Saturday, January 18, 2020

ग़ज़ल मैंने भी लिखी है. ..अरूणिमा सक्सेना


221.  2121.  1221. 212
मतला
आंखों के आगे गिर रहे पत्ते चनार के
आंसू लहू के टपके दिले दाग दार के ।।
हुस्ने मतला
सोचा किये कि जाएंगे मौला के द्वार पे
सपने अधूरे रह गए ग़म बेशुमार के।।
छाया यहाँ  नहींअब शायद इसी लिए
पेड़ों के कौन ले गया ज़ेवर उतार के ।।
❣ 
मिलने चले थे वक्त जुदाई का आ गया
उम्मीद के वो धागे हुये तार तार के।।
❣❣
-अरूणिमा सक्सेना

2 comments:

  1. छाया यहाँ नहींअब शायद इसी लिए
    पेड़ों के कौन ले गया ज़ेवर उतार के ।।
    आदरणीया अरुणिमा जी, वैसे तो गजलें मुझे कम ही प्रभावित करती हैं, लेकिन आपके इन पंक्तियों में गजब की ताकत है और आकर्षण भी। लिखते रहें । बहुत-बहुत शुभकामनाएँ ।

    ReplyDelete