एक तितली गूँजती है
फूल की पंखुड़ियों पर
तो रंग खिलखिलाते हैं ।
चन्द्रमा गूँजता है
पृथ्वी की कक्षा में
तो रोशनी मुस्कुराती है
गहरी रात में भी ।
धरती के भार में गूँजता है बीज
तो साँसें लय मे होकर
आ जाती हैं सम पर ।
समुद्र के भीतर गूँजता है अतल
तो पानी का संगीत बजता है ।
भोर की पत्ती पर
गूँजती है ओस की बूँद
तो सूरज जागता है ।
देह के भीतर
गूँजती है देह
तो जनमता है
जीवन का अनुनाद ।
-विमलेन्दु
सुंदर रचना ...
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज बुधवार 16 सितंबर 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteबेहतरीन सृजन।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर
ReplyDeleteआपकी इस प्रस्तुति का लिंक 17.9.2020 को चर्चा मंच पर दिया जाएगा। आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी|
ReplyDeleteधन्यवाद
दिलबागसिंह विर्क
वाह बहुत सुंदर रचना
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