फ़ोन की घण्टी बजी
मैंने कहा — मैं नहीं हूँ
और करवट बदल कर सो गया।
दरवाज़े की घण्टी बजी
मैंने कहा — मैं नहीं हूँ
और करवट बदल कर सो गया।
अलार्म की घण्टी बजी
मैंने कहा — मैं नहीं हूँ
और करवट बदल कर सो गया।
एक दिन
मौत की घण्टी बजी...
हड़बड़ा कर उठ बैठा —
मैं हूँ... मैं हूँ... मैं हूँ..
मौत ने कहा —
करवट बदल कर सो जाओ।
-स्मृतिशेष कुंवर नारायण
संदेशपरक रचना ... इन्हें तीन बार पटना के मंचों पर रूबरू सुनने का सौभाग्य मिला है मुझे ...
ReplyDeleteखूबसूरत प्रस्तुति आदरणीय ।
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