वही दर्द साथ है.....रामबंधु वत्स
वही पुरानी दास्ताँ ,
सुनी सुनी कहानियाँ,
है आसमाँ बता रहा,
यह जमीं सुना रही ।
वही पुरानी अकड़ से ,
हवा यहाँ गुजर रही,
मेघ भी बरस रहा,
है बिजलियाँ कड़क रही ।
नया नहीं हैं कुछ यहाँ,
उम्मीद भी नहीं बची,
जो सदियों है झेलते,
बस, वही दर्द साथ है ।
-रामबंधु वत्स
बहुत खूब
ReplyDeleteसुन्दर
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना।
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (24-03-2017) को "कविता का आथार" (चर्चा अंक-2919) पर भी होगी।
ReplyDelete--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बेहतरीन.....
ReplyDeleteनया नहीं हैं कुछ यहाँ,
ReplyDeleteउम्मीद भी नहीं बची,
जो सदियों है झेलते,
बस, वही दर्द साथ है ।--------
आक्रांत मन के विकल स्वर को संजोते शब्द !!!!!!!!!
शुक्रिया
Deleteखूबसूरत लिखा आपने।
ReplyDeleteशुक्रिया
Deleteसुंदर प्रस्तुति
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