रह गयी अधूरी।।
दिल में जगे जज्बात जो तेरे खातिर।
रूठ जाने की आदत रह गयी अधूरी।।
शिकवा न करना मुझसे मेरी जफा का।
दूर जाने की शिकायत रह गयी अधूरी।।
-प्रीती श्री वास्तव
वाह
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" सोमवार 07 सितम्बर 2020 को साझा की गयी है.............. पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर
ReplyDeleteवाह!!!
ReplyDeleteचाँद को तकती रही मैं तो रात भर।
बदली की हिफाजत रह गयी अधूरी।।
लाजवाब।
वाह.... बहुत उम्मदा
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