Wednesday, January 1, 2020

दिल को छू जाएं अदाएं तो ग़ज़ल होती है ...नवीन मणि त्रिपाठी


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दिल को छू जाएं अदाएं तो ग़ज़ल होती है ।
रात भर यादें सताएं तो ग़ज़ल होती है ।।

हुस्न का जलवा दिखाएं तो ग़ज़ल होती है ।
रुख़ से पर्दा वो उठाएं तो ग़ज़ल होती है ।।

दर्दो गम दे के न अशआर मिलेंगे साहब ।
रोते इंसा को हंसाएं तो ग़ज़ल होती है ।।

हम तो मस्जिद में इबादत खुदा की कर लेंगे ।
आप मंदिर में जो आएं तो ग़ज़ल होती है ।।

इक मुलाकात का करके वो इशारा हम से ।
और नज़रों को चुराएं तो ग़ज़ल होती है ।।

बेख़ुदी इतनी गुज़र जाए हदों से उनकी ।
वो दरीचों से बुलाएं तो ग़ज़ल होती है ।।

राजे उल्फ़त पे लगाकर कोई पर्दा वो जब ।
बारहा इश्क़ छुपाएं तो ग़ज़ल होती है ।।

दर्द ज़ाहिर न हो देखे न ज़माना हम को ।
अश्क़ आँखों में सुखाएं तो ग़ज़ल होती है ।।

किसी मुफ़्लिश की गरीबी की दास्ताँ से हम ।
सुब्ह तक चैन गंवाएं तो ग़ज़ल होती है ।।

तेरी रानाइयों का यार तसव्वुर करके ।
लफ्ज़ होटों पे आ जाएं तो ग़ज़ल होती है ।।

बह्र व रुक्न रदीफ़ेन या क्वाफ़ी ही नहीं ।
आप मफ़हूम निभाएं तो ग़ज़ल होती है ।।

- नवीन मणि त्रिपाठी

4 comments:

  1. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 2.1.2020 को चर्चा मंच पर चर्चा - 3568 में दिया जाएगा । आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी ।

    धन्यवाद

    दिलबागसिंह विर्क

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  2. वाकई आपकी ग़ज़ल दिल को छू गयी।

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  3. बहुत सुंदर, हृदय स्पर्शी एहसासों से बुनी ग़ज़ल ।
    वाह।

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