दस क्षणिकाएँ
1.
कवि बनना तो
दूर की बात रही
मेरे लिए
न जाने कब से
लड़ रहा हूँ खुद से
एक आदमी बनने की लड़ाई !
2.
बड़े आदमी के खिलाफ
यह बयान है केवल
इसे कविता समझने की
भूल मत करना
अरे, आदमी तो बन लूँ पहले!
3.
शब्द की यात्रा में
एक भटका हुआ शख्स हूँ मैं
भूल गया हूँ कि
कहाँ से चला था
अब तक अपने उद्गम की ही तलाश में हूँ
4.
यात्रा तो तब शुरू होती है
जब कोई पता कर ले कि
कहाँ से चला था,
अपनी यात्रा की दूरियाँ
कैसे मापेगा वह
कि अब तक कितनी डेग चला
प्रस्थान बिंदु ही जब मिट गई हो ?
5.
मुझे पता नहीं कि
मैं कौन हूँ
क्या हूँ
क्यों हूँ यहाँ
पदार्थ हूँ कि प्राण हूँ ,
देह हूँ कि देहधारी ?
6.
इतनी यात्रा के बाद
इतनी थकान के बाद
यह होश आया कि जानूँ -
कहाँ से चला था
कहाँ जाना है
कितनी दूरी तय की ?
हरेक अगले कदम के साथ
ली गई पिछले डेग की
अब तक लंबाई नापता रहा हूँ।
7.
सच और झूठ की
इस यात्रा में
झूठ की लंबाई तो
पूरी दुनिया जान रही
सच केवल हृदय जान रहा
सच क्या है, इस खोज में
घूमकर कहीं मैं
वहीं तो नहीं पहुंच गया
जहाँ से कभी चला था !
8.
यह यात्रा नहीं है निरापद
जितना तुमसे लड़ा
शेष दुनिया से भी
उससे अधिक खुद से लड़ रहा हूँ
खुद को बचाने के लिए
खुद को काट रहा हूँ
खुद को जीत कर
खुद को रोज हार रहा हूँ !
9.
इस सदी की यह
सबसे बड़ी लड़ाई है मेरी
न इसमें कोई अस्त्र है न शस्त्र
शंकित हूँ कि
अजेय हुआ हूँ कि पराजेय ?
10.
अपने पाँच चोरों को मारकर भी
मैं अजेय नहीं हुआ शायद !
अब सब कुछ हारकर
बुद्ध का पता पूछ रहा हूँ
-सुशील कुमार
7004353450
लाजवाब !! बहुत खूब ।
ReplyDeleteमन मंथन का अमृत और गरल दोनो साथ लिऐ शानदार क्षणिकाएं।
ReplyDeleteअप्रतिम अद्भुत।
बहुत खूब
ReplyDeleteबहुत लाजवाब...
ReplyDeletewah!!! bahut hi umda!
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