यह औरत ही है
जो घर को सम्हाल कर रखती है
कहा उसने
यह औरत ही है
जो आदमी को उसकी मंजिल तक पहुँचाती है
कहा उसने
और
सामाने बैठी औरतों की
ज़ोरदार तालियों के बीच
वह उतर आया
मंच से आहिस्ते आहिस्ते
झूमते झूमते !!
![](https://i1.wp.com/literaturepoint.com/wp-content/uploads/2017/06/%E0%A4%AD%E0%A4%BE%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%95%E0%A4%B0-%E0%A4%9A%E0%A5%8C%E0%A4%A7%E0%A5%81%E0%A4%B0%E0%A5%80.jpg?resize=150%2C150)
- भास्कर चौधुरी
जो घर को सम्हाल कर रखती है
कहा उसने
यह औरत ही है
जो आदमी को उसकी मंजिल तक पहुँचाती है
कहा उसने
और
सामाने बैठी औरतों की
ज़ोरदार तालियों के बीच
वह उतर आया
मंच से आहिस्ते आहिस्ते
झूमते झूमते !!
![](https://i1.wp.com/literaturepoint.com/wp-content/uploads/2017/06/%E0%A4%AD%E0%A4%BE%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%95%E0%A4%B0-%E0%A4%9A%E0%A5%8C%E0%A4%A7%E0%A5%81%E0%A4%B0%E0%A5%80.jpg?resize=150%2C150)
- भास्कर चौधुरी
वाह!इसे कहते हैं 'कविता'!
ReplyDeletebahut badhiya
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (16-07-2017) को "हिन्दुस्तानियत से जिन्दा है कश्मीरियत" (चर्चा अंक-2668) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
:)
ReplyDeleteबहुत खूब...
ReplyDeleteबिडम्बना ही है यह समाज की जिसे खूबसूरती से चंद शब्दों में बयान कर दिया है। बेहतरीन रचना।
ReplyDeleteआपकी महत्वपूर्ण टिप्पणी के लिए बहुत शुक्रिया
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