बीच बाज़ार
खिलौने वाले
के खिलौने
की आवाज़ से
आकर्षित हो
क़दम उसकी
तरफ़ बढ़े।
मैंने छुआ,
सहलाया उन्हें
व एक खिलौने
को अंक में भरा
कि पीछे से कर्कष
आवाज़ ने मुझे
झंझोड़ा;
‘‘तुम्हारी बच्चों की-सी
हरकतें कब खत्म होंगी’’
सुनकर मेरा नन्हा बच्चा
सहम-सा गया
मेरी प्रौढ़ देह के अन्दर।
-शबनम शर्मा
कहाँ खो गए ऐसे खिलौनेवाले !!
ReplyDeleteप्रौढ़ देह के अन्दर नन्हा बच्चा....
ReplyDeleteवाह वाह
बचपन ऐसा ही होता है ... पल में आकर्षित होता है और पल में ही सहम जाता है ... मन में रहे सदा बचपन ...
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