Tuesday, December 31, 2019

कलाम सर लौट के जरूर आना...आनंद मेहरा


शब्दों की सीमा पता चल गयी ,
समझ गया कलम का रुकना !
इतना सा कहना हैं और लिखना हैं -
कलाम सर ,लौट के जरूर आना !!

आँखे नम हैं ,दिल भारी ,कागज भी फड़फड़ा रहा -हे !
भारत रत्न देखो आज आसमान भी जार जार रो रहा !
तुम चिरनिद्रा में सो गए ,हे !
कर्मयोगी युगपुरुष हमसे रूठ क्यों चले गए !!

क्या लिखूं ,कैसे परिभाषित करूँ -
कैसे तुम अब्दुल से कलाम बने ? !
कहाँ से शुरू करूँ , कहाँ ख़त्म करू -
कैसे तुम रामेश्वरम से भारत माँ के लाल बने ? !!

शब्दों की भी अपनी एक सीमा हैं ,
तुम उससे परे !
हे !मानवता के अग्रदूत -अब्दुल ,
तुम "कलाम" को सही अर्थ दे गए !!  


4 comments:

  1. कर्मयोगी युगपुरुष कलाम साहब को कोई कैसे भूल सकता है
    बहुत सही

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  2. बहुत खूब, प्रशंसनीय

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  3. बहुत खूबसूरत सृजन।

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