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दिल को छू जाएं अदाएं तो ग़ज़ल होती है ।
रात भर यादें सताएं तो ग़ज़ल होती है ।।
हुस्न का जलवा दिखाएं तो ग़ज़ल होती है ।
रुख़ से पर्दा वो उठाएं तो ग़ज़ल होती है ।।
दर्दो गम दे के न अशआर मिलेंगे साहब ।
रोते इंसा को हंसाएं तो ग़ज़ल होती है ।।
हम तो मस्जिद में इबादत खुदा की कर लेंगे ।
आप मंदिर में जो आएं तो ग़ज़ल होती है ।।
इक मुलाकात का करके वो इशारा हम से ।
और नज़रों को चुराएं तो ग़ज़ल होती है ।।
बेख़ुदी इतनी गुज़र जाए हदों से उनकी ।
वो दरीचों से बुलाएं तो ग़ज़ल होती है ।।
राजे उल्फ़त पे लगाकर कोई पर्दा वो जब ।
बारहा इश्क़ छुपाएं तो ग़ज़ल होती है ।।
दर्द ज़ाहिर न हो देखे न ज़माना हम को ।
अश्क़ आँखों में सुखाएं तो ग़ज़ल होती है ।।
किसी मुफ़्लिश की गरीबी की दास्ताँ से हम ।
सुब्ह तक चैन गंवाएं तो ग़ज़ल होती है ।।
तेरी रानाइयों का यार तसव्वुर करके ।
लफ्ज़ होटों पे आ जाएं तो ग़ज़ल होती है ।।
बह्र व रुक्न रदीफ़ेन या क्वाफ़ी ही नहीं ।
आप मफ़हूम निभाएं तो ग़ज़ल होती है ।।
- नवीन मणि त्रिपाठी
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 2.1.2020 को चर्चा मंच पर चर्चा - 3568 में दिया जाएगा । आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी ।
ReplyDeleteधन्यवाद
दिलबागसिंह विर्क
वाह
ReplyDeleteवाकई आपकी ग़ज़ल दिल को छू गयी।
ReplyDeleteबहुत सुंदर, हृदय स्पर्शी एहसासों से बुनी ग़ज़ल ।
ReplyDeleteवाह।