मैं रहा रात भर सोचता बस प्रिये,
दूँ क्या उपहार में जन्मदिन पर तुम्हें।
प्रातः आकाश की लालिमा दूँ तुम्हे,
या दूँ पंछियों का चहचहाता वो स्वर,
नीले आकाश की नीलिमा दूँ तुम्हे,
या दूँ भेंट पुष्पों का गुच्छा मधुर,
पर प्रकृति सी सजल तुम स्वयं हो प्रिये,
क्या ये उपहार देना उचित है तुम्हें।
मैं रहा रात भर सोचता बस प्रिये,
दूँ क्या उपहार में जन्मदिन पर तुम्हें।
अपने पुण्यों का सारा मैं फल दूँ तुम्हे,
या दूँ अपने हिस्से की सारी हंसी,
विधाता की स्याही कलम दूँ तुम्हें,
लिख लो तकदीर में अपने हर पल खुशी,
है जो दिल वो तेरा,है जो जो वो तेरी,
संग मेरे बचा क्या समर्पण को तुम्हे।
मैं रहा रात भर सोचता बस यही,
दूँ क्या उपहार में जन्मदिन पर तुम्हें
हाथ खाली हैं मेरे मैं क्या दूँ तुम्हें,
इस सघन विश्व में भी नहीं कुछ मेरा,
सारा जीवन समर्पित किया है तुम्हें,
मैं रहा बस तेरा,और रहूंगा तेरा,
दे रहा हूँ मैं तुमको वचन ये प्रिये,
सारे जीवन पर मेरे अब हक है तुम्हे।
मैं रहा रात भर सोचता बस प्रिये,
दूँ क्या उपहार में जन्मदिन पर तुम्हें।
-अर्कित पाण्डेय
बहुत सुंदर भावपरिपूर्ण रचना।
ReplyDeleteआपकी इस प्रस्तुति का लिंक 27-7-2017 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2679 में दिया जाएगा
ReplyDeleteधन्यवाद
🙏🙏
Delete@सारा जीवन समर्पित किया है तुम्हें, मैं रहा बस तेरा,और रहूंगा तेरा.........फिर बचा भी क्या देने को
ReplyDeleteबहुत सुन्दर।
ReplyDeleteati uttam
ReplyDeleteबहुत सुंदर !
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