'दो घड़ी भी टिक सकेगा' क्या कभी तुमने विचारा?
रेत पर पदचिन्ह तेरे और सागर का किनारा।।
जिंदगी के रास्तों पर सैकडों दुश्वारियां हैं
मुश्किलों से जूझने की क्या तेरी तैयारियाँ हैं
पथ जरा समतल मिला तुम भूल बैठे कंटकों को
लक्ष्य को पाने से पहले लाख जिम्मेदारियां हैं
धैर्य खोकर चाहते हो भाग्य का चमके सितारा।
रेत पर पदचिह्न तेरे और सागर का किनारा।।
दैव ने तुमको दिए दो हाथ इनको खोल देखो
पाँव को मजबूत कर लो, अड़चनों का मोल देखो
जान लो क्या खूबियाँ भगवान ने तुझमें भरी हैं
आँख मंजिल पर टिकाकर, जिंदगी को तोल देखो
तूँ अकेला ही बढ़ा चल ढूँढ मत कोई सहारा।
रेत पर पदचिन्ह तेरे और सागर का किनारा।।
पर्वतों को काट करके रास्ता अपना बना लो
ठोकरों से राह के सब पत्थरों को तुम उछालो
छोड़ दो पदचिन्ह पीछे जो मिटाए भी मिटे ना
जिंदगी है जंग, हँसकर हमसफ़र इसको बना लो
'आँख से पर्दा हटा लो' वक्त ने तुमको पुकारा।
रेत पर पदचिन्ह तेरे और सागर का किनारा।।
-कौशल शुक्ला
शिक्षक दिवस की शुभकामनाएं।
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" रविवार 06 सितम्बर 2020 को साझा की गयी है.............. पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteवाह बहुत सुंदर सार्थक सृजन।
ReplyDeleteशिक्षक दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं।
बहुत सुंदर रचना
ReplyDeleteवाह!!!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर सार्थक एवं लाजवाब सृजन।