बहुत कड़वा हो गया है जिंदगी का स्वाद
चलो किसी खूबसूरत वादी से
थोड़ा रोमांच भर लायें..
मुद्दत हुई हमें जी भर के हँसे
चलें किसी दरिया किनारे
मौजों से थोड़ी मौजें मांग लायें..
दरक गया है कहीं कुछ भीतर
मन ठंडे बस्ते में पड़ा रहता है
चलो चाँद के थोड़ा करीब चलो
रूमानी होने का खेल करो
भीगे पाँव कुछ अठखेलियाँ हों
कि जिंदगी के मिज़ाज कुछ जहीन हों...
~निधि सक्सेना
वैसे भी तरो-ताजा होने के लिए बदलाव बहुत जरुरी है
ReplyDeleteवाहः
ReplyDeleteखूबसूरत कविता
सुन्दर।
ReplyDeleteनमस्ते, आपकी यह रचना गुरूवार 20 जुलाई 2017 को "पाँच लिंकों का आनंद "http://halchalwith5links.blogspot.in के 734 वें अंक में लिंक की गयी है। चर्चा में शामिल होने के लिए अवश्य आइयेगा ,आप सादर आमंत्रित हैं। सधन्यवाद।
ReplyDeleteसुंदर ख्याल के साथ साथ बहुत बढिया प्रस्तुति.
ReplyDeleteधन्यवाद।
बहुत सुन्दर..।
ReplyDeleteबहुत अच्छी कविता |
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